नई दिल्लीः भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पुष्टि की है कि मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा से रिपोर्ट किए गए धान के पौधों के ‘बौने’ होने के पीछे का कारण सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस नाम की रहस्यमयी बीमारी है. सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस एक डबल स्टैंडर्ड आरएनए वायरस है, जिसे पहली बार 2001 में दक्षिणी चीन से रिपोर्ट किया गया था. चावल पर उत्पन्न होने वाले लक्षण और साथ ही इस वायरस की जीनोम संरचना राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस से मिलती-जुलती है. चावल के अलावा एसआरबीएसडीवी विभिन्न खरपतवार प्रजातियों को भी संक्रमित करता है. चूंकि यह वायरस सबसे पहले दक्षिणी चीन में मिला था, इसलिए इसका नाम सदर्न राइस ब्लैक.स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस पड़ा.
नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक एके सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘संक्रमित पौधों और वेक्टर इन्सेक्ट की बाॅडी दोनों में वायरस की उपस्थिति का पता चला, जिसका आरएनए पृथक किया गया था. लेकिन संक्रमित पौधों से एकत्र किए गए बीजों में वायरस नहीं पाया गया. यह वायरस विशेष तौर पर प्लांट के फ्लोएम (पौधे के ऊतक जो शुगर और कार्बनिक पोषक तत्वों को पत्तियों से दूसरे भागों में ले जाते हैं) को प्रभावित करता है और बीज या अनाज द्वारा संप्रेषित नहीं होता है.’ IARI की एक टीम ने हरियाणा के सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर जिलों में कुल 24 क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया. जिन खेतों में यह बीमारी दर्ज की गई थी, उनमें संक्रमित पौधे 2 से 10 प्रतिशत तक थे. पानीपत में गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र में 20 प्रतिशत पौधों में इस वायरस का प्रभाव देखा गया.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में IARI ने कहा कि प्रभावित पौधों ने गंभीर रूप से अवरुद्ध उपस्थिति दिखाई. उनकी जड़ें खराब विकसित हुईं और भूरी हो गईं. वायरस से संक्रमित पौधे बड़ी आसानी से जमीन से उखड़ जाते हैं. संस्थान ने तीन स्वतंत्र तरीकों: ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, आरटी-पीसीआर और रीयल-टाइम क्वांटिटेटिव पीसीआर का उपयोग करके धान के पौधों को ‘बौना बनाने वाली इस रहस्यमयी बीमारी’ के कारणों और इसका निदान करने के लिए एक व्यापक जांच की. IARI की जांच में बासमती (पूसा-1962, 1718, 1121, 1509, 1847 और CSR-30) और गैर-बासमती (PR-114, 130, 131, 136, पायनियर हाइब्रिड और एराइज स्विफ्ट गोल्ड) दोनों चावल की 12 किस्मों में संक्रमण का पता चला है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सामान्य तौर पर, बासमती की तुलना में गैर-बासमती किस्में अधिक प्रभावित थीं. इसके अलावा, देर से बोए गए धान में जल्दी बोए जाने वाले धान की तुलना में कम संक्रमण था.’ यह देखते हुए कि वायरस विशेष रूप से सफेद रसायनों वाले प्लांट हॉपर से फैलता है, IARI ने किसानों को कीट की उपस्थिति के लिए हर हफ्ते खेतों की निगरानी करने की सलाह दी है. साथ ही कहा है कि 15 दिनों के अंतराल पर ‘बुप्रोफेज़िन’, ‘एसिटामिप्रिड’, ‘डायनोटफ्यूरान’ या ‘फ्लोनिकैमिड’ कीटनाशकों की अनुशासित खुराक का छिड़काव करके कीट का प्रबंधन किया जा सकता है.