नई दिल्ली। क्या अपने ही देश में घिरे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के खिलाफ जंग की तैयारी कर रहे हैं? रक्षा मामलों के जानकार कह रहे हैं कि पहले लद्दाख और अब तवांग में घुसपैठ की कोशिश अनायास नहीं है. ऐसा करके वह भारत को लगातार युद्ध के लिए उकसा में लगा है. इसके साथ ही वह सीमावर्ती इलाकों में अपनी सैन्य क्षमताओं को भी तेजी से बढ़ा है, जिससे भारत के साथ जंग जैसे हालात पैदा करके अपने देश की जनता का ध्यान कोरोना और कमजोर अर्थव्यवस्था से हटाकर राष्ट्रवाद की ओर मोड़ा जा सके.

सूत्रों के मुताबिक कोरोना महामारी को कंट्रोल करने के नाम पर देश में जबरन लागू की जा रही जीरो कोविड के चलते चीन में शी जिनपिंग के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है. अनावश्यक प्रतिबंधों से परेशान हो चुके लोग अब खुलकर सड़कों पर उतरकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ नारे लगा रहे हैं और शी जिनपिंग से इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं.

विभिन्न शहरों में लगातार लॉकडाउन की वजह से वहां पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और कंपनियां बंद पड़ी हैं. इसके चलते चीन की सप्लाई चेन बुरी तरह गड़बड़ा गई है. नुकसान से बचने के लिए कंपनियां बड़े पैमाने पर छंटनी कर रही हैं, जिससे चीन में बड़ी संख्या में लोगों को अपनी नौकरी खोनी पड़ रही है. इन दोनों कारणों के चलते कुछ समय पहले तक अजेय दिख रहे शी जिनपिंग की छवि को बड़ा धक्का लगा है. लोगों को रोष को देखते हुए उन्हें कोविड प्रोटोकॉल में छूट देने को मजबूर होना पड़ा है, जिसे उनके विरोधी कमजोरी मान रहे हैं.

रक्षा जानकारों के मुताबिक शी जिनपिंग के खिलाफ यह विरोध आगे और जोड़ पकड़ सकता है. इस स्थिति का जिनपिंग को भी भान है, इसलिए वे अब लोगों के रोष से ध्यान भटकाकर राष्ट्रवाद की ओर ले जाना चाहते हैं. इसके लिए 2 विकल्प उनके सामने हैं. पहला विकल्प ताइवान पर हमले का है और दूसरा भारत पर अटैक का. ताइवान पर हमले के साथ बड़ा खतरा ये है कि उसकी रक्षा के लिए पहले जापान और फिर अमेरिका भी जंग में कूद पड़ेगा, जिसमें चीन को मुंह की खानी पड़ सकती है. इसलिए माना जा रहा है कि चीन फिलहाल ताइवान पर हमले की हिमाकत नहीं करेगा.

ऐसे में उसके पास दूसरा विकल्प भारत पर हमले का बचता है. लद्दाख में सैन्य अतिक्रमण करके उसने 2 साल से युद्ध का माहौल पहले ही बना रखा है. ड्रैगन का आकलन है कि अगर वह भारत पर हमला करता है तो अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश दूर से निंदा तो करते रहेंगे लेकिन वे खुद शायद इस युद्ध में भाग लेने से बचेंगे. यही सबसे बड़ी वजह है, जो चीन को भारत पर हमला करने के लिए प्रेरित कर रही है.

अब सवाल आता है कि उसने लद्दाख के बाद अब अरुणाचल प्रदेश को ही क्यों चुना. रक्षा जानकारों के मुताबिक इसके पीछे चीन के 2 स्पष्ट लक्ष्य नजर आते हैं. पहला लक्ष्य भूटान की 3 ओर से घेराबंदी करना और दूसरा भारत से अरुणाचल प्रदेश को छीनना. फिलहाल चीन की सेनाएं भूटान के पश्चिम इलाके डोकलाम के सामने और उत्तर दिशा में मौजूद हैं. अगर चीन तवांग पर कब्जा कर लेता है तो भूटान की पूर्वी दिशा पर भी चीनी सेना पहुंच जाएगी. इसके बाद वह कभी भी बड़ा ऑपरेशन लॉन्च कर भूटान को अपने कब्जे में ले सकेगा.

तवांग पर कब्जे की कोशिश पीछे चीन की साजिश अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करना भी मानी जा रही है. चीन इस इलाके को दक्षिण तिब्बत कहकर पुकारता है और कहता है कि यह तिब्बत का हिस्सा है. वर्ष 1962 के युद्ध में चीनी सेना ने तवांग पर कब्जा कर लिया था लेकिन बाद में वे पीछे लौट गई थीं. उस युद्ध के कुछ समय बाद चीनी सेना को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने तवांग पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश की. लेकिन पहले के धोखे से अलर्ट भारत लगातार तवांग में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत करता गया, जिसके चलते आज तक ड्रैगन की दाल वहां गल नहीं सकी है.

डिफेंस एक्सपर्टों के मुताबिक अब 1962 का दौर पीछे छूट चुका है. अगर चीन इतने सालों में मजबूत राष्ट्र बना है तो भारत ने भी इलाके में मजबूत तैयारियां की हैं. उसने पहाड़ी इलाकों में लड़ने के लिए रेजिमेंट्स बनाई हैं, जो उन पहाड़ों में लड़ने में माहिर हैं. इलाके में तोपों, ड्रोन और दूसरे हथियारों की इस तरह से तैनाती कर रखी है कि अगर चीन अपनी हद से थोड़ा भी आगे बढ़ा तो इस बार उसका हाल गलवान से बुरा होना तय है. पूर्वोत्तर इलाके में भारतीय वायु सेना ने भी चौकस तैयारियां कर रखी हैं. वहां पर अत्याधुनिक राफेल के साथ सुखोई जैसे खतरनाक विमान भारी हथियारों के साथ कभी भी ऑपरेशन शुरू करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं. ऐसे में इस बार ड्रैगन का कोई दुस्साहस उसे भारी भी पड़ सकता है.