नई दिल्ली । अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में फैली अफरातफरी के बीच जिस शख्स के इस्लामिक अमीरात आफ अफगानिस्तान का अगला मुखिया बनने की बात हो रही है उसका नाम है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर। बरादर के नेतृत्व में ही तालिबान नेताओं की अमेरिका और वैश्विक बिरादरी के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता का दौर पिछले तीन वर्षों से चल रहा था। इन वार्ताओं के दौरान वह तालिबान के सबसे बड़े राजनीतिक शख्सियत के तौर पर सामने आया है।
तालिबान के पूर्व शासन में अफगानिस्तान में कई अहम पदों पर रह चुके बरादर के संबंध अल-कायदा के संस्थापक ओसामा बिन लादेन से भी रहे हैं और भारत विरोधी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के साथ भी इसके ताल्लुक रहे हैं। इसके बावजूद बरादर को तालिबान के दूसरे शीर्ष नेताओं के मुकाबले ज्यादा शांत व संयमित माना जाता है।
53 वर्षीय मुल्ला बरादर का जन्म अफगानिस्तान के उरुजान प्रांत के वीटमाक गांव में हुआ है। 1980 में सोवियत संघ के खिलाफ उसने अमेरिकी मदद से अपने प्रांत में गुरिल्ला वार से अपने सैन्य जीवन की शुरुआत की थी।तालिबान का पूर्व सरगना मुल्ला मोहम्मद ओमर उसका साला था और दोनों की जोड़ी ने सोवियत रूस की सेना की वापसी के बाद तालिबान को ठोस रूस देने और उसे समूचे अफगानिस्तान में एक व्यवस्था के तहत लाने में अहम भूमिका निभाई।
तब इन्होंने अफगानिस्तान के तमाम बड़े बड़े कबिलाई नेताओं से बात कर अफगानिस्तान में सरकार बनाने की राह निकाली। इस दौरान यह दो प्रांतों का गर्वनर भी रहा। इसके साथ उप-रक्षा मंत्री के साथ आर्मी कमांडर भी रहा। 11 सितंबर, 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने जब तालिबान के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो यह पहले कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो गया। इसके कई साथियों की अमेरिकी कार्रवाई में मौत भी हुई।
कुछ लोग मानते हैं कि बरादर ने अमेरिकी दबाव के चलते तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई से चुपचाप शांति वार्ता शुरू कर दी थी जो पाकिस्तान को पसंद नहीं आई। यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान की जेल में इसे बहुत ही खराब तरीके से रखा गया जबकि आइएसआइ के कुछ दूसरे पसंदीदा तालिबान नेताओं को सुख-सुविधा वाली जेलों में रखा गया।
बहरहाल, वर्ष 2018 में अमेरिका व पाकिस्तान के बीच बनी सहमति के आधार पर बरादर को रिहा किया गया। रिहा होने के कुछ ही दिन बाद इसने अमेरिका के साथ शांति वार्ता की शुरुआत कर दी। माना जाता है कि अमेरिका के प्रतिनिधि जाल्मे खलीलजाद ने बरादर को ही शांति वार्ता के लिए सबसे उपयुक्त माना और पाकिस्तान को शुरुआती ना-नुकुर के बावजूद इसे रिहा करना पड़ा। बाद में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपिओ के साथ मुल्ला बरादर ने उस मसौदे पर हस्ताक्षर किए जिसकी वजह से अमेरिकी सैनिकों की वापसी तय हुई।
बरादर का भारत को लेकर क्या रवैया होगा, यह अभी भविष्य के गर्त में है। हालांकि बताया जा रहा है कि दोहा में भारत के एक सरकारी दल ने बरादर व दूसरे तालिबान नेताओं से बात की है। भारत को लेकर तालिबान का रवैया बहुत हद तक पाकिस्तान भी निर्धारित करेगा। पाकिस्तान ने हाल ही में बरादर की मुलाकात चीन के विदेश मंत्री वांग यी से करवाई है।
जानकारों का मानना है कि कुछ दूसरे तालिबान नेताओं के मुकाबले बरादर का रवैया नरम है। पिछले कई वर्षों से लगातार वैश्विक नेताओं से मिलजुल रहा है। उनके विचारों को सुन रहा है। बरादर ने रविवार को तालिबान को सभी अफगानी नागरिकों के हितों का ख्याल रखने की अपील की है। हालांकि कई बार अफगानी नेता सार्वजनिक तौर पर जो कहते हैं और वास्तविक तौर पर जो करते हैं उसमें बहुत अंतर होता है।