यूपी। 39 वीं बार दूल्हा बने अधेड़ को फिर दुल्हन नहीं मिल सकी। गाजे बाजे के साथ निकली बारात बिना दुल्हन के वापस आ गई। दरअसल यह असली बारात नहीं, एक परंपरा के अनुसार नरगड़ा गांव में होली का स्वांग था। होली का दिन रंगों से सराबोर बारातियों का जत्था ट्रैक्टर पर सवार दूल्हे के साथ गांव के बीच निकला। बारात में करीब-करीब पूरा गांव शामिल है। बारात दुल्हन के दरवाजे पर पहुंची। बारातियों का स्वागत हुआ। परम्परानुसार बारातियों को जलपान कराकर जनवासे में ठहरा दिया गया। बारात में शामिल लोगों के पांव भी पखारे गए। उधर वधु के महिलाओं ने घर में मंगलगीत गाए।

द्वारपूजन के बाद विवाह की रस्में निभाई गईं। बारात और दूल्हे के साथ वे सारी रस्में निभाई हुईं। जो आमतौर पर शादियों में होती हैं। लेकिन दूल्हे को नहीं मिलती तो बस दुल्हन। हम बात कर रहे हैं लखीमपुर खीरी के ईसानगर के गांव नरगड़ा की। यहां होली के दिन बारात निकाली गई। इस बारात की खासियत यह थी कि इसमें एक ही परिवार के सदस्य सैकड़ो वर्षो से दूल्हा बनते आए हैं। होली के दिन पूरा गांव दूल्हे के साथ नाचते गाते रंग, अमीर, गुलाल से सराबोर होकर दूल्हे के साथ बरात लेकर पहुंचते हैं। गांव के लोग बताते हैं यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चलती आई है। होली के दिन बारात लेकर पूरा गांव जाता है।

सारी रस्मे शादी बरात वाली ही होती है। पुरानी परम्परा के अनुसार आज भी हम लोग भी इस प्रथा को निभा रहे है। यह भी परम्परा है कि बारात को बिना दुल्हन के विदा किया जाता है। इस परंपरा में गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 39 वीं बार दूल्हा बने। विश्वम्भर की ससुराल गांव में ही है। होली के पहले उनकी पत्नी मोहिनी को कुछ दिन पहले मायके बुला लिया जाता है। शादी के स्वांग के बाद जब बारात विदा होकर आ जाती है। तब उसके कुछ दिन बाद मोहिनी को ससुराल भेज दिया जाता है। यह अनोखी शादी देखने और बारात में शामिल होने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। सैकड़ों सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी लोक संस्कृतियों की यादें समेटे हुए है। भले ही आज की शादियों में बड़ा बदलाव आ गया हो पर नरगड़ा की इस अनोखी शादी में बारात के स्वागत,ज्योनार के समय गारी और सोहर,सरिया और मंगलगीतों की परम्पराएं जीवंत हैं।