नई दिल्ली. साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है और इसे देखते हुए विपक्ष रणनीति बनाने में जुट गया है. क्षेत्रीय ताकतों सहित सभी प्रमुख विपक्षी दल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए पिछले कुछ सालों से विपक्षी दलों के कई स्थानीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन नियमित अंतराल पर आयोजित किए जा रहे हैं. इससे कभी इनके एकजुट होने की उम्मीद बढ़ रही है, तो कभी धूमिल हो रही है.
इसी क्रम में हाल ही में तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का प्रयास है, जो भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी रखने पर सहमत हुए हैं.
ममता बनर्जी जल्द ही बीजू जनता दल के अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और अन्य नेताओं को भी शामिल करने की योजना बना रही हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र का विपक्षी मोर्चा, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना-यूबीटी शामिल हैं, जो इस घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं.
कुछ वरिष्ठ नेता इस बात पर विचार कर रहे हैं कि ये नए गठजोड़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए बन रहे हैं, या कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे अन्य दक्षिणी राज्यों की कई पार्टियां, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल-यू और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी और अन्य क्षेत्रीय ताकतें भी इस पर नजर रखे हैं. एमवीए नेताओं, विशेष रूप से एनसीपी और शिवसेना-यूबीटी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस को बाहर करने से कोई विपक्षी एकता संभव नहीं है.
ऐसी भी आशंका हैं कि भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए कुछ बड़े राजनीतिक या आर्थिक सनसनीखेज कदम का सहारा ले सकती है, जो हिंदुत्व पर संदेह करने वाले लोगों को आकर्षित करने में मदद कर सकती है. वहीं, कांग्रेस व शिवसेना यूबीटी का मानना है कि अगर विपक्ष एक होने में विफल होता है, तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा.