योगी यहाँ से पाँच बार सांसद चुने गए. योगी मार्च 2017 में 45 साल की उम्र में आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. दूसरी ओर नरेंद्र मोदी 51 साल की उम्र में 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और 2002 में पहली बार राजकोट-2 से विधायक चुने गए थे.
नरेद्र मोदी की पहचान हिंदुत्व के झंडाबरदार के रूप में रही है और योगी भी इस मामले में उन्नीस नहीं बैठते हैं. सम्राट चार्ल्स के ताजपोशी के दौरान मध्य युग शपथ दिलाई जाएगी, 12वीं सदी के एक चम्मच से उन पर पवित्र तेल छिड़का जाएगा और 700 साल पुरानी कुर्सी भी समारोह का हिस्सा होगी
किंग चार्ल्स की ताजपोशी: किसी सम्राट को ताजपोशी की ज़रूरत क्यों होती है?
मोदी के नेतृत्व में गुजरात जिस तरह से चलाया जा रहा था और योगी अपने नेतृत्व में जिस तरह से उत्तर प्रदेश को चला रहे हैं, उसकी तुलना कई मोर्चों पर की जा रही है.
जिस तरह योगी राज में उत्तर प्रदेश में पुलिस एकाउंटर को लेकर सवाल उठ रहे हैं, उसी तरह से मोदी राज में भी गुजरात में कई ऐसे विवादित पुलिस एनकाउंटर हुए थे, जिन पर कोर्ट की बहुत तीखी टिप्पणियाँ आई थीं. गुजरात में 2002 से 2007 के बीच 17 ऐसे विवादित एकाउंटर हुए थे, जिनमें पुलिस और सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे.
पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय नरेंद्र मोदी पर एक किताब लिख चुके हैं. वे कहते हैं कि योगी की राजनीति मोदी की राजनीति का ही एक्सटेंशन है. नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, ”मोदी के मुख्यमंत्री रहते गुजरात में कई ऐसे पुलिस एनकाउंटर हुए थे, जिन पर गंभीर सवाल थे. लेकिन बात केवल पुलिस एनकाउंटर तक सीमित नहीं है. मोदी की गुजरात कैबिनेट देखें या फिर मोदी की केंद्रीय सरकार की कैबिनेट, दोनों में उनके सामने न कोई था और न कोई है.”
”अमित शाह ज़रूर दोनों जगह शक्तिशाली रहे हैं, लेकिन यह मोदी की शख़्सियत के उभार में उनकी अहम भूमिका के कारण है. इसी तरह से उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट को देखिए तो योगी के सामने किसी मंत्री की नहीं चलती है. योगी का तो कोई अमित शाह भी नहीं है.”
नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, ”2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत का श्रेय मोदी को जाता है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में जीत का श्रेय मोदी और योगी दोनों को जाता है. अब योगी ख़ुद भी बहुत लोकप्रिय नेता बन गए हैं. उत्तर प्रदेश में 2027 में अगला विधानसभा चुनाव होगा. 2027 को लेकर अभी से कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी. लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि चुनाव जीतने के लिए योगी की मोदी पर निर्भरता कम हुई है.”
”मुझे लगता है कि योगी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण ही उन्हें मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अमित शाह ने योगी के समानांतर केशव मौर्य, अरविंद शर्मा, ब्रजेश पाठक और दिनेश शर्मा को खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन योगी ने किसी की नहीं चलने दी.”
प्रवीण निषाद प्रयागराज संगम में नाव चलाते हैं. धार्मिक त्योहारों को छोड़ दें तो वह हर दिन 700 से 800 रुपए कमा लेते हैं. प्रवीण से पूछा कि क्या वह इतनी कमाई में घर-परिवार का ख़र्च चला लेते हैं? जवाब में निषाद ने कहा, ”योगी राज में सब ठीक चल रहा है. मुफ़्त में अनाज मिल रहा है और गुंडा राज भी ख़त्म हो गया है. हमें अब कोई दिक़्क़त नहीं है. सब कुछ बढ़िया चल रहा है.”
योगेश ने कहा, ”असर तो बहुत कुछ पड़ता है, लेकिन असल बात यह है कि लड़ाई झगड़ा नहीं होना चाहिए. योगी जी के आने के बाद गुंडई बंद हो गई है. पहले लोग खुलेआम तमंचा लेकर चलते थे और इंस्टाग्राम पर स्टेटस लगाते थे, लेकिन अब किसी की हिम्मत नहीं है.”
शहबाज़ ख़ान लॉ करने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं. उनसे पूछा कि क्या यूपी में वाक़ई गुंडई थम गई है? शहबाज़ कहते हैं, ”देखिए मुसलमानों को लगता है कि योगी जी को गुंडे केवल उनके समुदाय में नज़र आते हैं और ज़्यादा सख़्ती मुसलमानों के ख़िलाफ़ है. लेकिन इसी सख़्ती की वजह से गुंडों में डर तो है. इस डर का फ़ायदा आम हिंदू-मुसलमान दोनों को मिल रहा है.”
शहबाज़ कहते हैं, ”मुसलमानों को भले यह लगता है कि केवल उनके समुदाय के गुंडों को निशाने पर लिया जा रहा है, लेकिन यह बात भी सच है कि हिंदुओं में जो माफिया और गुंडे थे, उन्होंने योगी राज में कोई भी क्राइम करने की हिम्मत नहीं की और जिसने हिम्मत की, उनका भी एनकाउंटर हुआ है.
“ऐसे में हमारे पास यह कहने के लिए तथ्य नहीं है कि किसी ग़ैर-मुस्लिम गुंडे ने गुंडई की तो पुलिस ने छोड़ दिया. बृजेश सिंह हों या राजा भैया या फिर बाक़ी लोग, जो अपनी दबंगई के लिए जाने जाते थे, योगी के आने के बाद ख़ामोश रहे हैं.”
ख़ान कहते हैं, ”यूपी में योगी का क़द इतना बड़ा हो गया है कि हिंदू योगी को वोट करने के लिए मोदी के कहने का इंतज़ार नहीं करेंगे. यूपी में अब योगी को मोदी की ज़रूरत नहीं है.” अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद के मारे जाने के चार दिन बाद प्रवीण निषाद, योगेश और शहबाज़ ऐसा कह रहे थे.
प्रवीण और योगेश से अतीक़ अहमद के साथ उनके भाई अशरफ़ अहमद के मारे जाने को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा, ”योगी राज में गुंडों का यही हश्र होगा. ये बढ़िया बात है कि गुंडों में डर है.” वहीं शहबाज़ ख़ान का कहना था कि आप किसी को भी इस तरह नहीं मार सकते हैं, भले उस पर संगीन मामले हों.
वे कहती हैं, ”यह बात बिल्कुल सही है कि बीजेपी में मोदी के बाद अगर कोई सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है, तो वह योगी हैं. मैं ये नहीं कह सकती कि योगी को अब मोदी की ज़रूरत नहीं है लेकिन योगी अब चुनाव जीतने के लिए मोदी पर उस तरह से निर्भर नहीं हैं. अब मोदी को भी योगी की ज़रूरत पड़ेगी. योगी भीड़ जुटाऊ नेता बन गए हैं.”
”बीजेपी ने इस मामले में योगी को बहुत मौक़ा भी दिया है. हर राज्य से योगी की रैली की मांग होती है. ऐसी ही मांग मोदी को लेकर होती थी. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में चेहरा मोदी थे, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में योगी चेहरा बन गए थे और तब डबल इंजन की सरकार की बात होने लगी थी.”
सुनीता एरॉन कहती हैं, ”मोदी के लिए योगी प्रतिद्वंद्वी बनेंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बीजेपी क्या 10 साल सत्ता में रहने के बाद भी लोगों के बीच लोकप्रिय रहेगी? 10 साल बहुत लंबा वक़्त होता है. अभी तो योगी और मोदी दोनों बीजेपी की ताक़त हैं.”
शरत प्रधान ने अपनी किताब में लिखा है, ”योगी ने ख़ुद ही कहा था कि ऐसा मोदी और अमित शाह दोनों की सहमति से हुआ था. लेकिन आरएसएस के एक बड़े नेता का कहना था कि संघ की वजह से योगी मुख्यमंत्री बने न कि मोदी और शाह की वजह से. योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर से बिल्कुल अलग था. खट्टर और फडणवीस दोनों की कोई मज़बूत राजनीतिक ज़मीन नहीं थी.”
मुसलमानों के बीच इस बात पर नाराज़गी थी कि किसी को भी सड़क पर गोली नहीं मारी जा सकती. सज़ा क़ानून के तहत मिलनी चाहिए.
इसके अलावा दर्जनों घर भी तोड़े गए हैं. संजय पारीख सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. उन्होंने योगी राज में पुलिस एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. यह याचिका अभी पेन्डिंग है. संजय पारीख कहते हैं कि उनके पास उत्तर प्रदेश में पुलिस एनकाउंटर की जो अब तक की लिस्ट मिली है, उसमें मारे गए ज़्यादातर लोग मुस्लिम, दलित और पिछड़ी जाति से हैं.
पारीख कहते हैं, ”बात केवल किसी ख़ास समुदाय के लोगों के मारे जाने की नहीं है. इससे ज़्यादा अहम है कि इतनी बड़ी तादाद में पुलिस एनकाउंटर हो रहे हैं और लोग इसे स्वीकार किए जा रहे हैं. न्यायपालिका की साख का सवाल है. लेकिन वहाँ भी सक्रियता नहीं है. एनकाउंटर का समाज में लोकप्रिय समर्थन मिलना बता रहा है कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता ख़तरे में है. ऐसा लग रहा है कि अब न्यायपालिका की ज़रूरत ही नहीं है. विधायिका और कार्यपालिका ही सज़ा देने लगेंगी तो लोकतंत्र का क्या होगा?”
संजय पारीख कहते हैं, ”हम ठीक से सिविल सोसायटी ही नहीं बना पाए हैं. समाज में हिंसा और अदालत से बाहर सज़ा की स्वीकार्यता पहले से ही मौजूद थी. यह स्वीकार्यता अब तक ख़त्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन चुनावी राजनीति में इसे और बढ़ावा मिल रहा है.”
विजय मिश्र कहते हैं, ”अतीक़ के संबंधी होने के नाम पर दूसरे गाँवों में कई घर तोड़े गए हैं. ये कहाँ का क़ानून है कि अपराध के अभियुक्त के संबंधियों का भी घर तोड़ दो? योगी प्रशासन कहता है कि नक्शा पास नहीं हुआ था और अवैध ज़मीन पर घर था, इसलिए घर तोड़ा गया.”
“लेकिन मैं पुलिस से पूछता हूं कि भारत के किस गाँव में नक्शा पास होने के बाद घर बना है. हटवा गाँव में अशरफ़ के ससुराल का घर तोड़ा गया. इस घर को प्रशासन ने अवैध बताकर तोड़ दिया, लेकिन बगल में बना घर वैध कैसे हो सकता है?”
विजय मिश्र कहते हैं कि योगी सरकार की पुलिस जिस तरह से काम कर रही है, उससे साफ़ है कि बहुसंख्यकवाद की राजनीति को हवा दी जा रही है.
नीरज कहते हैं, ”जो भी घर टूटा है, उन्हें पहले से ही नोटिस था. कोई सरकार कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी लेकिन यह सरकार हिम्मत के साथ काम कर रही है. अगर इसके बाद भी किसी को लगता है कि उनके साथ नाइंसाफ़ी हुई है, तो उन्हें कोर्ट जाना चाहिए.”
नीरज त्रिपाठी कहते हैं, ”जहाँ तक एनकाउंटर की बात है, तो इसमें भी कुछ भी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से नहीं हुआ है. मारे गए अपराधी हैं और हम अपराधियों की जाति या मज़हब नहीं देखते हैं.” पिछले साल जून महीने में वेलफ़ेयर पार्टी ऑफ इंडिया के एक्टिविस्ट जावेद मोहम्मद का घर प्रशासन ने तोड़ दिया था.
सुमैया कहती हैं, ”हमें पहली बार पता चला कि हमलोग का घर अवैध है. प्रशासन का कहना था कि नक़्शा पास हुए बिना घर बना है लेकिन करैली इलाक़े में तो किसी भी घर का नक़्शा पास नहीं हुआ है. ये बिल्कुल झूठ है कि हमें पहले से नोटिस दिया गया था.”
सुमैया कहती हैं, ”प्रदेश में सरकार जिस तरीक़े से काम कर रही है, उसमें अल्पसंख्यकों को इंसाफ़ की उम्मीद रखना बेकार है. यह सरकार बहुसंख्यकवाद की राजनीति कर रही है और उसे इसमें कामयाबी मिल रही है. देश की बहुसंख्यक आबादी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि बेगुनाहों का घर तोड़ा जा रहा है. इन्हें क़ानून, कोर्ट और संविधान से कोई लेना देना नहीं है.”
केके राय ने कहा, ”योगी सरकार ने मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है. घर में नमाज़ पढ़ने पर पुलिस पहुँच जा रही है. हिंदुस्तान के किसी भी क़ानून में इजाज़त नहीं है कि किसी का बेटा अपराधी है तो बाप का बनाया घर गिरा दो. ये बुल्डोज़र के ज़रिए बहुसंख्यकवाद की लहर पैदा कर रहे हैं. इन्होंने 99 फ़ीसदी मुसलमानों के घर गिराए हैं. दरअसल, योगी घर नहीं गिरा रहे हैं बल्कि देश के संविधान की इमारत गिरा रहे हैं. जावेद मोहम्मद के नाम पर वो घर गिरा दिया, जो उनकी बीवी के नाम पर था.”
केके राय कहते हैं, ”सरकार का प्रयास यही है कि आप भूखे रहिए लेकिन धर्म के नाम पर एकजुट हो जाइए. मुझे लगता है कि भय और अलगाव नहीं रोका गया, तो कई ख़तरे सामने आएँगे. अभी हमने भयावह दौर नहीं देखा है.”
योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में मंत्री रहीं और अभी प्रयागराज से लोकसभा सांसद रीता बहुगुणा जोशी को ऐसा नहीं लगता है कि योगी प्रदेश को विभाजनकारी रास्ते पर ले जा रहे हैं.
रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं, ”हमारी सरकार ने संगठित अपराध को काबू में कर लिया है. व्यक्तिगत अपराध को लेकर हम ऐसा नहीं कह सकते हैं लेकिन संगठित अपराध ख़त्म हो चुका है. हमारी सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर को लेकर ख़ूब काम कर रही है. मुफ़्त में अनाज भी मज़हब देखकर नहीं दिया जा रहा है. हमारी सरकार में अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का साहस है. अगर किसी को लगता है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, तो अदालत खुली है.”
योगी उत्तर प्रदेश को कहाँ ले जाना चाहते हैं? इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे हेरंब चतुर्वेदी कहते हैं कि योगी उत्तर प्रदेश में जो कर रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के लिए नहीं बल्कि अपने लिए कर रहे हैं.
प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी कहते हैं, ”मुझे नहीं लग रहा है कि उत्तर प्रदेश को योगी कहीं ले जा रहे हैं. सवाल यह है कि वह ख़ुद को कहाँ ले जाना चाहते हैं. वह अपने लिए काम कर रहे हैं, उन्हें लग रहा है कि इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. हिंदू वोट ध्रुवीकृत होगा तो ये ख़ुद को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर सकते हैं. यह लड़ाई यूपी मॉडल बनाम गुजरात मॉडल की है. 2014 के बाद का भारत जिस राह पर है, उसी तेवर और तरीक़े के साथ 2017 से योगी यूपी को आगे बढ़ा रहे हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने योगी आदित्यनाथ पर अपनी किताब में लिखा है, ”2001 में लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया, तो वह भी आदित्यानाथ की तरह प्रशासक के तौर पर अनुभवी नहीं थे. लेकिन मोदी आदित्यनाथ की तुलना में न केवल तेज़ तर्रार थे, बल्कि जल्दी चीज़ों को सीख भी लेते थे. 2002 के दंगे की सारी नकारात्मकता को अपनी लोकप्रियता बढ़ाने में इस्तेमाल कर लेना, सबके बस की बात नहीं थी.”
शरत प्रधान को लगता है कि योगी जिस तरह से यूपी चला रहे हैं, वह अमित शाह को रास नहीं आ रहा है. प्रधान को लगता है कि 2024 के बाद यूपी में कोई बड़ा खेल हो सकता है.