मेरठ। एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ते) ने शनिवार रात करीब छह घंटे तक शहर में छानबीन की। इस दौरान लिसाड़ीगट, कोतवाली क्षेत्र सहित कई जगहों पर दबिश दी गई। चार लोगों को हिरासत में लिया गया है। इनमें बुलंदशहर का एक सपा नेता भी है। बताया गया कि प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्य हैं। ये पीएफआई के लिए काम कर रहे थे। इनके लोगों के बैंक खातों से लेकर अन्य जानकारी जुटाई जा रही है।

पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीफआई) के एजेंटों के खिलाफ एटीएस ने पूरे प्रदेश में घेराबंदी शुरू कर दी है। मेरठ से भी शनिवार देर रात कई आरोपियों को पकड़ा गया है। इससे यह तय हो गया है प्रतिबंध होने के बावजूद भी पीएफआई ने अपनी जड़े यहां जमा रखी हैं। पहले भी पीएफआई के एजेंट मेरठ में बड़ी हिंसा भी कर चुके हैं।

दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध में लिसाड़ीगेट में जुमे की नमाज के बाद एक समुदाय के लोगों ने पुलिस पर हमला किया था। तिरंगा गेट के सामने इस्लामाबाद पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया गया था। उपद्रवियों ने पुलिस पर फायरिंग की थी।

दरअसल, 20 दिसंबर 2019 को सीएए को लेकर प्रदेशभर में हिंसा हुई थी। लिसाड़ीगेट में जुमे की नमाज के बाद एक समुदाय के लोगों ने पुलिस पर हमला कर हिंसा कर दी थी। पुलिस-प्रशासन की ढीली कार्रवाई के चलते प्रदेश सरकार ने फटकार लगाई थी।

इसके बाद पुलिस एक्शन में आई और हिंसा और आगजनी में नष्ट हुई सरकारी संपत्ति की कीमत के तौर पर 28.27 लाख रुपये की वसूली के लिये 51 आरोपियों की संपत्ति नीलाम करने का नोटिस दिया गया था।

लिसाड़ीगेट क्षेत्र और हापुड़ रोड पर हुई हिंसा में पांच लोगों की गोली लगने से मौत हुई थी। इस हिंसा में लिसाड़ीगेट, नौचंदी, ब्रह्मपुरी, मवाना, जानी, सरधना थाने में 23 मुकदमे दर्ज हुए थे।

इनमें 173 आरोपी नामजद हुए थे जबकि 76 आरोपी जेल भेजे गए थे। जांच के लिए एसआईटी गठित की गई। अधिकांश मुकदमों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। सीएए की हिंसा में नामजद आरोपियों से वसूली करने के लिए शासन के आदेश पर प्रशासन ने संज्ञान लिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।