नई दिल्ली। नया अध्यक्ष बनने पर तो किसी भी राजनीतिक पार्टी में विरोध या बगावत के स्वर उठना स्वाभाविक है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस में नया अध्यक्ष बनने से पहले ही असहमति सामने आ रही है।

आलम यह है कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए एक साल भी नहीं बचा है, जबकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राष्ट्रीय राजधानी के लिए एक योग्य अध्यक्ष तक तय नहीं कर पा रहा है।

यूं तो मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी की स्वीकार्यता कभी नहीं रही। शुरू से ही उनका विरोध होता रहा है, पर एमसीडी चुनाव में पार्टी को मिली करारी शिकस्त के बाद तो इनका जाना लगभग तय था। सूत्रों के मुताबिक चौधरी का इस्तीफा भी हो चुका है, लेकिन पहले ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और फिर कर्नाटक चुनाव के कारण नए अध्यक्ष का निर्णय टलता रहा।

अब जब सबकुछ निपट गया है, पार्टी नेतृत्व तब भी ऊहापोह में ही लग रहा है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि शुरू में इस पद के लिए केवल दो ही नाम- दिल्ली सरकार में मंत्री रह चुके अरविंदर सिंह लवली और दूसरा पार्टी के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव थे।

बाद में इस दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे व पूर्व सांसद संदीप दीक्षित का नाम उछला, तो कुछ नेता कन्हैया कुमार की पैरवी करने लगे। इनके अलावा भी बहुत सारे नेता ऐसे हैं, जो इधर-उधर से अपने नाम की पैरवी करवा रहे हैं। हर नाम के साथ कुछ समीकरण भी बैठाए जा रहे हैं।

उधर, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी जातिगत और वर्ग विशेष के समीकरणों पर भी विचार कर रहे हैं। उनकी सोच है कि दिल्ली से जिस-जिस समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई है, उस समुदाय के नेता को दिल्ली का अध्यक्ष न बनाया जाए। पार्टी की इस जद्दोजहद में प्रदेश कांग्रेस की स्थिति और कमजोर हो रही है।

पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं और पूर्व प्रदेश अध्यक्षों ने भी शीर्ष नेतृत्व की उदासीनता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी है। यहां से सीधा संदेश देशभर में जाता है, लेकिन अगर शीर्ष नेतृत्व पार्टी की दिल्ली इकाई को लेकर ही गंभीर रुख नहीं रखता, तो फिर अन्य इकाइयों के बारे में क्या कहा जाए!

कई नेताओं ने यह सुझाव भी दिया कि प्रदेश कांग्रेस सियासी स्तर पर जीरो जैसी हो गई है। इसलिए जल्द किसी योग्य अध्यक्ष की घोषणा कर दी जानी चाहिए, ताकि मई 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव तक वह पार्टी को कहीं खड़ा कर पाएं।