नई दिल्ली: देश के नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान नेताओं की तकरार जारी है. कुछ दिनों पहले यूपी में हुई किसान महापंचायत के बाद आज किसान नेताओं ने भारत बंद बुलाया है. संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन नेताओं के आह्वान पर हुए आयोजन में किसानों के नाम पर सियासत भी हो रही है. वहीं देश के विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस बंद को अपना पुरजोर समर्थन दिया है.

इस मामले को लेकर देश के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसान आंदोलन को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिये किसान सबके हैं और सरकार बड़ी संवेदनशीलता के साथ किसान यूनियनों के साथ बातचीत करने के लिए आगे भी तैयार है.

सरकार बार-बार किसानों से आंदोलन का रास्ता छोड़ने और बातचीत के जरिए मसले का हल करने की अपील कर रही है. वहीं किसान नेताओं ने एक बार फिर ‘भारत बंद’ के जरिए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है. इस भारत बंद को कई राजनीतिक दल भरपूर समर्थन दे रहे हैं. कृषि कानूनों के खिलाफ भारत बंद को कांग्रेस, आम आदमी पार्टी , सपा , बसपा , आरजेडी , टीएमसी , जेडीएस डीएमके और वाइएसआर-कांग्रेस समेत वामपंथी दलों ने भी अपना समर्थन दिया है.

पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा, ‘पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी भारत बंद की किसान यूनियनों की मांग के साथ मजबूती से खड़ी है. सही और गलत के युद्ध में, आप तटस्थ नहीं रह सकते.’

इस बीच किसान नेता राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने एक बार फिर केंद्र को चेतावनी दी है. इन नेताओं ने कहा कि सरकार ने अगर उनकी बात नहीं सुनी तो प्रधानमंत्री आवास के बाहर टेंट लगा दिया जाएगा. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या रास्ता रोकने, दुकानें बंद कराने से किसानों की समस्या का समाधान हो जाएगा या फिर बातचीत से इस मुद्दे का हल निकलेगा.

आज किसान नेताओं के आह्वान पर दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर, KMP एक्सप्रेस-वे, पंडित श्री राम शर्मा मार्ग मेट्रो स्टेशन, लाल किले की ओर जाने वाले रास्ते बंद, छत्ता रेल रोड और सुभाष मार्ग पर ट्रैफिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई. कई जगहों पर लगे लंबे जाम की वजह से लोगों को परेशान होना पड़ा.

सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत विफल हो चुकी है. इस साल देश में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की गई. किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत खुद कई प्रदेशों की यात्रा के दौरान बीजेपी को हराने की बात कह चुके हैं. वहीं अगले साल होने जा रहे यूपी और पंजाब समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में किसानों के नाम पर विपक्षी दल अपने नफे-नुकसान के हिसाब से इस मुद्दे को उठा रहे हैं. यानी वोटबैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल जो किसान आंदोलन को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं उसे किसी भी हाल में जायज नहीं ठहराया जा सकता है.