नई दिल्ली । पिछले कुछ दिनों से पंजाब में सियासी घमासान जारी है। इस बीच बुधवार को दिल्ली में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई। इसके बाद से ही राजनीतिक गलियारों में कैप्टन के भाजपा में जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं। चर्चा ये भी है कि अमरिंदर को कृषि मंत्रालय का जिम्मा दिया जा सकता है। साथ ही किसान आंदोलन को खत्म करवाने की दिशा में भी कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हमसे बात करने वाला अमरिंदर है या नरेंदर। हम तो केंद्र से बातचीत को तैयार हैं। केंद्र चिट्ठी भेजे और किसान की मांग मानने को तैयार हो तो हम उनके किसी भी प्रतिनिधि से बात करेंगे।

अगर भाजपा को लगता है कि वह कैप्टन अमरिंदर को लाकर किसान आंदोलन को अपनी शर्तों पर खत्म करा पाएगी तो वह गलत है, क्योंकि हमारी दो मांगें-पहली तीनों कृषि बिल वापस लिए जाएं और दूसरी MSP की गारंटी दी जाए, जब तक पूरी नहीं होती हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।’

टिकैत कहते हैं- दरअसल भाजपा किसान आंदोलन ही नहीं बल्कि पंजाब में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए भी उनको ला रही है। हमें इससे कोई मतलब नहीं। हमारा आंदोलन गैर राजनीतिक है। किसान के हित में जो भी हमसे बात करने आएगा हम उससे बात करेंगे। वैसे भी कैप्टन अमरिंदर पहले भी किसानों को लेकर अंट-शंट बोलते रहे हैं। दो साल पहले किसानों ने उनका आवास भी घेरा था।

किसान आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में शामिल जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, ‘किसी सियासी उथल-पुथल से हमें नहीं लगता कि किसान आंदोलन पर कोई असर पड़ेगा। हां, इससे हलचल तो होती ही है। यदि अमरिंदर BJP में जाते हैं तो वहां उन्हें किसानों की बात करनी पड़ेगी, तीनों कानून रद्द करवाने होंगे। कल तक कैप्टन साहब भी यही बोला करते थे कि वे कानून रद्द करवाने वालों में से हैं। अब उन्हें साबित करना होगा कि जो वे बोल रहे थे, उस पर टिके हैं। मुझे लगता है कि अमरिंदर को ये शर्त रखनी चाहिए कि पहले कानून रद्द करो, फिर हम BJP में आएंगे।’

यदि अमरिंदर सिंह कानून रद्द करवा देते हैं तो क्या किसान फिर भी BJP का विरोध करेगा, इस सवाल पर उगराहां कहते हैं, ‘जब कोई किसानों की मांग मानेगा तो उनके लिए मैदान में जाने के रास्ते खुल जाएंगे, वे लोगों से ये भी कह पाएंगे कि हमने किसानों की मांग मानी है। अगर वे कानून रद्द करके आएंगे तो उनका विरोध क्यों होगा।

जैसी दूसरी पार्टियां प्रचार करती हैं, वैसे ही BJP भी अपना प्रचार कर पाएगी। हम उनका विरोध नहीं करेंगे। हमारी BJP से कोई निजी दुश्मनी नहीं है। हम अपनी एक मांग को लेकर सड़क पर बैठे हैं, जब वे हमारी मांग ही मान लेंगे तो हम भी मान जाएंगे।’ उगराहां यह भी कहते हैं कि अगर वाकई कैप्टन तीनों कानून रद्द करा देते हैं तो पंजाब में BJP के लिए रास्ते खुल जाएंगे।

राजिंद्र सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अमित शाह से मिलें या अमित शाह किसी और से मिलें। इसका आंदोलन पर असर नहीं होगा। इस मुलाकात का आंदोलन से लेना-देना नहीं है। कैप्टन पहले भी शाह से मिलकर कई बार कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग उठा चुके हैं।

राजिंद्र सिंह कहते हैं, ‘भारत बंद व्यापक रहा, इसका भी सरकार पर असर हो सकता है। किसान आंदोलन को दस महीने हो गए हैं। बहुत से लोगों को ये लगता होगा कि आंदोलन लंबा खिंच गया है, लेकिन हमें लगता है कि अभी ये और भी लंबा खिंच सकता है। देश के दूसरे हिस्सों में भी ये आंदोलन खड़ा हो सकता है। उदाहरण के तौर पर हिमाचल के किसानों को पहली बार लग रहा है कि MSP जरूरी है।’

क्या अमरिंदर के बीजेपी में जाने से पंजाब में बीजेपी को कोई फायदा हो सकता है? इस सवाल पर राजिंद्र कहते हैं, ‘किसान आंदोलन से BJP को बहुत नुकसान हुआ है। यदि BJP किसानों की सभी मांगों को जिसमें तीनों कानून रद्द करना और MSP का अधिकार देना शामिल है, बिना शर्त मान लेती है, तो ये नुकसान कुछ कम हो सकता है। मौजूदा हालात में आंदोलनकारी और किसान BJP से नफरत करते हैं, क्योंकि 600 से अधिक किसानों की मौत के बाद भी BJP को कोई फर्क नहीं पड़ा है। इतना कुछ करवाने के बाद अगर वह कुछ करती भी है, तो मुझे नहीं लगता कि इससे उसे राजनीतिक तौर पर कुछ फायदा होगा।’

राजिंद्र कहते हैं, ‘आज पंजाब में स्थिति ये है कि अगर हम चुनौती दे दें तो मोदी भी रैली नहीं कर सकते। पंजाब में BJP की राजनीतिक गतिविधियां समाप्त हो चुकी हैं। पंजाब के लोग काफी समय से ये समझ रहे थे कि अमरिंदर सिंह BJP की भाषा बोल रहे हैं। उन्होंने करतारपुर कॉरिडोर पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने नवजोत सिद्धू को पाकिस्तानी एजेंसियों से जोड़ा है। ये BJP की ही भाषा है। जिस तरह के राष्ट्रवाद की बात BJP करती है, उसी तरह की भाषा उन्होंने भी बोली है।’