हमारे मन में अक्‍सर एक सवाल होता है कि स्‍वर्ग कैसा होता है। हम कल्‍पना करते हैं कि यह जगह बहुत ही सुंदर होगी । यहां रहने वाले सभी लोग बहुत खुश रहते हैं और यह जगह पापों से परे हैं। अगर आप वास्‍तव में स्‍वर्ग की किसी चीज को देखना चाहते हैं, तो उत्‍तर प्रदेश चले जाएं। यहां आपको एक ऐसा पेड़ मिलेगा, जिसे स्‍वर्ग से उठाकर लाया गया था। कहने को भारत में कई तरह के पेड़ हैं, लेकिन इस पेड़ की खासियत आपको भी हैरान कर देगी। तो चलिए जानते हैं कौन सा है ये पेड़ और कौन लेकर आया था

आप जरूर सोच रहे होंगे कि इस पेड़ का नाम क्‍या है। स्‍वर्ग से धरती पर उतरे इस पेड़ को पारिजात, हरश्रृंगार, शेफाली, प्राजक्ता और शिउली नाम से जाना जाता है। यह फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय फूल है। इसके फूल सफेद, छोटे और बहुत सुंदर होते हैं। ये फूल बस रात में खिलते हैं और सुबह अपने आप ही झड़ जाते हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से करीब 38 किमी दूर पूर्व में किंतूर गांव स्थित है। गांव का नाम पांडवों की मां कुंती के नाम पर रखा गया था। जब धृतराष्ट्र द्वारा पांडव पुत्रों को अज्ञातवास दिया गया, तो वे इसी गांव में रूके थे। पांडवों ने अपनी मां के पूजन के लिए यहां शिव मंदिर बनवाया, जिसे आज कंतुेश्‍वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं पांडव अर्जुन खुद इसे स्‍वर्ग से लेकर आए थे। बताते हैं कि माता कुंती इस पेड़ के फूलों से भगवान शिव का अभिषेक किया करती थीं। यह यूनिसेक्स पुरुष पेड़ है। ऐसा पेड़ भारत में कहीं और देखने को नहीं मिलता। इसके फूल हल्‍के सफेद रंग के होते हैं, जो धीरे-धीरे रंग बदलते हैं।

एक बात जो कोई नहीं जानता कि इस पेड़ को देवराज इंद्र का श्राप हासिल है। इसलिए यह धरती पर दिन में नहीं बल्कि रात में ही गुलजार होता है। देवताओं से लेकर दानव तक इसे पाने के लिए आतुर रहते थे।

देवराज इंद्र ने इस पेड़ को श्राप दिया था कि इसके फूल दिन में कभी नहीं खिलेंगे। साथ ही उन्‍होंने यह भी श्राप दिया था कि इस पर कभी फल भी नहीं आएंगे। इसी श्राप की वजह से पारिजात के फूल रात में ही खिलते हैं।

शास्त्र बताते हैं कि जब देव और दानवों के बीच हुए समुद्र मंथन हुआ था, तो 14 रत्न बाहर निकले थे। इनमें से पारिजात का पेड़ भी एक था। स्वर्ग के राजा माने जाने वाले देवराज इंद्र इस पेड़ को अपने साथ स्वर्ग लोक ले गए और वहीं इसे स्थापित कर दिया.।

कहा तो यह भी जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण पत्नी सत्यभामा की जिद के बाद इस पेड़ को स्‍वर्ग से धरती पर लेकर आए थे। सत्यभामा को इस फूल की सुगंध बहुत पसंद थी, वह इसे पाने के लिए इस तरह जिद पर अड़ गई, कि भगवान कृष्ण को बल के जोर पर स्‍वर्ग से यह पेड़ धरती पर लाना ही पड़ा। उन्‍होंने इसे सत्यभामा को उपहार के तौर पर दिया। जिसे गुजरात के द्वारका में लगाया था।

श्री कृष्ण लीला में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को अपने व्रत का उद्यापन करना था। इसके लिए वह श्रीकृष्ण के साथ रैवतक पर्वत पर पहुंची। उस समय देवऋषि नारद वहां से गुजर रहे थे। उनके हाथ में पारिजात का फूल था,, जिसे उन्होंने रुक्मिणी को दे दिया। रुक्मिणी ने इस फूल को अपने बालों में लगा लिया था।

इसका कारण भी बड़ा दिलचस्‍प है। जिस पेड़ को श्रीकृष्ण ने द्वारका में स्‍थापित किया था, उसे पांडु पुत्र अजुर्न किंतूर ले आए। हुआ यूं कि कुंती ने अपने पुत्र अर्जुन से शिवपूजन के दौरान शिवजी पर पारिजात के पुष्प अर्पित करने की इच्छा जाहिर की। उनकी इच्‍छा को मानते हुए वे द्वारका से पूरा का पूरा पारिजात वृक्ष ही उठा लाए और उसे किंतूर गांव में स्थापित कर दिया। तब से यह पेड़ किंतूर गांव में ही लगा है।

इस स्‍वर्ग के पेड़ के दर्शन करने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। हालांकि, इसके संरक्षण को लेकर काम चल रहा है। यह धरती पर कान्‍हा की आखिरी निशानी है, जिसे देखना अपने आप में अद्भुत है।