चिलचिलाती धूप और उमस वाली गर्मी में हर किसी का गला सूखने लगता है. ऐसे में लोग कुछ ठंडा पीना चाहते हैं. आज मार्केट में भले ही तमाम तरह की सॉफ्ट ड्रिंक्स और जूस उपलब्ध हैं, लेकिन रूह अफ़ज़ा का स्वाद सबसे ऊपर रहता है. हर कोई रूह अफ़ज़ा को अपने-अपने तरीके से पीना पसंद करता है. कोई इसे पानी और बर्फ के साथ शरबत की तरह पीता है तो कुछ दूध में मिलाकर इसका लुत्फ उठाते हैं. आज मार्केट में रूह अफ़ज़ा शरबत के अलावा बहुत से और प्रोडक्ट्स भी आ गए हैं. जैसे रूह अफ़ज़ा आइसक्रीम, रूह अफ़ज़ा श्रीखंड, रूह अफ़ज़ा योगर्ट. हर किसी को रूह अफ़ज़ा का स्वाद बेहद पसंद होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रूह अफ़ज़ा का इतिहास क्या है. कैसे रूह अफ़ज़ा मार्केट में आया. आइए जानते हैं इसकी दिलचस्प कहानी.

साल था 1907.. जब यूनानी हर्बल चिकित्सा और हमदर्द दवाखाना के संस्थापक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने इस शानदार शरबत का इजाद किया. 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी से लोग परेशान रहने लगे थे. उस वक्त कई लोग स्ट्रोक, डायरिया और डिहाइड्रेशन के चलते दम तोड़ रहे थे. इसी को देखते हुए हाफिज अब्दुल मजीद एक ऐसी दवाई बनाना चाहते थे जिसे लोग हर रोज गर्मी में पी सकें. बस यहीं से देश को रूह अफ़ज़ा मिला.

आज रूह अफ़ज़ा को भले ही शरबत के रूप में मार्केट में बेचा जा रहा है, लेकिन एक वक्त था जब इसे दवाई की तरह इस्तेमाल किया जाता था. दरअसल, गर्मी की वजह से बीमार पड़ रहे लोगों को हकीम अब्दुल मजीद रूह अफ़ज़ा की खुराक देने लगे. लू और गर्मी से शरीर को बचाने में रूह अफ़ज़ा बेहद शानदार साबित हुआ. देखते ही देखते रूह अफ़ज़ा ने लोगों के दिलों में अपनी एक अलग जगह बना ली. चूंकि, रूह अफ़ज़ा पीने में स्वादिष्ट लगता था और गर्मी से शरीर का बचाव करता था, इसलिए धीरे-धीरे ये हर घर का हिस्सा बनता चला गया.