जी-20 सम्मेलन से इतर सऊदी अरब और भारत के बीच इंडिया-मिडल ईस्ट कॉरिडोर को लेकर सहमति बनी। इसके जरिए अमेरिका और यूरोप तक गलियारा बनाने की तैयारी है, जिससे कारोबार आसान होगा। नरेंद्र मोदी सरकार पर हिंदुत्व की राजनीति के आरोप लगते हैं और उसके बाद भी इस्लामिक दुनिया का झंडाबरदार मुल्क सऊदी अरब साथ आया है तो यह पाकिस्तान के लिए करारा झटका है। यही नहीं पाक अखबार ‘डॉन’ ने तो साफ कहा कि अब हमारे मुसलमान भाई भी कारोबार के लिए भारत के साथ चले गए हैं। यह हमारे लिए सोचने की बात है कि हम कमजोर होंगे तो कोई साथ नहीं देगा।

भारत के लिए सऊदी अरब, यूएई जैसे मुस्लिम देशों से रिश्ते बेहतर होना एक बड़ी उपलब्धि है। यह कूटनीतिक रिश्तों में यूटर्न आने जैसी भी स्थिति है। विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि भारत और खाड़ी के देशों के रिश्तों में सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट 2017 में आया था। तब मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन यानी OIC ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भाषण के लिए बुलाया था। इस पर पाक ने ऐतराज भी जताया, लेकिन संगठन ने सुषमा स्वराज को भेजा न्योता वापस नहीं लिया। सुषमा गईं और ठाठ से भारत का पक्ष भी रखा था, लेकिन पाकिस्तान विरोध करते हुए नहीं आया।

यह बड़ी बात थी कि मुस्लिम देशों के संगठन ने पाकिस्तान के ऊपर भारत को तरजीह दी। ऐसा होना इसलिए उपलब्धि था क्योंकि 50 साल पहले 1967 में इसी संगठन ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद को अधिवेशन में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया था। तब पाक के जुल्फिकार अली भुट्टो को उसमें जाना था। उन्होंने कहा था कि यदि भारत के नेता को भाषण का मौका मिला तो फिर कमरे से ही नहीं निकलेंगे। अंत में फखरुद्दीन अली अहमद को बिना संबोधन के ही लौटना पड़ा था।

उस इतिहास को याद करें तो साफ है कि कभी भारत की कीमत पर मुस्लिम देश पाकिस्तान के साथ चले गए थे। आज उसी पाक की कीमत पर भारत से रिश्ते आगे बढ़ा रहे हैं। रणनीतिक साझेदार बने हैं और कूटनीतिक रिश्ते भी मजबूत हुए हैं। इसका एक उदाहरण I2U2 संगठन भी है, जिसमें भारत, अमेरिका, इजरायल और यूएई शामिल हैं। कुछ जानकार मानते हैं कि इसकी वजह अरब देशों की मजबूरी भी है। उन्हें लगता है कि अकेले तेल के भरोसे ही अर्थव्यवस्था खड़ी नहीं होगी। इसलिए वे चीन में उइगुरों के मसले पर चुप हैं और भारत के भी आंतरिक मामलों से बचते हुए आगे बढ़ रहे हैं।