नई दिल्ली| संसद के विशेष सत्र में दोनों सदनों से 128वां संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अब आधे राज्यों की विधानसभाओं में उसका अनुमोदन कराना होगा. उसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से इस कानून को नोटिफाई किया जायेगा. उसके पहले अगर वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल खत्म भी हो जाये तो भी इस कानून की वैधता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन इस Constitution Amendment को हकीकत में बदलने और महिलाओं का Parliament में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के सपने को साकार करने में कई कानूनी अडचनें बाकी हैं.
नए कानून के क्लॉज 5 के तहत सीटों के परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू होगा. 1948 के कानून के अनुसार भारत में हर दस साल में जनगणना होती है. कोविड की वजह से 2021 की जनगणना में विलम्ब हो गया है. गांव, कस्बे, तहसील और जिला की प्रशासनिक सीमाओं को तय करने के तीन महीने के बाद जनगणना शुरु होती है. रजिस्ट्रार जनरल ने जनगणना के लिए प्रशासनिक सीमायें तय करने की तारीख 1 जनवरी 2024 तक बढ़ा दी है. लेकिन उस समय लोकसभा के आम चुनावों की वजह से जनगणना का काम बाद में ही शुरू होगा. इस बार पहली बार Digital Census होगी, जो नई सरकार के गठन के बाद 2025 में ही पूरी हो पायेगी.
संविधान के अनुच्छेद-82 में हर जनगणना के बाद Loksabha की सीटों के परिसीमन का नियम है. लोकसभा में अभी 543 सीटें हैं, जो 1971 की जनगणना पर आधारित हैं. संविधान के 42वें संशोधन से परिसीमन की प्रक्रिया को सन् 2000 तक रोक दिया गया था. सन् 2002 में जस्टिस कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में Delimitation Commission बना था. लेकिन 84वें संविधान संशोधन से परिसीमन की प्रक्रिया को सन 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. उसके लिए संसद के कानून से परिसीमन आयोग का गठन होगा जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज होंगे. आम जनता से मिले फीडबैक के आधार पर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट गजट में प्रकाशित होती है. इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश से राजाज्ञा जारी की जाती है. संविधान के अनुच्छेद-329 के अनुसार इसे अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती. 1971 की जनगणना के अनुसार हर 10 लाख की आबादी में एक लोकसभा सांसद सीट का गठन हुआ था. 50 साल बाद आबादी लगभग 3 गुना बढ़ जायेगी. बढ़ी आबादी के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों में परिसीमन के बाद सीटों की संख्या ज्यादा बढ़ सकती है. इसकी वजह से दक्षिण भारत के राज्यों में असंतोष बढ़ने पर परिसीमन के साथ महिला आरक्षण कानून लागू करने में अड़चनें बढ़ सकती है.
सरकारी नौकरियों में SC/ ST/ OBC और महिलाओं को आरक्षण के वर्तमान सिस्टम में तीन तरह के विवाद हैं. पहला-जातियों की संख्या के आधार पर आरक्षण को बढ़ाने की मांग. दूसरा- रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी में उपवर्गों की पहचान. तीसरा- जातियों के प्रतिनिधित्व का आकलन और क्रीमीलेयर की पहचान. इन सारे विवादों की जड़ में जनगणना के सामाजिक और आर्थिक आंकड़ों का अभाव है. संविधान के अनुसार जनगणना का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है, लेकिन राज्यों में मनमाने तरीके से जातिगत जनगणना शुरु हो गई है. राजद समेत कई दलों के नेताओं ने ओबीसी महिलाओं के आरक्षण के लिए संसद में मांग की. महिला आरक्षण का कानून 2029 के चुनावों के पहले लागू करने की बात हो रही है. उस समय इसके दायरे में ओबीसी की महिलाओं को शामिल करने की मांग होने पर Caste Census के आंकड़े अहम साबित हो सकते हैं.