तालिबान और इस देश में महिलाओं की हालत के बारे में पूरी दुनिया वाकिफ है। इन दिनों तालिबान में महिलाओं के अधिकारों को लेकर जंग छिड़ी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भी तालिबान में महिला अधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा छिड़ा। करीब 11 देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, ब्राजील, संयुक्त अरब अमीरात, स्विट्जरलैंड, इक्वाडोर, अल्बानिया और माल्टा ने तालिबान की निंदा की। हालांकि अभी इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन हम भारत देश की महिलाओं को उन सुरक्षा और न्याय से जुड़े अधिकारों के बारे में बता रहे हैं, जो भारतीय संविधान और कानून के तहत उन्हें दिए गए हैं और जिनके बारे में हर भारतीय महिला को जरूर पता होना चाहिए। आइए विस्तार से जानते हैं…

कानून के अनुसार, दहेज देना, मांगना और लेना अपराध है। इसके लिए महिला को शारीरिक प्रताड़ना देना भी अपराध है। इससे महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए दहेज अधिनियम 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 बनाया गया है। IPC की धारा धारा 3 और 4 में दहेज देना, लेना, मांगना दंडात्मक अपराध है। ऐसा करने पर दर्ज FIR गैर-जमानती है। दहेज के लिए महिला को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और यौन रूप से प्रताड़ित करना, ताने मारना धारा 498A के तहत क्राइम है। घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं से मारपीट करना क्राइम है। ऐसा करने वाले को सजा और जुर्माना दोनों झेलना पड़ेगा।

महिलाओं को भारतीय कानून द्वारा धारा 164 के तहत एक अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के अनुसार, दुष्कर्म पीड़िता अपने बयान केवल महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज करा सकती है। उस समय कोई आदमी मौजूद नहीं होना चाहिए। पुलिस अधिकारी या महिला कांस्टेबल के रहते बयान लिखवा सकती है। वह अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करके बयान देने वाली जगह को यह कहकर सीमित कर सकती है कि वह किसी तीसरे शख्स के सामने बयान दर्ज नहीं करवाना चाहती। अगर कोई पीड़िता ऐसा कह देती है तो मजिस्ट्रेट को उसकी निजता का ध्यान रखना ही पड़ेगा। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, ताकि रेप पीड़िता का नाम और उसकी पहचान सार्वजनिक न हो जाए।

कानून के अनुसार, महिलाओं की सहमति के बिना उनकी फोटो, वीडियो इंटरनेट या सोशल मीडिया पर अपलोड करना अपराध है। ऐसा करने वाले के खिलाफ महिलाएं शिकायत दर्ज करा सकती हैं। वे कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती हैं। उस स्थिति में जज सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT एक्ट) की धारा-67 और 66-E के तहत फोटो हटाने का आदेश दे सकता है। अनुमति के बिना निजी पलों की तस्वीर खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करना निषेध कर सकता है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-C के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर बिना अनुमति क्लिक करना या अपलोड करना क्राइम है।

भारतीय महिलाओं को वर्क प्लेस पर सुरक्षा से जुड़ा अधिकार भी मिला हुआ है। ऑफिस में या किसी कार्यस्थल पर महिला शारीरिक या मानसिक शोषण का शिकार होती है तो वह आरोपी के खिलाफ शिकायत कर सकती है। यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को वर्क प्लेस पर सुरक्षा मिलती है। एक्ट के तहत इसके लिए एक कमेटी गठित करनी होगी। सितंबर 2012 में लोकसभा और फरवरी 2013 में राज्यसभा में यह कानून पारित हुआ, लेकिन कानून के तहत 3 महीने के अंदर ही शिकायत की जा सकती है। कंपनी में 10 या इसे अधिक कर्मचारियों में महिला कर्मचारी सिर्फ एक है तो भी कंपनी को कमेटी बनानी होगी। वहीं अगर महिला को लगे कि कमेटी उसके लिए कुछ कर नहीं पा रही तो वह सीधे जिला शिकायत समिति के पास जा सकती है। महिला न कर पाए तो उसकी तरफ से कोई दूसरा भी शिकायत कर सकता है।

कानून के तहत, भारतीय महिलाओं को कहीं भी बैठकर जीरो FIR दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है। अगर महिला किसी कारण से पुलिस स्टेशन नहीं आ सकती तो वह ईमेल करके या डाक चिट्ठी भेजकर शिकायत दर्ज करा सकती है। शिकायत पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त को दी जा सकती है। रेप पीड़िता किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो FIR दर्ज करा सकती है। वहीं कोई पुलिस थाना प्रभारी उसकी FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता। न ही वह यह कह सकता है कि जहां रेप हुआ, वह क्षेत्र उसके थाने के दायरे में नहीं आता।

भारतीय कानून के तहत, बयान दर्ज न करने, तोड़-मरोड़ कर पेश करने, पुलिस कर्मियों द्वारा अपमानित किए जाने या शिकायत दर्ज करने से इनकार किए जाने की स्थिति में महिलाओं को कानूनी सलाह लेने का अधिकार प्राप्त है। वह अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कानूनी सलाह की मांग कर सकती है और सरकार को आपको कानूनी सहायत मुहैया करानी होगी।

कानून के तहत, महिलाओं को देरी से शिकायत दर्ज कराने का अधिकार भी प्राप्त है। दुष्कर्म होने की स्थिति में महिलाएं अपने इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में मौके पर शिकायत देना या बयान लिखवाना संभव नहीं होता। सर्वोच्च न्यायालय ने एक केस में फैसला देते हुए कहा था कि रेप या छेड़छाड़ की घटना को काफी समय बीत जाने के बाद भी महिलाएं शिकायत देकर केस दर्ज करा सकती हैं। बयान भी दर्ज कर सकती हैं।

बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना के काफी समय बीत जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है। बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना है, इसलिए उसका सदमे में जाना और तुरंत इसकी रिपोर्ट ना लिखवाना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के लिए डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।

कानून के तहत, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 बनाया गया है, जो महिलाओं को गर्भपात कराने का अधिकार देता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम 1994 के तहत प्रेग्नेंसी से पहले या उसके बाद सेक्स का सेलेक्शन प्रतिबंधित है। कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का अधिकार भी इस कानून के तहत महिलाओं को प्राप्त है।

भारतीय तलाक अधिनियम 1969 के तहत महिलाओं को शादी को खत्म करने का अधिकार प्राप्त है। इस तरह के मामले निपटाने के लिए, मामलों को दर्ज करने और सुनवाई करने के लिए फैमिली कोर्ट बनाई गई हैं, जिनमें महिलाएं याचिका दायर कर सकती हैं।