बंगलूरू । कोरोना महामारी ने बहुत से परिवारों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी है। बच्चों की फीस तक जमा करने के लिए अभिभावकों को स्कूलों का मुंह देखना पड़ रहा है। स्कूल हैं कि बिना फीस छात्रों को पढ़ाना ही नहीं चाह रहे। एक ऐसा ही मामला कर्नाटक से सामने आया है, जहां स्कूल फीस न जमा होने पर ने छात्रा को क्लास से बाहर कर दिया। यहां तक कि बोर्ड परीक्षा में उसे हॉल टिकट देने से भी मना कर दिया। आहत होकर छात्रा ने आत्महत्या तक का प्रयास कर डाला, लेकिन अब उसी छात्रा ने 10वीं की सप्लीमेंट्री बोर्ड परीक्षा में टॉप करके सभी की बोलती बंद कर दी है। 

कर्नाटक की इस छात्रा का नाम ग्रीष्मा नायक है। इंडियन एक्सप्रेस से हुई बातचीत में ग्रीष्मा ने बताया कि उन्होंने साल की शुरुआत में ही बोर्ड परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन कोरोना के कारण घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रही और फीस नहीं जमा हो पाई तो स्कूल वालों ने उसे क्लास से बाहर कर दिया। यहां तक कि परीक्षा में बैठने के लिए हॉल टिकट भी नहीं दिया गया। जब मुझे पता चला कि मेरा नाम परीक्षा के लिए पंजीकृत ही नहीं किया गया है, मैं टूट गई और आत्महत्या करने का विचार बना लिया। 

ग्रीष्मा के अभिभावकों ने अधिकारियों से अपील की, जिसके बाद मामला तत्कालीन शिक्षा मंत्री एस सुरेश कुमार के पास पहुंचा। उन्होंने आदेश दिया कि किसी भी विद्यार्थी को फीस की वजह से परीक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा। इसके बाद ग्रीष्मा को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली और उन्होंने टॉप कर अपनी लगन का लोहा मनवाया और दूसरों के लिए रोल मॉडल बन गईं। उन्होंने 95.84 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। 

एक किसान की बेटी ग्रीष्मा अब पीयू के कॉलेज में एडमिशन लेने का प्रयास कर रहीं हैं। उनके माता-पिता का कहना है कि ग्रीष्मा का सपना डॉक्टर बनने का है, वह इसी सपने को पूरा करने के लिए दिनरात मेहनत कर रही है। 

जबकि, इस मामले में स्कूल की प्रधानाध्यापिका विजया टी मूर्ति का कहना है कि यह आरोप बेबुनियादी है कि स्कूल ने ग्रीष्मा को पीरक्षा देने की इजाजत नहीं दी। हमने 340 छात्रों का बिना परेशानी पंजीकरण किया था तो हमें एक छात्रा से क्या परेशानी थी? उन्होंने कहा कि हमने उनके माता-पिता को बुलाया था, लेकिन वे आए ही नहीं और न ही कोई बातचीत की।