नई दिल्ली। 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमास के हमलों के बाद से मध्य-पूर्व समेत दुनियाभर के कई देशों में भूचाल आया हुआ है। हालांकि, युद्ध के सात हफ्ते बाद दोनों पक्ष आंशिक युद्ध विराम और बंधकों की आंशिक रिहाई पर सहमत हुए हैं। इससे इजरायल-हमास युद्ध फिलहाल थमा हुआ है लेकिन चार दिन बाद फिर से युद्ध भड़कने की प्रबल संभावना है क्योंकि इजरायल पहले ही कह चुका है कि जब तक वह हमास का खात्मा नहीं कर देता, तब तक स्थाई रूप से युद्ध नहीं रोक सकता। यानी दोनों पक्षों के बीच स्थायी युद्धविराम की संभावनाएं फिलहाल कोसों दूर दिख रही हैं और मिडिल-ईस्ट में फिर से युद्ध के काले घने बादल मंडरा रहे हैं।
इस युद्ध की वजह से मध्य पूर्व से होकर एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली मेगा-कनेक्टिविटी परियोजनाएं खतरे में पड़ गई हैं। इसमें, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जिसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा माना जाता है और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा (IMEC) जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। माना जाता है कि चीन के CPEC की काट में नई दिल्ली द्वारा IMEC प्रोजेक्ट इसी वर्ष जी-20 शिखर सम्मेलन में शुरू की गई है। इन दोनों गलियारों को चीन-अमेरिका के व्यापारिक संघर्ष के रूप में भी देखा जाता है,लेकिन गाजा युद्ध की जटिलता ने इस पर व्यापक असर डाला है।
CPEC की परिकल्पना चीन के कशहर शहर को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने और अरब सागर तक चीन की सीधी पहुंच बनाने पर टिकी है। हालांकि, यह परियोजना भौगोलिक रूप से चीन के सुदूर पश्चिम और पाकिस्तान तक ही सीमित है, लेकिन इसकी बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं। प्रोजेक्ट का अंतिम लक्ष्य खाड़ी देशों के साथ व्यापार के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करना है, विशेष रूप से चीन की ओर जाने वाले तेल शिपमेंट के लिए वैकल्पिक रास्ता उपलब्ध कराना है।
एक दशक से भी अधिक समय पहले लॉन्च किया गया सीपीईसी, भारत की नई पहल आईएमईसी पर बढ़त बनाए हुए है। सीपीईसी प्रोजेक्ट में सड़क और रेलवे से जुड़ी कई परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। खासकर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के आसपास बुनियादी ढांचों का विकास हो चुका है। इसके विपरीत, आईएमईसी अभी भी वैचारिक स्तर पर है।
सीपीईसी की ही तरह आईएमईसी भी महत्वाकांक्षी है; इसका मार्ग CPEC से भी लंबा है, जिसमें खाड़ी देश और इजरायल शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट में यहूदी देश को शामिल करने से पश्चिमी देशों से होने वाले व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है। हालाँकि, क्षेत्र में स्थायी तनाव और इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की वजह से इस प्रोजेक्ट को कई नुकसान होने की भी आशंका जताई गई है। अब नए संघर्ष से आईएमईसी पर प्रभाव पड़ रहा है। कार्य योजना में समझौता ज्ञापन पर आगे बढ़ने के लिए दो महीने की समय सीमा निर्धारित की गई थी, जो समाप्त हो चुकी है लेकिन इस पर कोई प्रगति नहीं हो पा रही है।
सीपीईसी और आईएमईसी के बीच तुलना करना मुश्किल है। हालांकि, सीपीईसी की परियोजनाएं धरातल पर उतर रही हैं लेकिन पाकिस्तान पर भारी कर्ज, जिसका एक बड़ा हिस्सा चीन (लगभग 100 अरब डॉलर के कुल कर्ज का एक तिहाई) का बकाया है, बलूच विद्रोहियों और पाकिस्तानी तालिबान से सुरक्षा संबंधी चिंताएं, साथ ही चीन की बढ़ती आशंकाओं के कारण यह प्रोजेक्ट ठिठका पड़ा है। इस तरह IMEC अभी गर्भ में ही दम तोड़ता नजर आ रहा है।
सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें तो गाजा युद्ध की वजह से IMEC प्रोजेक्ट पर गंभीर खतरे नजर आ रहे हैं क्योंकि पूरे क्षेत्र में संघर्ष एक यथार्थवादी और वास्तविक चिंता का विषय है। हालाँकि, ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने हाल ही में इस संघर्ष में सीधी भागीदारी से इनकार किया है। इसी तरह हिजबुल्लाह ने भी एक सीमित क्षेत्र में ही और युद्ध के किनारे के इलाकों में ही आक्रमण की धमकी दी है। ऐसे में गाजा संघर्ष के व्यापक होने की संभावना कम लगती है। बावजूद इसके, IMEC के लिए स्थितियां फिलहाल अनुकूल नहीं दिखती हैं।
विश्व बैंक की एक मूल्यांकन रिपोर्ट मौजूदा समय में ईनर्जी मार्केट और कमोडिटी मार्केट में बड़ी बाधा का इशारा कर रही है। रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि मौजूदा ईनर्जी मार्केट 1973 के अरब तेल प्रतिबंध, 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध और 1991 के कुवैत आक्रमण जैसी घटना की याद दिला रहा है, जब दुनिया ने गंभीर तेल संकट झेला था।