किसान आंदोलन, 26 नवंबर को दूसरे साल में प्रवेश कर जाएगा। बुधवार को आंदोलन का 349वां दिन है। खासतौर से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान व दिल्ली में किसानों पर नजर रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बलों की तैनाती करनी पड़ी है। स्थानीय पुलिस की नफरी का करीब 30 फीसदी हिस्सा किसानों के ‘बंदोबस्त’ में लगा है। कब, कहां पर, भाजपा नेताओं को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ जाए, पुलिस इसी ड्यूटी में लगी रहती है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में खुफिया तंत्र का ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद ही ‘नेताजी’ बाहर निकल रहे हैं। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों तक को सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए खुफिया तंत्र की रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता है। 29 नवंबर से दिल्ली में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ‘एसकेएम’ ने एलान किया है कि 29 नवंबर से संसद सत्र के अंत तक 500 चयनित किसान, ट्रैक्टर ट्रॉलियों में रोजाना शांतिपूर्ण और पूरे अनुशासन के साथ संसद जाएंगे। इसके लिए दिल्ली में केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात होंगे।

सीएम व केंद्रीय मंत्रियों तक को झेलना पड़ा किसानों का विरोध
किसान आंदोलन के विरोध का सामना मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक को करना पड़ा है। हरियाणा, पंजाब, यूपी व राजस्थान में भाजपा नेताओं को अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों की तैयारी किसान आंदोलन को देखकर ही तय करनी पड़ती है। हरियाणा के करनाल में किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल का हेलीकॉप्टर तक नहीं उतरने दिया। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को कई घंटे तक एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने दिया गया। पार्टी अध्यक्ष ओपी धनखड़ को भी इसी तरह से किसानों का आक्रोश झेलना पड़ा है। हांसी में राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा पर मामला दर्ज कराने के लिए किसान अड़े हैं। पिछले दिनों पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर को किलोई के शिव मंदिर में रोक दिया गया। प्रदेश के कई दूसरे मंत्रियों और पदाधिकारियों के साथ हाथापाई व धक्कामुक्की की घटनाएं सामने आई हैं।

किसानों का कहना था कि जब भाजपा नेताओं को गांव में घुसने से मना किया गया है तो वे इसका उल्लंघन क्यों कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में जब किसानों ने केंद्रीय मंत्री को काले झंडे दिखाए तो वहां बड़ी घटना हो गई। किसानों को जीप से कुचलकर मारने के मामले की जांच हो रही है। मध्यप्रदेश में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जब अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे तो किसानों ने उनका विरोध किया। पश्चिमी यूपी में भी किसानों द्वारा भाजपा के मंत्रियों का कड़ा विरोध किया जा रहा है।

किसानों पर ही लगी रहती है पुलिस और खुफिया तंत्र की नजर
एक शीर्ष आईपीएस अधिकारी, जो केंद्र में प्रतिनियुक्ति के जरिए अहम जिम्मेदारी संभालने के बाद हरियाणा में बड़े पद पर तैनात हैं, उनका कहना है कि किसान आंदोलन में पुलिस का प्रयास यह रहता है कि कानून व्यवस्था न बिगड़े। यह बात सही है कि तीस फीसदी पुलिस, किसान आंदोलन में ही लगी रहती है। जब किसी भी मंत्री या पदाधिकारी का विरोध होता है तो वहां दोनों पक्षों के बीच उग्र तनाव की आशंका बनी रहती है। पुलिस, ऐसी स्थिति को हर सूरत में टालने का प्रयास करती है। खुफिया तंत्र, अपने तरीके से सूचनाएं जुटाता है। किसान आंदोलन में इस तंत्र की जिम्मेदारी भी काफी बढ़ गई है। किसान, कब और कहां पर एकत्रित होंगे, किस नेता को निशाना बनाया जा सकता है, विरोध का तरीका क्या रहेगा, इन सभी बातों का पता खुफिया तंत्र अच्छे से लगाता है। यदि किसी एक जिले में कोई बड़ा प्रदर्शन है तो दूसरे जिलों से पुलिस बुलानी पड़ती है। कुछ ऐसे मौके भी आते हैं जब विरोध प्रदर्शन में पुलिस की संख्या कम पड़ जाती है तो इसके लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की मदद ली जाती है। स्थिति पर काबू पाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर से सशस्त्र पुलिस को बुलाते हैं। अब किसान आंदोलन का एक साल पूरा होने जा रहा है। एसकेएम ने अपनी भावी रणनीति की घोषणा कर दी है। कहीं पर घेराव तो कहीं हल्लाबोल होगा। किसान महापंचायत भी हो रही हैं। इसके मद्देनजर, लोकल पुलिस नए बंदोबस्त में जुट गई है।

किसान संगठनों ने किया नई रणनीति का एलान
28 नवंबर को, मुंबई के आजाद मैदान में एक विशाल किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। यह पंचायत संयुक्त शेतकारी कामगार मोर्चा (एसएसकेएम) के बैनर तले 100 से अधिक संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित होगी। 26 नवंबर को किसान आंदोलन का एक साल पूरा होने जा रहा है। इसके मद्देनजर, दिल्ली के सभी मोर्चों पर और पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित होंगे। एसकेएम ने इन कार्यक्रमों में, किसानों, श्रमिकों, कर्मचारियों, खेतिहर मजदूरों, महिलाओं, युवाओं और छात्रों के शामिल होने का दावा किया है। 29 नवंबर से दिल्ली में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा। एसकेएम ने निर्णय लिया कि 29 नवंबर से संसद सत्र के अंत तक 500 चयनित किसान, रोजाना ट्रैक्टर ट्रॉलियों में शांतिपूर्ण और पूरे अनुशासन के साथ संसद जाएंगे। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, लखनऊ में 22 नवंबर को एतिहासिक किसान महापंचायत आयोजित होगी। कई दूसरे राज्यों में भी महापंचायतों के आयोजन का कार्यक्रम तय किया गया है।