मेरठ। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक-एक सीट की समीक्षा की जा रही है। प्रदेश सरकार के दो मंत्री चुनाव जीते हैं। ऐसे में जल्द ही मंत्रीमंडल का विस्तार भी होगा। जिन जिलों में पार्टी की हालत खस्ता हुई है, वहां के मंत्रियों का प्रदर्शन भी देखा जाएगा और तय किया जाएगा कि किसकी कुर्सी रहेगी और किसकी कुर्सी जाएगी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में हार हुई है, वहां मंत्री कौन था? और उनके क्षेत्र में पार्टी को फायदा हुआ या नुकसान? कुछ मंत्री अपनी विधानसभा तक हार गए। जबकि कुछ ऐसे भी थे, जो मामूली अंतर से ही भाजपा को बढ़त दिला सके, जबकि उनकी अपनी जीत बड़ी थी।
मेरठ जिले से प्रदेश सरकार में दो मंत्री हैं। दिनेश खटीक और सोमेंद्र तोमर। यहां भाजपा की जीत जरूर हुई है, लेकिन मार्जिन बहुत ही कम है। लाज कैंट क्षेत्र ने बचाई जहां भाजपा को लगभग एक लाख वोटों की बढ़त मिली। ऊर्जा एवं अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर मेरठ दक्षिण से विधायक हैं। यहां भाजपा को समाजवादी पार्टी के मुकाबले 20473 वोट कम मिले।
वहीं, दूसरे मंत्री दिनेश खटीक हस्तिनापुर से विधायक हैं। उनकी विधानसभा बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में आती है। यहां से रालोद प्रत्याशी चंदन चौहान चुनाव लड़ रहे थे। हस्तिनापुर में रालोद प्रत्याशी को 27047 वोटों की बढ़त मिली। यह बढ़त चंदन चौहान की जीत के लिए अहम साबित हुई।
सहारनपुर से भी योगी सरकार में दो मंत्री हैं। इसमें जसवंत सैनी और ब्रजेश सिंह हैं। जसवंत सिंह संसदीय मामलों के मंत्री और औद्योगिक विकास विभाग के राज्यमंत्री हैं। ब्रजेश सिंह लोक निर्माण विभाग के राज्यमंत्री हैं। इनके जिले में भाजपा को करारी मात का सामना करना पड़ा है। यहां से कांग्रेस ने 1984 के बाद जीत हासिल की है। कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद ने भाजपा के राघवलखन पाल को हराया। ब्रजेश सिंह देवबंद से विधायक हैं।
यहां भाजपा को 2019 के मुकाबले आठ हजार कम वोट मिले। हालांकि यहां से भाजपा ने करीब 21 हजार की बढ़त हासिल की। जिले के दो-दो मंत्री होने का लाभ पार्टी को जिले की अन्य विधानसभा में नहीं मिला और पार्टी लगातार दूसरी बार सहारनपुर में चुनाव हार गई। देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों मंत्रियों की कुर्सी बचती है या फिर हार का ठीकरा इनके सिर फोड़ा जाता है।
मुजफ्फरनगर से कपिल देव अग्रवाल मंत्री हैं। वह व्यवसायिक शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं। मुजफ्फरनगर शहर से विधायक हैं। यहां पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। भाजपा जीती जरूर लेकिन अंतर मात्र 801 वोटों का रहा। कपिल देव अग्रवाल की 2022 में अपनी जीत 15 हजार से अधिक वोट से हुई थी। दूसरी विधानसभाओं में भी कपिल देव अग्रवाल का कोई प्रभाव नजर नहीं आया। ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार में कपिल देव अग्रवाल के विकल्प पर भी गौर किया जा सकता है।
रामपुर से भी एक मंत्री हैं बलदेव सिंह औलख। उनके पास कृषि राज्यमंत्री का प्रभार है। जिले में पार्टी को करारी शिकस्त हुई है। लेकिन औलख की विधानसभा बिलासपुर में पार्टी 19867 वोटों से पार्टी जीती। औलख जिले में अपनी पार्टी को जीत दिलाने में नाकाम रहे। 2022 के चुनाव के बाद यहां हुए उप चुनाव में यह सीट भाजपा के पास चली गई थी। अब सपा ने इस सीट पर दोबारा से कब्जा कर लिया।
माना जा रहा है कि औलख सिख समुदाय के इकलौते विधायक व मंत्री हैं, इस लिए इनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं है। गाजियाबाद से मंत्री हैं सुनील शर्मा। सुनील शर्मा साहिबाबाद से विधायक हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को एक लाख 91 हजार की बढ़त मिली। जानकारों का कहना है कि सुनील शर्मा की कुर्सी पर कोई खतरा फिलहाल नहीं है।