चंडीगढ़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। बड़ी संख्या में पंजाब के किसान इन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में शामिल थे। ऐसे में ठीक गुरुपर्व के लिए प्रधानमंत्री द्वारा इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान करना कई राजनीतिक संकेत भी देता है। खासतौर पर यह देखते हुए कि पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। आइए जानते हैं पीएम का यह फैसला पंजाब के चुनावी माहौल में किस तरह का सियासी असर डाल सकता है…
भाजपा के लिए आशा
पिछले करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन के बाद पीएम के इस फैसले पंजाब में भाजपा को आशा की एक नई किरण नजर आने लगी है। कृषि कानूनों को लेकर भाजपा पंजाब में जमीनी स्तर पर काफी विरोध का सामना कर रही थी। इसके चलते उसका 24 साल पुराने सहयोगी पंजाब शिरोमणी अकाली दल से पिछले साल ही अलगाव हो चुका है। इसके अलावा पंजाब के ग्रामीण इलाकों में भी भाजपा का रास्ता मुश्किल हो रहा था। अब पंजाब में भाजपा नरेंद्र मोदी के हालिया बयान से खुद के लिए उम्मीदों को नया जीवन देने की कोशिश करेगी। यह भी गौर करने वाली बात है कि दो दिन पहले ही सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर को खोला गया है। यह फैसला भी सिख समुदाय में भाजपा के लिए अच्छा माहौल बना सकता है।
पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस ने कृषि कानूनों का लगातार विरोध किया है। उसने केंद्र सरकार के इस कानून के खिलाफ पंजाब विधानसभा में दो बार रिजॉल्यूशन भी पास किया था। पीएम द्वारा यह कानून वापस लिए जाने के फैसले पर कांग्रेस श्रेय लेने की लड़ाई में सबसे आगे रहेगी। वह इस बात का दावा करेगी उसने मोदी सरकार को यह फैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया।
मुख्यमंत्री चन्नी ने ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने के लिए पहले ही कई घोषणाएं कर रखी हैं। ऐसे में केंद्र द्वारा कृषि कानून वापस लेने का यह फैसला कांग्रेस सरकार की राह और आसान बनाएगा। हालांकि इस होड़ में वह अकेले नहीं होगा। आम आदमी पार्टी और अकाली दल भी इसका क्रेडिट लेने में उसे भरपूर टक्कर देंगे।
नए राजनीतिक समीकरण
कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के फैसले ने पंजाब में नए राजनीतिक समीकरणों की संभावनाओं को जन्म दे दिया है। इस फैसले से सबसे बड़ी राहत शिरोमणी अकाली को मिली है। कृषि कानूनों पर उसने मोदी सरकार से समर्थन तो वापस ले लिया था। लेकिन अपने कोर वोटर्स में उसकी किरकिरी इस बात के लिए हो रही थी कि उसने कृषि कानून पर ऑर्डनेंस पास करने में मोदी सरकार का समर्थन किया था। इधर चुनाव को देखते हुए अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। उसने 117 में से 20 सीटें बसपा के लिए छोड़ी थीं। हालांकि चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बनने के बाद उसका यह दांव भी नाकामयाब होता नजर आ रहा था। कृषि कानूनों के वापस होने के बाद शिरोमणी अकाली दल को उम्मीद होगी कि वह किसानों के अपने परंपरागत चुनावी क्षेत्र में वापसी करने में कामयाब रहेगा। हालांकि पंजाब में एक बड़ा सवाल अब भी अपनी जगह कायम है। यह सवाल है कि क्या शिरोमणि अकाली दल और भाजपा फिर से एक-दूसरे से गठबंधन करेंगे? सिख और हिंदू मेजॉरिटी वाली विधानसभा में यह गठबंधन खासा कामयाब रहा था। राजनीतिक विशेषज्ञ इस संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं।
कैप्टन और भाजपा गठजोड़ की राह आसान
किसान कानूनों को वापस लिए जाने के फैसले ने एक और संभावना की राह खोली है। यह संभावना है कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के बीच गठजोड़ की राह। पंजाब में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कैप्टन ने कांग्रेस का साथ छोड़कर अपने लिए नया रास्ता तलाश लिया है। उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई है। साथ ही इस बात का भी संकेत दिया है कि अगर कृषि कानून के मुद्दा सुलझ जाता है तो वह भाजपा के साथ सीटों का बंटवारा कर सकते हैं। यह बात गौर करने वाली है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पकड़ पंजाब के शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी है। ऐसे में वह आने वाले चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।
किसान संगठनों का एक्स फैक्टर
संयुक्त किसान मोर्चा में 32 किसान संगठन जुड़े हुए हैं। इनमें से ज्यादातर की जड़ें पंजाब से जुड़ी हैं। किसान कानूनों को वापस लिए जाने के बाद यह सभी विजय के उत्साह में रहेंगे। लेकिन क्या वो इस मामले में मिली अपनी जीत को चुनावी मुद्दे में तब्दील होने देंगे, यह भी एक बड़ा सवाल है। अभी तक इन सभी ने चुनाव लड़ने की संभावनाओं से इंकार किया है। लेकिन राजेवाल गुट जैसे कुछ संगठन हैं जो राजनीतिक मंशा रखते हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इन्हें लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। वहीं अपने धरने की जीत से उत्साहित किसान संगठन भी इस चुनाव में एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं।