नई दिल्ली: जिले में कारीगरों द्वारा तैयार की गई स्पेशल ढोलक की डिमांड अब बढ़ती ही जा रही है. इनके पूर्वज सैकड़ों वर्षों से ढोलक बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. अब नदीम भी इसी कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. उनकी कारीगरी इतनी बेहतरीन है कि कई जिलों से ऑर्डर मिल रहे हैं. नदीम ने लोकल18 को बताया कि वह अपने पुश्तैनी कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. ढोलक बनाने की कला उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी थी.
आज वह ढोलक बनाने के लिए सबसे पहले असम से अलग प्रकार की लकड़ी मांगते हैं. इसके बाद उसकी सफाई करने के बाद दोनों शिराओं पर बड़े आकार के होल करते हैं. फिर इसमें नक्काशी बनाने के बाद रंगीन रंगों से रंगने के बाद बिक्री कर देते हैं. इसके बाद यह ढोलक गुणवत्ता के अनुसार सही रेट पर बिक्री करते हैं. इस समय पर उनका यह कारोबार फर्रुखाबाद ही नहीं, बल्कि प्रदेश के कई जिलों तक फैला हुआ है. इसी व्यवसाय से वह अच्छी कमाई कर लेते हैं.
आज के दौर में भले ही इसका चलन कम हो गया हो, लेकिन इन्हें बनाने वाले कारीगर आज भी इसे बनाकर कमाई कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में ढोलक बनाने के कारीगर अपने परंपरागत कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके यहां एक अलग प्रकार की शीशम और आम की लकड़ी को आग में तपाने के बाद उसमें छोटे-छोटे छिद्र किए जाते हैं. इससे इसके अंदर आने वाली प्रत्येक आवृत्ति मधुर धुन बन जाती है.
प्राचीन समय से ही कोई भी मांगलिक कार्यक्रम हो, कथा का आयोजन, उत्सव, या मनोरंजन, हर जगह पर ढोलक की मौजूदगी होती है. इसकी मुख्य वजह है कि इसकी थाप पर माहौल में चार चांद लग जाते हैं. यही कारण है कि सैकड़ों वर्षों से ढोलक बनाने के इस कारोबार में बहार बनी हुई है. यहां पर 150 रुपए से लेकर दो हजार रुपए तक की ढोलक मिल जाती है.
आम और शीशम की लकड़ी बेहद खास होती है. यह लकड़ी खासकर ढोलक के भाग को बनाने में काम आती है. ऐसे में ढोलक बनाने के लिए मजबूत और टिकाऊ लकड़ी की आवश्यकता होती है. इसको लेकर सबसे सर्वोत्तम लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. फर्रुखाबाद में इन कारोबारियों के पास जब भी ऑर्डर आते हैं, तो ये सभी ग्राहकों को समय पर ऑर्डर की डिलीवरी दे देते हैं.