लखनऊ : यूपी के उपचुनाव में भाजपा ने सभी आठ सीटों पर एक साथ प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। खास बात यह है कि इस बार टिकट देने में पार्टी ने पिछली बार वाली गलती को नहीं दोहराया है।
मनमाने टिकट बंटवारे से लोकसभा चुनाव में झटका खा चुकी भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव में पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह देकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। प्रत्याशियों के जरिये भाजपा ने अखिलेश यादव के पीडीए के दांव का भी जवाब देने का प्रयास किया है। सूची से स्पष्ट है कि कार्यकर्ताओं की पूछ, पुराने वफादारों को जगह और जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है।
सूची से यह भी साफ हो गया है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में मिले झटके से काफी कुछ सीखा है। यही नहीं, पार्टी ने उपचुनाव से यह भी संदेश देने का प्रयास किया है कि वही एक ऐसी पार्टी है जो हिंदुओं की सभी जातियों का सम्मान करने और सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में खिसके पिछड़े वोटबैंक को फिर से वापस पाने की भरसक कोशिश की है। काडर के पुराने राजनीतिक परिवारों को तरजीह देकर यह संदेश दिया है कि पार्टी में काडर कार्यकर्ताओं का सम्मान बरकरार है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण में पार्टी पर काडर की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगे थे। दो सीटों पर ब्राह्मण चेहरे को उतारकर पार्टी ने इस जाति की उपेक्षा के आरोपों को भी झुठलाने का प्रयास किया है।
करहल में नया प्रयोग करते हुए मुलायम सिंह के परिवार से प्रत्याशी उतारकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। एक ओर भाजपा ने अनुजेश के बहाने यह बताने का प्रयास किया है कि यादव भी उसके लिए गैर नहीं हैं। पार्टी यादवों को सम्मानजनक राजनीतिक भागीदारी देने को भी तैयार है। जहां तक अनुजेश का सवाल है तो वह आजमगढ़ से सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अनुजेश के जरिये भाजपा ने यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि अखिलेश की रीति-नीति को लेकर उनके परिवार में भी सब कुछ ठीक नहीं है।
कभी यादव-जाटव जोड़ो अभियान चला चुकी भाजपा सरकार ने स्व. मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण देकर भी यादवों को भाजपा से जोड़ने की कोशिश की है। मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भी यह संदेश दे चुकी है। अब अनुजेश को प्रत्याशी बनाकर भाजपा यह जताना चाहती है कि उसने पश्चिमी यूपी में यादव परिवार के गढ़ में भी अपनी पकड़ बना ली है।
लोकसभा चुनाव 2019 में बदायूं, फिरोजाबाद और कन्नौज सीट जीत चुकी भाजपा राजनीति में धारणाओं का बड़ा महत्व है। इससे अक्सर परिणाम प्रभावित भी होते हैं। हाल में ही निपटा लोकसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है। अब भाजपा उप चुनाव के प्रत्याशियों के जरिये उन धारणाओं को तोड़ने की कोशिश करती दिख रही है। नतीजा क्या होगा यह तो भविष्य में पता चलेगा, लेकिन अनुजेश को उतारकर भाजपा ने यह तो संदेश दे ही दिया है कि अखिलेश की पकड़ अब अपने घर में भी मजबूत नहीं है। अगर वे अपने नजदीकी रिश्तेदार की आकांक्षाओं का सम्मान नहीं कर सकते तो उनसे आम यादवों के लिए अपनी आकांक्षाओं के पूरा होने की अपेक्षा दिवास्वप्न ही है।