यूपी। पीसीएस-जे 2022 भर्ती में हुई गड़बड़ी के मामले में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के 14 कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। सोमवार को अनियमितताओं की जांच के लिए हाईकोर्ट के पहली बार न्यायिक आयोग गठित किए जाने से हुई किरकिरी के बाद इसके आसार बढ़ गए हैं। पीसीएस-जे के 302 पदों पर हुई भर्ती की प्रक्रिया और अनियमितताओं को लेकर यूपीपीएससी की भूमिका शुरू से सवालों के घेरे में है। शुरू में खुद को पाक-साफ बताने वाले आयोग की अभ्यर्थियों ने जब हाईकोर्ट में पोल खोली तो उसे फौरन यू-टर्न मारना पड़ा। हाईकोर्ट में न सिर्फ कॉपियां पेश करनी पड़ीं, बल्कि सभी अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की स्क्रूटनी भी करानी पड़ी।

इसमें कॉपियों की अदला-बदली पकड़े जाने के बाद आयोग ने तीन अधिकारियों को निलंबित किया। एक के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को लिखा गया, जबकि सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ भी विभागीय कार्यवाही शुरू की गई। बावजूद इसके मामला खत्म नहीं होने पर अब पूरे प्रकरण से जुड़े अन्य कर्मचारियों पर भी सख्त कार्रवाई की तैयारी है।

आयोग के सूत्र बताते हैं कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के बाद कोडिंग-डिकोडिंग के साथ नंबर चढ़ाने के लिए कई कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। कर्मचारी हर कॉपी देखते हैं कि कहीं नंबर जोड़ने में कोई चूक तो नहीं हुई है। इसके बावजूद कोडिंग बदल गई और कई अभ्यर्थियों के नंबर भी ठीक से नहीं जोड़े गए। इसके लिए 14 नाम सामने बताए जा रहे हैं।

यूपीपीएससी के 87 साल के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी भर्ती में गड़बड़ियों की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया गया हो। आयोग के खिलाफ बीते दशकों में कई बार गंभीर आरोप लगे। हंगामा हुआ, आंदोलन हुए। कई दिनों तक घेराबंदी भी हुई। इसके बाद जांच में सीबीआई और एसटीएफ को लगाया गया, लेकिन पीसीएस-जे 2022 पहली परीक्षा है, जिसकी जांच न्यायिक आयोग करेगा।

वर्ष 2012 के बाद करीब चार साल का दौर आयोग के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा। पीसीएस समेत कई भर्तियों में धांधली का आरोप लगाते हुए प्रतियोगियों ने बड़ा आंदोलन चलाया। मुद्दा विधानसभा से लेकर संसद तक गूंजा। प्रतियोगियों की याचिका पर सारे दस्तावेजों की पड़ताल के बाद हाईकोर्ट ने यूपीपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव की नियुक्ति को अवैध करार दिया था। तत्कालीन सचिव को भी पद से हटाना गया था। प्रतियोगियों के आंदोलन के दबाव में आई प्रदेश सरकार ने आयोग की 2012 से 2017 के बीच की गईं 588 भर्तियों की सीबीआई जांच का आदेश भी दिया। 2017 में शुरू हुई यह जांच सात साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है।

यह मामला शांत हुआ ही था कि एलटी ग्रेड भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले में तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक को जेल जाना पड़ा। एसटीएफ ने उनकी गिरफ्तारी की थी। अभी इसका शोर थमा भी नहीं था कि आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा का पेपर आउट हो गया। प्रतियोगियों के आंदोलन के बाद परीक्षा निरस्त कर मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी गई है। इस मामले में एसटीएफ ने सोमवार को ही दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पिछले दिनों प्रतियोगियों ने पीसीएस और आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा एक ही दिन कराने को लेकर बड़ा आंदोलन चलाया था, जिसके बाद आयोग को कदम पीछे करने पड़े थे।

बीते रविवार को पीसीएस-2024 प्रारंभिक परीक्षा सकुशल संपन्न हुई है। इससे थोड़ी राहत मिलती कि पीसीएस-जे 2022 भर्ती की न्यायिक जांच का आदेश हो गया। इससे आयोग की साख पर बट्टा लगा ही, पूरी भर्ती प्रक्रिया की शुचिता पर भी गंभीर सवाल भी खड़ा हो गया है।

पीसीएस-जे 2022 भर्ती की न्यायिक जांच के आदेश से प्रतियोगियों में उत्साह है। कई अभ्यर्थियों ने यूपीपीएससी के अध्यक्ष का इस्तीफा भी मांगा है। अभ्यर्थियों का कहना है कि न्यायिक जांच से यूपीपीएससी में व्याप्त भ्रष्टाचार सामने आएगा। आयोग की भर्तियों में हेराफेरी को लेकर लंबे समय से न्यायिक लड़ाई लड़ रहे अवनीश पांडेय ने न्यायिक आयोग के गठन पर खुशी जताते हुए कहा कि सीबीआई पूर्व की कई भर्तियों की बरसों से जांच कर रही है।

यह गति बेहद सुस्त है। काश! इनकी भी न्यायिक जांच की मांग करते। इससे आयोग की सफाई हो जाती, लोगों को न्याय मिल जाता। पीसीएस-जे 2022 के आवेदक रहे प्रशांत पांडेय कहते हैं, न्यायिक जांच का निर्णय प्रथम दृष्टया दर्शाता है कि न्यायालय ने भर्ती में बड़ी खामी देखी है। यह आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल है। आयोग व अध्यक्ष से हम सबका विश्वास उठ गया है। अध्यक्ष को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। न्यायालय का यह आदेश प्रतियोगियों के लिए संजीवनी है। पीसीएस-जे के ही अभ्यर्थी रोहित चौरसिया ने जांच का स्वागत करते हुए कहा कि न्यायिक जांच से पता चलेगा कि छात्रों के साथ किस तरह का अन्याय हुआ है। यह आदेश आयोग की पूरी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

भर्तियों की मंथर गति से जांच कर रही सीबीआई को लेकर भी प्रतियोगियों में आक्रोश है। इनका कहना है कि सीबीआई को हर महीने हाईकोर्ट को बताना चाहिए कि उसकी जांच कहां तक पहुंची। इस मांग को लेकर प्रतियोगी अवनीश पांडेय ने हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की है। अवनीश का कहना है कि लोक सेवा आयोग की 2012 से 2017 के बीच कुल 588 भर्तियों की जांच सीबीआई कर रही है। इन सात वर्षों में सीबीआई सिर्फ सहायक निजी सचिव भर्ती-2010 भर्ती मामले में तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक समेत अज्ञात और पीसीएस-2015 में गड़बड़ी को लेकर अज्ञात के खिलाफ एफआईआर ही लिखा सकी है।