मुजफ्फरनगर। एक तरफ बैंकों के निजीकरण की तैयारी है और दूसरी तरफ कर्मचारियों का टोटा। पिछले पांच साल में 20 फीसदी कर्मचारी कम हो गए हैं। इसकी वजह नई भर्ती नहीं किए जाना है। कर्मचारियों का कहना है कि कई शाखाएं ऐसी हैं, जिनमें कामकाज पूरा करना भी मुश्किल हो रहा है।

यूपी बैंक एंपलाइज यूनियन की जिला शाखा के चेयरमैन मुकेश भार्गव कहते हैं कि सरकार की गलत नीतियों के कारण संशोधन बिल की घोषणा की गई है। बैंक पहले ही कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। शाखाओं का संचालन मुश्किल हो गया है।

यूनाईटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के अध्यक्ष आरपी शर्मा का कहना है कि कर्मचारियों की भर्ती की जानी चाहिए। इससे आमजन का कार्य भी बैंकों में आसानी से होगा। बैंककर्मी अशोक शर्मा का कहना है कि कर्मचारियों की कमी से कार्य प्रभावित हो रहा है। अगर हालात नहीं सुधरे और सरकार ने नीति नहीं बदली तो भविष्य की पीढ़ियों के सामने और अधिक मुश्किल होगी। गौरव किशोर का कहना है कि सरकार को खाली पदों को भरना चाहिए। कई बैंक ऐसे हैं, जिनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं है। इन हालातों में बैंक का कामकाज कैसे आगे बढ़े। बैंककर्मी सचिन चौधरी ने कहा कि बैंकों में भर्ती होनी चाहिए, तभी समस्याओं का समाधान हो सकेगा।

देहात की शाखाओं में सबसे अधिक दिक्कत है। कर्मचारी इन शाखाओं में नहीं जाना चाहते। अगर भेजा जाता है तो सिफारिशों का दौर चलता है या फिर लंबी छुट्टी ले ली जाती है। इसी वजह से देहात क्षेत्र की कई शाखाओं में मुश्किलें हो रही है। एलडीएम राजेश तोमर का कहना है कि बैंकों में कर्मचारियों की कमी है। हर बैंक में इसकी अलग-अलग वजह हैं। वैंकसी नहीं निकालने के कारण भी परेशानी बढ़ी है।

बैंकों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की लगातार कमी हो रही है। दफ्तरी, सफाई, बिल कलेक्शन समेत अन्य पदों पर कर्मचारी कम हो गए हैं।