एबीपी सी-वोटर के 23 दिसंबर तक के सर्वे में 48 प्रतिशत लोगों के अनुसार बीजेपी एक बार फिर सत्ता पर विराजमान हो सकती है. इसके इतर 31 प्रतिशत लोगों को लगता है कि इस बार समाजवादी पार्टी चुनावी जीत हासिल कर सकती है. साथ ही सात प्रतिशत लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें लगता है कि मायावती एक बार फिर वापसी करेंगी और बहुजन समाज पार्टी जीतेगी. 6 प्रतिशत लोगों को कांग्रेस से आस है तो 2 प्रतिशत लोगों को लग रहा है कि विधानसभ त्रिशंकु होने वाली है. इसके अलावा तीन प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने किसी प्रकार की कोई जानकारी ना होने की बात कही है.
आपको बता दें कि एबीपी सी वोटर का 16 दिसम्बर का जो सर्वे था उसमें भाजपा पर विश्वास जताने वालों का प्रतिशत 47 था. अब एक सप्ताह बाद इसमें एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई है और 48 फीसदी जनता को लग रहा है कि बीजेपी जीतेगी. उधर, पिछले सप्ताह भी समाजवादी पार्टी को 31 प्रतिशत लोगों का ही समर्थन मिला था. यानी अखिलेश यादव की कोशिशें तो जारी हैं लेकिन वे जनता को अपनी ओर झुका नहीं पा रहे हैं.
दूसरी तरफ सर्वे में सामने आया है कि बसपा और कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. 16 दिसम्बर के सर्वे के अनुसार 8 प्रतिशत लोगों ने बसपा पर विश्वास जताया था लेकिन एक सप्ताह बाद एक प्रतिशत लोगों की पसंद में बदलाव आ गया है. अब सिर्फ सात प्रतिशत लोग बसपा को जीतता देख रहे हैं. इसके अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं. दो स्प्ताह से कांग्रेस छह प्रतिशत पर ही अटकी हुई है.
भाजपा ने तीन कृषि कानून वापस लेकर किसान मुद्दे को आगामी चुनावी मुद्दों से हटा लिया है. 14 दिसंबर, 16 दिसंबर और 20 दिसंबर के सर्वे में किसान आंदोलन का मुद्दा बनने की बात 25 फीसदी लोग कर रहे थे. लेकिन अब 24 प्रतिशत लोग मान रहे हैं कि यह मुद्दा रहेगा यानी कि इसमें एक प्रतिशत की गिरावट आई है.
ध्रुवीकरण की बात की जाए तो 14 दिसम्बर के सर्वे में 16 प्रतिशत लोगों का मानना था कि ध्रुवीकरण मुद्दा बनेगा. अब 23 दिसम्बर को आए सर्वे में इसमें एक प्रतिशत का इजाफा हो गया है. अब 17 प्रतिशत लोगों को लग रहा है कि ध्रुवीकरण होगा. साथ ही लोगों को लग रहा है कि इस बार कोरोना भी एक बड़ा मुद्दा हो सकता है.
कानून व्यवस्था को भी मुद्दा बनाने की कोशिशें हो रही हैं. पिछले 10 दिनों में इसमें 2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 16 प्रतिशत लोगों को कानून व्यवस्था मुद्दे के तौर पर दिखाई देने लगा है. इसके अलावा सरकार के काम को मुद्दा मानने वालों में कमी आई है. इसके साथ ही प्रधानमंत्री की छवि को लगातार 7 प्रतिशत लोग मुद्दा मान रहे हैं अन्य मुद्दा 10 प्रतिशत लोग मान रहे हैं.