भोपाल. इंदिरा गांधी के सलाहकार और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे द्वारका प्रसाद मिश्र का शुमार कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में था. संयोग कहें या दुर्गोग कि उन्हें ऐसे नेता के रूप में भी याद किया जाता है, जिन्हें महज 250 रुपये के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. दिलचस्प यह कि ये रुपये भी उन्होंने किसी से लिए नहीं थे, बल्कि कथित रूप से चुनाव में अतिरिक्त खर्च किए थे.

केवल 249 रुपये और 72 पैसे के कारण मुख्यमंत्री पद गंवा देने के किस्से का जिक्र वासुदेव चंद्राकर की जीवनी नाम की किताब में है. जिसके लेखक रामप्यारा पारकर, अगासदिया और डॉ परदेशीराम वर्मा हैं.

13 दिन में दो मुख्यमंत्रियों ने दिया था इस्तीफा
दरअसल, 12 मार्च 1969 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 13 मार्च को नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने. लेकिन उन्हें भी 13 दिन बाद यानी 25 मार्च को पद छोड़ना पड़ा. नरेशचंद्र सिंह मध्य प्रदेश के पहले और इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री थे. वे केवल 13 दिन सीएम रहे और 14वें दिन उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर एक तरीके से राजनीति से संन्यास ही ले लिया.

अनियमितताओं के कारण कसडोल चुनाव अवैध
मुख्यमंत्री नरेशचंद्र सिंह के इस्तीफा देने के बाद राजनीति के गलियारों में ये खबर फैल गई थी कि द्वारका प्रसाद मिश्र फिर से प्रदेश के सीएम बनने वाले हैं। क्योंकि कांग्रेस का पूरा कंट्रोल उस समय द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथ में ही था. इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिससे प्रदेश की राजनीति के समीकरण ही बदल गए. कमलनारायण शर्मा की याचिका पर फैसला आया और ये सिद्ध हो गया कि डीपी मिश्रा द्वारा कसडोल के उपचुनाव में अनियमितताएं बरती गईं. इसका नतीजा ये हुआ कि इस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया.

डीपी मिश्र के खिलाफ मिला था अहम सबूत
दरअसल, कसडोल उपचुनाव में डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट श्यामचरण शुक्ल थे. डीपी मिश्र चुनाव जीत गए तो उनकी टीम से चुनाव पर किए जाने वाले खर्चों के बिल कहीं खो गए. बाद में कमलनारायण शर्मा ने इस जीत के खिलाफ याचिका दायर की और शर्मा को कहीं से 6300 रुपये का एक बिल मिल गया, जिस पर डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट श्यामचरण शुक्ल के हस्ताक्षर थे.

चुनाव में 249.72 रुपये ज्यादा खर्च कर दिए
यहीं से इस चुनाव का पूरा गणित ही बदल गया. कहा ये भी जाता है कि श्यामचरण शुक्ल ने डीपी मिश्र को धोखा दिया था और अहम दस्तावेज कमलनारायण शर्मा को उपलब्ध करवाए थे. इसके बाद मई 1963 में कसडोल उपचुनाव को निरस्त कर दिया गया, क्योंकि ये पाया गया कि डीपी मिश्र ने चुनाव के लिए निर्धारित रकम से 249 रुपये और 72 पैसे ज्यादा खर्च किए थे.

मिश्र को छह साल के लिए अयोग्य घोषित किया
जबलपुर हाई कोर्ट के इस फैसले ने डीपी मिश्र के पूरे राजनीतिक जीवन को बदलकर रख दिया. कोर्ट ने इस मामले के सामने आने के बाद डीपी मिश्र को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. हालांकि बाद में डीपी मिश्र इंदिरा गांधी के सलाहकार भी रहे. इसके बाद वे राजीव गांधी के कार्यकाल में भी काफी सक्रिय रहे.