मेरठ. मेरठ में कैंट सीट पर सपा, बसपा, रालोद या अन्य किसी क्षेत्रीय पार्टी को कभी भी जीत हासिल नहीं हो सकी है। इस सीट पर पहली बार कांग्रेस को सोशलिस्ट पार्टी ने 1967 में शिकस्त दी। इसके बाद 1989 में भाजपा के परमात्मा शरण मित्तल ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया। तब से 2017 तक यहां भाजपा सात बार चुनाव जीत चुकी है।
1956 में वजूद में आई कैंट विधानसभा सीट वैश्य-पंजाबी बाहुल्य है। इनके बाद यहां अनुसूचित जाति के मतदाता सर्वाधिक हैं। कांग्रेस के टिकट पर यहां से चार बार अजीत सिंह सेठी और भाजपा के टिकट पर लगातार चार बार सत्यप्रकाश अग्रवाल विधानसभा पहुंच चुके हैं। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस को प्रदेश भर में शिकस्त मिली तब भी अजीत सिंह सेठी यहां से चुनाव जीते थे। इस सीट पर करीब 14 हजार वोट सैन्य कर्मियों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के भी हैं। पहली बार वर्ष 2012 में यहां बसपा के टिकट पर सुनील वाधवा ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी और 3793 मतों के अंतर से हार गए। हालांकि बीजेपी के सत्यप्रकाश अग्रवाल 2017 बसपा के सतेन्द्र सोलंकी के मुकाबले 76619 मतों से जीते। कांग्रेस से इन दोनों ही चुनावों में पंजाबी समाज को टिकट दिया। इस बार बसपा ने कैंट से ब्राह्मण प्रत्याशी अमित शर्मा पर दांव लगाया है। सपा और रालोद गठबंधन ने अभी यहां पत्ते नहीं खोल हैं। आयु 80 वर्ष से अधिक होने की वजह से इस बार यहां भाजपा सत्यप्रकाश अग्रवाल को टिकट नहीं दे रही है।
कैंट सीट पर पहली बार 1989 में भाजपा के परमात्मा शरण मित्तल ने कांग्रेस का विजय रथ रोका। उनके निधन के बाद 1989 में ही हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी शशि मित्तल ने जीत दर्ज की। बाबा औघड़नाथ मंदिर, बिल्वेश्वरनाथ मंदिर और शहीद स्मारक यहां की पहचान है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी औघड़नाथ मंदिर में पूजा की। शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन किया। मेरठ का सबसे बड़ा मार्केट आबूलेन भी यहीं है। मतदाताओं की संख्या के लिहाज से यह सीट जिले में दक्षिण के बाद सबसे बड़ी सीट है।