लखनऊ. चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए चुनावी खर्च की एक सीमा होती है। प्रत्याशी उस सीमा के अंदर चुनाव में खर्च कर सकते हैं। हालांकि, हर प्रत्याशी उसे पूरा खर्च करे ये जरूरी नहीं है। 2012 और 2017 विधानसभा चुनावों का डेटा एनालिसिस करें तो पता चलता है कि चुनावी खर्च का पैसा खर्च करने के मामले में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सबसे आगे हैं। 2012 में समाजवादी पार्टी के रघुराज सिंह शाक्या ने इटावा से चुनाव लड़ा। तब उन्होंने 20.63 लाख रुपए खर्च किए थे। दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की सुखदेवी वर्मा रहीं। भरथना से सुखदेवी ने चुनाव लड़ा और इसमें उन्होंने 18.44 लाख रुपए खर्च किए थे। इटावा से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रघुराज सिंह शाक्या ने सबसे ज्यादा 20.63 लाख रुपए चुनाव में खर्च किए थे। चुनावी खर्च में दूसरे और तीसरे नंबर पर भी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ही रहे। सपा के टिकट पर भरथना से चुनाव लड़ने वाली सुखदेवी वर्मा इस मामले में दूसरे नंबर पर रहीं। उन्होंने चुनाव में 18.44 लाख रुपए खर्च किए थे। तीसरे नंबर पर पुरानपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले प्रीतम राम ने 15.26 लाख रुपए खर्च किए।
सबसे कम खर्च में चुनाव जीतने वालों में समाजवादी पार्टी के नारद, बसपा के सूरजपाल सिंह और निर्दलीय उम्मीदवार रुबी प्रसाद हैं। बलिया नगर से चुनाव लड़ने वाले नारद ने 2012 विधानसभा चुनाव में केवल 24 हजार रुपए खर्च दिखाया है। इसी तरह फतेहपुर सीकरी विधानसभा के प्रत्याशी रहे सूरजपाल सिंह ने 36 हजार, जबकि रुबी प्रसाद ने 1.43 लाख रुपए खर्च होने का दावा किया है।
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रहे रामगोविंद चौधरी ने सबसे ज्यादा 24.90 लाख रुपए चुनाव प्रचार-प्रसार पर खर्च किया था। रामगोविंद ने बांसडीह से चुनाव लड़ा था। इस वक्त रामगोविंद विधानसभा में नेता विपक्ष हैं। चुनाव खर्च के मामले में दूसरे नंबर पर भी समाजवादी पार्टी के ही प्रत्याशी रहे। सपा के मोहनलालगंज से प्रत्याशी अंबरीश सिंह पुष्कर ने 24.42 लाख रुपए खर्च किए थे। तीसरे नंबर पर चरकारी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले बृजभूषण रहे। इन्होंने 24.37 लाख रुपए खर्च किए। तीनों ही प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। सबसे कम खर्च के बावजूद जीत हासिल करने वालों में भाजपा के नीलकंठ तिवारी, सपा के आलमबड़ी और बसपा की सुषमा हैं। नीलकंठ ने 2.84 लाख, आलमबड़ी ने 3.28 और सुषमा ने 4.09 लाख रुपए खर्च किए थे।
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनाव पर अब तक अधिकतम 28 लाख रुपए तक खर्च कर सकते थे। हालांकि, पिछले साल चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 30.8 लाख कर दी है। लोकसभा चुनाव में 77 लाख रुपए तक खर्च कर सकते हैं। देश की राजनीति पर रिसर्च करने वाली संस्था ‘पॉलिटिकिल स्टैंडर्ड’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में होने वाले चुनावों में प्रत्याशी करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। एक-एक प्रत्याशी 50 से 100 करोड़ से तक खर्च करता है। हालांकि ये सब ऑफ रिकॉर्ड खर्च होता है। इसे कोई भी प्रत्याशी कागजों पर नहीं दिखाता है।
यूपी चुनाव 2017 के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से ज्यादा कांग्रेस ने फंड जुटाया था। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा ने चुनाव के लिए 95 लाख रुपए का फंड जुटाया था, जबकि कांग्रेस ने 23.657 करोड़ रुपए जुटाए थे। हालांकि, ओवरऑल कलेक्शन में अन्य राजनीतिक पार्टियों के मुकाबले कहीं ज्यादा आगे भाजपा थी। भाजपा को 2017 विधानसभा चुनाव के लिए 1214.46 करोड़ रुपए मिले थे, जबकि कांग्रेस को 96.51 करोड़ रुपए मिले थे। समाजवादी पार्टी को 15 करोड़ रुपए, रालोद को 3.34 करोड़ रुपए, एआईएमआईएम को 15 लाख रुपए का फंड मिला था।