मेरठ। पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी के चलते मैदानी क्षेत्रों में ठंड का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। नए पश्चिमी विक्षोभ के असर के चलते रातभर रिमझिम बारिश होती रही, जिसका असर दिन में भी कड़ाके की ठंड के रूप में देखने को मिला। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो अगले तीन दिन तक बारिश के आसार बने हैं।

ठंड के तेवर अभी कम होते नहीं दिख रहे हैं। दिन का तापमान 15 डिग्री के आसपास चल रहा है। सुबह के समय घना कोहरा छाया हुआ था, दिन में बादलों का साया था, थोड़ी देर के लिए निकली धूप भी बेअसर दिखाई दी। शाम के समय फिर से ठंड ने अपना रूप दिखाया और शीतलहर के साथ ठंड का असर बढ़ता चला गया। मौसम के तेवरों को देखकर ठंड से अभी राहत नहीं दिख रही है। मौसम कार्यालय पर अधिकतम तापमान 15.6 डिग्री व न्यूनतम तापमान 7.3 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। बारिश 2.2 मिमी रिकॉर्ड की गई।

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान के मौसम वैज्ञानिक डॉ. एन सुभाष का कहना है कि दिन का तापमान सामान्य से आठ डिग्री कम रहा। पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने के कारण शुक्रवार से लेकर रविवार तक हल्की से माध्यम बारिश होने के आसार हैं। बारिश के बाद रात के तापमान में बढ़ोतरी होगी। 25 जनवरी से राहत मिलने के आसार हैं। 1980 से लेकर 2022 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार ज्यादा बारिश हुई है।

पिछले एक सप्ताह से लगातार कोल्ड डे कंडीशन की स्थिति बनी हुई है। दो दिन से तापमान 15 डिग्री तक पहुंचा, लेकिन ठंड का असर कम नहीं हुआ है। बढ़ती ठंड के साथ-साथ तापमान में भी ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हो रही है। सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के मौसम वैज्ञानिक डॉ. यूपी शाही का कहना है कि उत्तर पाकिस्तान व हिमालय क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय है, जिसके कारण बादल रहेंगे और बूंदाबांदी हो सकती है।

आकस्मिक बारिश और मौसम में नमी के चलते गेहूं की फसल में पीला रतुआ और करनाल बंट रोग लगने की आशंका बढ़ गई है। शामली से उप कृषि निदेशक शिव कुमार केसरी ने बताया कि पीला रतुआ के प्रकोप छह से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और 90 प्रतिशत से अधिक आर्द्रता के साथ-साथ बादलीयुक्त मौसम अनुकूल होता है। इस रोग का प्रकोप जनवरी और फरवरी माह में दिखाई देता है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का प्रकोप होने पर पीले से नारंगी रंग की धारियों के आकार में पत्तियों पर पाउडर दिखाई पड़ता है। इसे छूने पर हाथों में पीला पाउडर चिपक जाता है। यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर गोल घेरे के रूप में शुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैलता है। पीला रतुआ से बचाव हेतु नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिए और प्रकोप के लक्षण परिलक्षित होने पर प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रतिशत या टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत, ट्राईफ्लाक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी 0.06 प्रतिशत का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

करनाल बंट बीज एवं भूमि जनित रोग है। इसकी पहचान खेत में नहीं हो पाती है और ज्यादातर मामलों में फसल की कटाई और थ्रेसिंग के बाद ही दिखाई पड़ती है। इसके प्रकोप की दशा में गेहूं की बालियां व दानों पर काले रंग के पाउडर के रूप में टेलियोस्पोर चिपके रहते हैं। जिसका प्रसार हवा से तेजी से होता है। ठंडा तापमान, उच्च आर्द्रता एवं रुक-रुककर होने वाली बारिश से बढ़ता है। यदि बीते वर्षों में इस रोग का संक्रमण रहा हो और मौसम रोग संक्रमण के अनुकूल हो तो फूल अवस्था के दौरान यथासंभव सिंचाई नहीं करनी चाहिए। गेहूं की पुष्पावस्था में तापमान में गिरावट एवं अधिक आर्द्रता होने की स्थिति में बालियां निकलते समय प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रतिशत का सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए।