बनारस। बेटिया बड़ी होकर ये केवल दो परिवारों की जिम्मेदारी ही नहीं संभालती, बल्कि विविध क्षेत्रों जैसे राजनीति, खेल और विज्ञान के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर परिवार का नाम रोशन करती हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर कुछ ऐसी ही होनहार बेटियों की कहानियां हम आपके लिए लाए हैं।

दर्द सबके एक हैं, मगर हौसले सबके अलग-अलग। कोई हताश हो के बिखर गया, तो कोई संघर्ष करके निखर गया। मां की कोख से लेकर समाज में अपने अस्तित्व, अधिकार और आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाली बेटियां आज सफलता की बुलंदियों को छू रही हैं।
मेहनत और कुछ कर गुजरने की जिजीविषा की बदौलत उनका हर क्षेत्र में डंका बज रहा है। काशी की बेटियों ने अपने हौसलों के पंखों से ऐसी उड़ान भरी कि उन्हें कमतर आंकने वाले बस देखते ही रह गए। राष्ट्रीय बालिका दिवस पर ऐसी ही बेटियों की हिम्मत और जज्बे से रूबरू कराती यह रिपोर्ट..

काशी विद्यापीठ से एमए शिक्षाशास्त्र में सर्वाधिक नंबर पाने के बाद विश्वविद्यालय में टॉप करने वाली शिवपुर निवासी शालू के पिता कोलकाता में रहकर मिट्टी के बर्तन और दीये बनाते हैं। शालू अपनी मां, दो बहनों व एक भाई के साथ यहां रहती है।
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से शालू बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई के साथ अपने भाई-बहनों की पढ़ाई में भी मदद करती हैं। शालू बताती हैं, बचपन में पढ़ाई के दौरान आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उस मुश्किल दौर में उन्हें लगा कि उनकी पढ़ाई छूट जाएगी। लेकिन हौसले से मुकाम मिलता रहा।
परिवार की पहली स्नातक होंगी कोमल

सिगरा के छित्तूपुर निवासी सफाई कर्मी की बेटी कोमल गरीबी से संघर्ष कर स्नातक की पढ़ाई कर रही है। स्नातक उत्तीर्ण होने के बाद वह अपने परिवार की पहली ग्रेजुएट होंगी। संघर्षों से लड़कर अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ बस्ती के गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का काम भी कर रही हैं।
दो भाईयों और चार बहनों के परिवार में गरीबी के कारण पढ़ाई में कई अड़चन भी आई। लेकिन टीटीएफ फाउंडेशन की मदद से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने बाद इंटर पास स्नातक की पढ़ाई कर रही हूं।
सपनों में सफलता के रंग भरने में जुटी शुभी

दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम करने के बाद भदैनी निवासी शुभी वापस आईं तो पिता के शिल्पकारी के परंपरागत कार्य में लग गईं। लेकिन उनका सपना कुछ अलग करने का था। शुभी अपने बगीचे में लगे पेड़ों से मेंहदी तुड़वाकर उसे पिसवाया और मेंहदी का पाउडर बनने के बाद कुछ विदेशी मित्रों को दिखाया।
ये मेंहदी उन्हें पसंद आ गई, जिसके बाद उन्होंने इसकी मार्केटिंग शुरू कर दी। शुभी का कहना है कि पहला आर्डर नार्वे से मिला। शुभी ने कुछ ही महीने में अब तक 5000 से ज्यादा पैकेट नार्वे, अमेरिका, न्यूयार्क सहित अन्य देशों में एक्सपोर्ट कर चुकी हैं।

सपने तो हर कोई देखता है और उन्हें पूरे करने के भी लगातार प्रयास करता है, मगर कुछ ही सख्त होते है, जो अपने सपनों को पूरा कर पाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है सुंदरपुर निवासी प्रियांशु सिंह की। जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने में कोई समझौता नहीं किया। गणित विषय से इंटर करने वाली प्रियांशु का सपना एक चित्रकार बनने का था।
माता-पिता इसके खिलाफ थे, लेकिन उसने अपने सपनों से समझौता नहीं किया, एक साल तक उन्होंने अपने अभिभावकों को इसके लिए मनाने की कोशिश की। आखिरकार प्रियांशु की मेहनत रंग लाई और माता-पिता मान गए। प्रियांशु काशी विद्यापीठ के एमएफ ए की परीक्षा में प्रथम स्थान लगाकर अपने माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं।