नई दिल्ली. कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। बड़ी संख्या में युवा, बुजर्ग, बच्चे और महिलाएं इसकी चपेट में आ रहे हैं। इस वायरस के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका संक्रमण तेजी से फैलता है। ऐसे में सतर्कता और सावधानी सबसे जरूरी है। हाल ही में जापान के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में पाया है कि ओमिक्रोन वैरिएंट कोरोना के डेल्टा वायरस की तुलना में प्लास्टिक और इंसानों की त्वचा पर ज्यादा देरतक जीवित रहता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके वायरस के ज्यादा देर तक जीवित रहने की वजह से भी संक्रमण के तेजी से फैलने में मदद मिलती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक संक्रामक होने के चलते ओमिक्रोन वैरिएंट कोरोना के डेल्टा वैरिएंट को रिप्लेस कर सकता है।
किसी प्लास्टिक की सतह पर यहां कोरोना का पहला या अल्फा वैरिएंट जहां 56 घंटे तक जिंदा रहता है। वहीं, बीटा वैरिएंट 191.3 घंटे तक जीवित रहता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि डेल्टा वैरिएंट प्लास्टिक की सतह पर 156.6 घंटे तक जीवित रहता है। इन सब की तुलना में ओमिक्रॉन वायरस प्लास्टिक की सतह पर औसतन 193.5 घंटे तक जीवित रहता है। बायोरिव में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, शवों की त्वचा से लिए गए सैंपलों के आधार पर पाया गया कि कोरोना के पहले वैरिएंट इंसानी त्वचा पर लगभग 8.6 घंटे तक जिंदा रहता है, जबकि अल्फा वैरिएंट इंसानी त्वचा पर 19.6 घंटे तक जिंदा रहता है। बीटा वैरिएंट का वायरस त्वचा पर 19.1 घंटे और गामा वेरिएंट 11.0 घंटे तक जिंदा रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक, डेल्टा वैरिएंट इंसानी त्वचा पर जहां 16.8 घंटे तक जिंदा रह सकता है। वहीं, ओमिक्रोन वैरिएंट का वायरस सबसे ज्यादा 21.1 घंटे तक जिंदा रह सकता है।
वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि अगर अल्कोहल से बने सेनेटाइजर कोरोना के किसी भी वैरिएंट के वायरस को डाल दिया जाता है, तो ये 15 सेकेंड में मर जाता है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी किए गए कोरोना प्रोटोकॉल के मुताबिक, नियमित तौर पर हाथों को सेनेटाइज करने से इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने में काफी हद तक मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ओमिक्रोन वैरिएंट कोरोना के डेल्टा वैरिएंट की तुलना में कम घातक है। अध्ययन में पाया गया है कि ऐसे लोग जिनका इम्युनिटी सिस्टम कमजोर है उन्हें भी डेल्टा वैरिएंट की तुलना में ओमिक्रोन वायरस की वजह से बेहद गंभीर हालात का सामना नहीं करना पड़ रहा है।
इंग्लैंड में शोधकर्ताओं ने 333 अस्पतालों में ओमिक्रोन वायरस के संस्करण के पहले और बाद में लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की दर की तुलना की। ओमिक्रोन वायरस का संक्रमण शुरू होने से पहले संक्रमित 398 लोगों में से 10.8% को अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरूरत थी, जबकि ओमिक्रोन से संक्रमित 1,241 में से 4% लोगों को ही अस्पताल ले जाने की जरूरत थी। संक्रमित लोगों की औसत आयु 85 वर्ष थी। अन्य जोखिम कारकों के आकलन के बाद, ओमिक्रोन वायरस के संक्रमण के दौरान संक्रमित रोगियों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 50% कम थी। रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों से कोविड वेक्सीन ली थी उन्हें संक्रमण के चलते अस्पताल ले जाए जाने की जरूरत नहीं पड़ी। वहीं डेल्टा वायरस की तुलना में ओमिक्रोन वायरस के चलते मौतें भी कम हुई हैं।
दुनिया भर में किए गए कई अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि अगर तेजी से कोरोना की वैक्सीन लोगों को लगाने और कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करने से ओमिक्रोन वायरस के संक्रमण को रोकने और इससे संक्रमित होने वाले लोगों को लम्बे समय तक अस्पताल में इलाज की जरूरतों को काम करने में मदद मिल सकती है। साथ ही इससे कोरोना वायरस के संक्रमण से होने वाली मौतों को भी कम करने में मदद मिलेगी।
इतोह ने बताया कि हमारे अध्ययन से यह साबित हुआ है कि प्लास्टिक और त्वचा की सतहों पर, अल्फा, बीटा, डेल्टा और ओमिक्रोन वैरिएंट ने कोविड वायरस की तुलना में दो गुना अधिक लंबे समय तक जीवित रहा। वहीं, त्वचा को 16 घंटे से अधिक समय तक संक्रामक बनाए रखा। वहीं, स्टडी में सामने आया कि अल्फा और बीटा वैरिएंट के बीच जीवित रहने के समय में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था।
आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने बताया कि शोध में सामने आया है कि पोरस सरफेस जैसे कि पेपर और कपड़े में वायरस कम समय तक जिंदा रहता है। इन सतह पर वायरस कुछ घंटों तक ही जिंदा रहता है। वहीं ग्लास, स्टैनलेस स्टील और प्लास्टिक में वायरस क्रमश: चार, सात और सात दिन जिंदा रहता है। पेपर पर वायरस तीन घंटे से कम समय तक ही जीवित रहता है। कपड़ों में यह वायरस दो दिन तक जीवित रहता है। रजनीश भारद्वाज ने बताया कि ड्रापलेट तो जल्दी सूख जाती है पर उसमें एक थिन फिल्म (पानी की हल्की परत) जीवित रहती है। यह पानी की परत जल्दी सूखती नहीं है। जिससे वायरस के जीवित रहने की संभावना रहती है। यह थिन फिल्म आंखों से दिखाई नहीं देती है। यह एक रहस्य की तरह का मामला था जहां ये दिख रहा था कि ड्रापलेट कुछ मिनट या सेकेंड में सूख जाती है पर वायरस जीवित रहता है। ऐसे में पानी की हल्की परत ने इस मामले को सुलझाया है। इसके लिए हमने कंप्यूटर सिमुलेशन का प्रयोग किया।