हापुड़। पिछले कई दिनों से चल रही चुनावी गहमागहमी बृहस्पतिवार को चुनाव के बाद शांत हो गई। जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर मैदान में उतरे 35 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई। लेकिन वोटरों ने चुप्पी मतदान के बाद भी नहीं तोड़ी। किसके पक्ष में कितने वोट गए, इसका अभी भी कयास लगाया जा रहा है। तीनों ही सीटों पर स्थिति उलझी है और मुकाबला बेहद नजदीकी माना जा रहा है। चुनाव में बड़ी बात यह रही कि इस बार मुस्लिम मतों का बिखराव नहीं हुआ।
तस्वीर नहीं हुई साफ, तीन जगह बंटे वोटर
हापुड़ की सदर सीट पर वर्तमान विधायक, पूर्व विधायक और एक पूर्व विधायक का पुत्र प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। यहां भाजपा, सपा रालोद गठबंधन और बसपा तीनों ही मजबूत प्रत्याशी होने के कारण मुकाबला बेहद कड़ा माना जा रहा था। यहां मुस्लिमों और दलितों के रुझान पर हार-जीत मानी जा रही थी। बड़ी बात रही कि मुस्लिम मतों में बिखराव कम देखने को मिला। जबकि दलित भी पूर्व की स्थिति में रहा। ऐसी स्थिति में नतीजा क्या रहेगा यह कहना मुश्किल होगा।
दूसरों के वोट बैंक में सेंधमारी में कामयाब रहे मुख्य दल
गढ़ विधानसभा चुनाव में शुरूआत से माना जा रहा था कि मुकाबला कड़ा होने वाला है और अनिश्चिताओं से भरा था। फिलहाल भी स्थिति कुछ इसी प्रकार की है। लेकिन चुनाव में सभी प्रत्याशी एक दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब रहे हैं। प्रत्याशी बदलने के बाद भीतरघात के खतरे से भाजपा उबर गई। सपा-रालोद गठबंधन भी सर्वसमाज की वोट लेने में कामयाब रहा है। मुख्य मुकाबला इन्हीं मुख्य दलों में माना जा रहा है। हालांकि बसपा से चुनाव लड़ रहे मदन चौहान का भी यहां अपना पारंपरिक वोट बैंक है।
वोटों को समेटने में कामयाब रहे धर्मेश और असलम
धौलाना विधानसभा सीट पर दो मुस्लिम और एक हिंदू प्रत्याशी मैदान में होने के कारण शुरूआत में मुकाबला एकतरफा माना जा रहा था। लेकिन मुस्लिम मतों में बिखारव नहीं होने और मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मतदान भी अधिक होने से कड़ा मुकाबला रहने की उम्मीद है। भाजपा प्रत्याशी धर्मेश तोमर भी अपनी वोटों को समेटने में कुछ हद तक कामयाब रहे हैं। दलितों का भी उन्हें साथ मिला है। उनका सीधा मुकाबला गठबंधन प्रत्याशी असलम चौधरी से होता दिख रहा है।