नई दिल्ली. इस तस्वीर को एक लाख बार शेयर किया गया. लंदन के सबसे बड़े और सबसे पुराने बाज़ार, बोरो मार्केट में एक कटहल क़रीब 16 हज़ार रुपये (160 पाउंड) में बिक रहा था. कटहल की इस क़ीमत ने ट्विटर पर लोगों के होश उड़ा दिए. कुछ ने तो मज़ाक किया कि वो कटहल बेचकर “करोड़पति” बनने के लिए ब्रिटेन आएंगे.

वैसे तो ब्राज़ील के कई इलाक़ों में एक ताज़ा कटहल 82 रुपये में मिल जाता है. कई जगहों पर ये सड़कों पर सड़ता भी दिखाई दे जाएगा. कई अन्य देशों में भी ये सस्ता ही है. कई जगह तो इसे फ्री में ही पेड़ों से तोड़ा जा सकता है. तो फिर एक कटहल की क़ीमत इतनी कैसे बढ़ गई? और हाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग में इतना उछाल क्यों आ गया?

साओ पाउलो राज्य में तीन हज़ार तरह के फलों का बाग लगाने वाली कंपनी के सीईओ सबरीना सारतोरी ने बीबीसी को बताया, “ब्राज़ील में भी, कटहल की क़ीमतों में उतारचढ़ाव आता रहता है. कई ऐसी जगह हैं जहां पेड़ों से लोग फ्री में ही तोड़कर ले जाते हैं. लेकिन कुछ जगहों पर ये बहुत महंगा होता है.”

जानकारों का कहना है कि कटहल का अंतरराष्ट्रीय व्यापार काफ़ी पेचीदा और जोख़िम भरा है. जिसकी कई वजहें हैं जिनमें रखने पर ख़राब होने की कटहल की प्रकृति, इसका मौसमी होना और इसका आकार शामिल है. एक कटहल का वज़न 40 किलो तक हो सकता है. एशिया से आने वाले इस फल की शेल्फ़ लाइफ कम है. इसका ट्रांस्पोर्टेशन तो मुश्किल है ही, इसकी पैकिंग भी आसान नहीं.

सारतोरी साथ ही कहते हैं, “कटहल बहुत भारी होता है और जल्दी पक जाता है. इससे एक अजीब-सी गंध आती है, जो हर किसी को पसंद नहीं होती.”
इतना महत्व नहीं दिया जाता, लेकिन विकसित देशों में शाकाहरी लोगों के बीच इसकी मांग बढ़ रही है. कटहल को मांस के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. पकाए जाने पर ये बीफ या पोर्क की तरह दिखता है और इस कारण ये टोफ़ू, क्वार्न और ग्लूटेन-फ्री जैसा लोकप्रिय मीट-फ्री विकल्प बन रहा है. अकेले ब्रिटेन में, शाकाहारी लोगों की संख्या क़रीब 35 लाख है और ये बढ़ती जा रही है.

जब कटहल बहुत ज़्यादा पक जाता है इसमें एक मीठा स्वाद आ जाता है और इसे सिर्फ मीठे व्यंजन में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसलिए, उपभोक्ताओं के लिए एक ज़्यादा किफ़ायती विकल्प इसे डिब्बाबंद खरीदना है.

डिब्बाबंद कटहल ब्रिटिश सुपरमार्केट में औसतन लगभग 300 रुपये में मिल सकता है, लेकिन कई लोग कहते हैं कि इसका स्वाद मूल फल जैसा नहीं होता. बड़े आकार के कारण इसकी पैकिंग मुश्किल है. इसे अन्य फलों की तरह एक जैसे आकार के बक्सों में नहीं रखा जा सकता. साथ ही ये बताने का कोई वैज्ञानिक तरीक़ा भी नहीं है कि कटहल को बाहर से देखकर बताया जा सके कि वो अच्छी स्थिति में है या नहीं.

इसके अलावा, जो प्रमुख देश इसकी खेती करते हैं और निर्यात करते हैं, वहां सप्लाई चेन मज़बूत नहीं. साथ ही कटाई के बाद इसे स्टोर करने की सुविधाओं का अभाव है. नतीजतन, एक अनुमान के मुताबिक़, पूरे उत्पादन का 70 फीसदी नष्ट हो जाता है. कटहल की खेती ज़्यादातर दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया में होती हैं, कटहल बांग्लादेश और श्रीलंका का राष्ट्रीय फल है.

भारत में कटहल को ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ग़रीब लोगों के खाने की चीज़ के तौर पर भी देखा जाता है. जानकार कहते हैं कि इसके अलावा इसे लेकर जागरुकता की कमी है. कई लोगों ने कभी इसका स्वाद नहीं चखा और वो इसे बनाने का कोई तरीक़ा भी नहीं जानते. हालांकि कटहल अब लोकप्रिय होता जा रहा है. नीदरलैंड स्थित विदेशी फलों के आयातक टोरेस ट्रॉपिकल बीवी के मालिक फैब्रिकियो टोरेस ने ये भी कहा कि फलों सब्ज़ियों के महंगे होने का एक कारण ये भी रहा है कि कोविड -19 महामारी के बाद हवाई मालभाड़ा काफी बढ़ गया है.

वो कहते हैं, “एशिया और दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों से कई फल विमानों से यूरोप आते हैं. एयरलाइंस अब कार्गो स्पेस के लिए ज़्यादा क़ीमत वाले उत्पादों की तलाश में रहती है. कटहल तेज़ी से ख़राब होने वाला फल है और इसकी मांग भी कम रहती है. इसलिए इसे बड़ी मात्रा में आयात करना सही नहीं समझा जाता. इस सब आधार पर ही बाज़ार में कटहल की क़ीमत तय होती है.”

2026 तक इसके 35.91 करोड़ डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2021-2026 की अवधि के दौरान 3.3 फीसदी की वार्षिक दर से बढ़ रहा है. 2020 में, एशिया-प्रशांत क्षेत्र का कटहल के बाज़ार में सबसे बड़ा हिस्सा रहा (37%), इसके बाद यूरोप (23%), उत्तरी अमेरिका (20%), बाक़ी दुनिया (12%) और दक्षिण अमेरिका (8%) थे.