नई दिल्ली. हिवरे बाजार गांव, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में है जिसे भारत का सबसे अमीर गांव कहा जाता है. पूरे गांव को साथ लेकर चलने और कृषि पर जोर देने से वहां की जीडीपी बढ़ गई. गांव में गरीबी खत्म हो गई और शहरों की तरफ जो पलायन होता था, वह रुक गया. अब लोग गांव में रुककर ही खेती-गृहस्थी करते हैं. यहां तक कि जो लोग गांव छोड़कर शहर चले गए थे, वे भी गांव में आ गए. गांव के सरपंच पोपट राव पवार का नाम देश के उन लोगों में गिना जाता है जिन्होंने अपनी बदौलत पूरे गांव की तस्वीर बदल दी. आसपास के लोग अब उनसे सीख लेकर खेती-किसानी में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं.
दशकों पहले हिवरे बाजार भी दूसरे गांवों की तरह खुशहाल था. 1970 के दशक में, ये गांव अपने हिंद केसरी पहलवानों के लिए प्रसिद्ध था. मगर हालात बिगड़े और बिगड़ते चले गए. सरंपच पोपट राव बताते हैं कि हिवरे बाजार 80-90 के दशक में भयंकर सूखे से जूझा. पीने के लिए पानी नहीं बचा. कुछ लोग अपने परिवारों के साथ पलायन कर गए. गांव में महज 93 कुंए ही थे. जलस्तर भी 82-110 फीट पर पहुंच गया. लेकिन, फिर लोगों ने खुद को बचाने की कवायद शुरू की.
ऐसे बदली गांव की किस्मत
साल 1990 में एक कमेटी ‘ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट कमेटी’ बनाई गई. इसके तहत गांव में कुंए खोदने और पेड़ लगाने का काम श्रमदान के जरिए शुरू किया गया. इस काम में, महाराष्ट्र एम्प्लायमेंट गारंटी स्कीम के तहत फंड मिला, जिससे काफी मदद मिली. साल 1994-95 में आदर्श ग्राम योजना आई, जिसने इस काम को और रफ्तार दे दी. फिर कमेटी ने गांव में उन फसलों को बैन कर दिया, जिनमें ज्यादा पानी की जरूरत थी. गांव के सरपंच पोपट राव के मुताबिक, गांव में अब 340 कुंए हैं. ट्यूबवेल खत्म हो गए हैं और जलस्तर 30-35 फीट पर आ गया है.
रोड से पेड़ नहीं काटना
- परिवार नियोजन
- नशाबंदी
- श्रमदान
- लोटा बंदी
- हर घर में टॉयलेट
- ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट
पीएम मोदी ने मन की बात में की थी तारीफ…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2020 को ‘मन की बात’ में हिवरे बाज़ार की तारीफ करते हुए कहा था कि पानी का मूल्य क्या है, वो तो वही जानते हैं, जिन्होनें पानी की तकलीफ झेली है. और इसलिए ऐसी जगह पर, पानी के संबंध में एक संवेदनशीलता भी होती है और कुछ-न-कुछ करने की सक्रियता भी होती है. महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के हिवरे बाज़ार ग्राम पंचायत पानी की समस्या से निपटने के लिए क्रॉपिंग पैर्टन को बदला और पानी ज्यादा उपयोग करने वाली फसलों को छोड़ने का फैसला लिया. बताया जाता है कि इस गांव के 80 परिवार वाले करोड़पति हैं.