नई दिल्ली. किस्मत जब मेहरबान होती है तो कहीं से भी छप्पर फाड़ पैसा बरस सकता है. आंध्र प्रदेश के एक मछुआरे के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह समुद्र में मछलियां पकड़ने गया था लेकिन उसके जाल में बाकी मछलियों के साथ गोल्डन फिश भी आ गई. ये दुर्लभ प्रजाति कचिड़ी की मछली थी. इसका वजन 28 किलो था. मछुआरे ने इसे बाजार में ले जाकर बेचा तो उसे 2 लाख 90 हजार रुपये की मोटी रकम मिल गई.
फिशरीज विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कचिड़ी को उसके दुर्लभ होने और महंगी कीमत पर बिकने की वजह से गोल्डन फिश कहा जाता है. इसके कई अंग दवा बनाने के काम में आते हैं. जानकार बताते हैं कि कचिड़ी मछली का पित्ताशय और फेफड़े का इस्तेमाल डॉक्टरों द्वारा सर्जरी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले धागे बनाने में भी होता है. इसके कई अंग महंगी वाइन बनाने में भी काम आते हैं.
ईस्ट गोदावरी जिले के अंतरवेदी का रहने वाला मछुआरा तटीय इलाके में मिनी फिशिंग हार्बर पर मछली पकड़ने गया था. उसी दौरान उसके जाल में कचिड़ी मछली फंसी. बाद में उसने नरसापुरम के बाजार में ले जाकर एक व्यापारी को ये मछली बेच दी. इसके बदले में उसे 2.90 लाख रुपये मिले. मछुआरे ने इसकी खुशी मनाते हुए बताया कि कचिड़ी मछली को पकड़ना आसान नहीं था. वह एक से दूसरी जगह बेहद तेजी से भाग रही थी. लेकिन आखिरकाम वह उसे जाल में फांसने में कामयाब रहा.
पिछले साल महाराष्ट्र में मछुआरों के जाल में 157 घोल मछलियां एकसाथ फंस गई थीं. सी गोल्ड कही जाने वाली इन घोल मछलियों ने मछुआरे को रातोंरात करोड़पति बना दिया. उसे हर मछली के लिए 85 हजार रुपये मिले. सभी 157 मछलियां बाजार में 1.33 करोड़ रुपये में बिकीं.
हाल ही में विशाखापट्टनम में एक मछुआरे के जाल में व्हेल मछली फंस गई थी. वह इतनी बड़ी थी कि उसे किनारे तक लाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी. उसका वजन 1200 किलो था. आमतौर पर मछुआरे व्हेल मछली को समुद्र में वापस छोड़ देते हैं क्योंकि वह खाने के काम में नहीं आती है. हालांकि व्हेल से निकाले गए तेल का इस्तेमाल कई दवाएं बनाने में जरूर किया जाता है.