हाजीपुर। बिहार की सियासत में मुकेश सहनी और भाजपा के बीच 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। भाजपा से पंगा लेने के कारण सहनी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया। लेकिन भाजपा के ही पूर्व विधायक डा. अच्‍यूतानंद सिंह का कहना है कि मुकेश सहनी के साथ सही नहीं हुआ है। पार्टी लाइन से अलग जाकर बयान देनेे पर सियासत क्‍या रूप लेती है यह देखने वाली बात होगी।

भाजपा के पूर्व विधायक डा. अच्युतानंद ने कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 91 में वर्णित है कि देश या राज्य के बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री होते है। वह मंत्रिमंडल के पदेन सभापति भी होते हैं। यदि मंत्रिमंडल से किसी मंत्री को हटाना हो तो मंत्री से पहले इस्तीफा मांगा जाता है, अगर मंत्री इस्तीफा नहीं दे तो मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री खुद इस्तीफा देकर कैबिनेट भंग कर देते हैं, फिर नया कैबिनेट बनाया जाता है। लेकिन बिहार में मंत्री को सीधे बर्खास्त किया गया जो असंवैधानिक और अनैतिक है।

उन्होंने कहा कि मुकेश सहनी के पार्टी वीआईपी के तीन विधायकों को पहले भाजपा में शामिल करा लिया गया। वहीं वीआइपी के विधायक के मरणोपरांत बोचहां सीट खाली हुआ तो भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया। इसके बाद सरकार में मंत्री मुकेश सहनी को भाजपा की अनुशंसा और मुख्यमंत्री के सिफारिश पर राज्यपाल ने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। भाजपा-जदयू एनडीए सरकार के तानाशाही और निरंकुशता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है।

पूर्व विधायक की इस बयानबाजी के क्‍या मायने हैं यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन जिस तरह से अपनी पार्टी पर उन्‍होंने हमला बोला है, निरंकुशता और तानाशाही का आरोप लगा दिया है यह कुछ और ही संकेत करता है। संभव है कि आने वाले समय में राजनी‍ति की कुछ नई तस्‍वीर दिखे।