नई दिल्ली: हिजाब विवाद के बाद अब कर्नाटक में हलाल और झटका को लेकर विवाद बढ़ता नजर आ रहा है. मुसलमानों द्वारा खाए जाने वाले हलाल मांस के विरोध ने शिवमोग्गा जिले के भद्रावती में हिंसक रूप ले लिया जिसके बाद इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया. वहीं अब कर्नाटक में हिंदुत्व समूहों ने 2 अप्रैल से उगाडी त्योहार से पहले हलाल मांस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
राज्य में हलाल मांस और झटका मांस के विवाद ने राजनीतिक रूप भी ले लिया है. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने हलाल गोश्त को आर्थिक जिहाद करार दिया है. उन्होंने यहां तक कहा कि कि जब मुसलमान हिंदुओं से गैर-हलाल मांस खरीदने से इनकार करते हैं, तो आप हिंदुओं को उनसे खरीदने के लिए क्यों जोर देते हैं?
आइए जानते हैं कि आखिर क्या है हलाल और गैर हलाल मांस, आखिर इन दोनों मांस में किस तरह का अंतर होता है. हम आपको बताएंगे कि पोषण के आधार पर भी दोनों में किसी तरह का अंतर होता है या नहीं.
आपको बता दें कि मुसलमान हलाल मांस की प्रथा का पालन करते हैं. जबकि वहीं सिख समुदाय झटका पसंद करते हैं. अरबी में हलाल का अर्थ होता है उपभोग के योग्य. हलाल की प्रक्रिया में जानवर को धीरे धीरे मारा जाता है ताकि उसके शरीर का पूरा खून निकल जाए. हलाल प्रक्रिया में जानवरों को काफी दर्द पहुंचता है.
वहीं दूसरी तरफ झटका में एक ही झटके में धारदार हथियार से जानवर की रीढ़ पर प्रहार किया जाता है ताकि जानवर बिना दर्द के एक झटके में मर जाए. कहा जाता है कि झटका में जानवरों को मारने से पहले उनके दिमाग को शून्य कर दिया जाता है ताकि उसे दर्द का एहसास न हो.
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हलाल प्रक्रिया में जानवरों को धीरे-धीरे मारने से उनके शरीर में मौजूद पूरा खून निकल जाता है. इसमें झटका की तुलना में अधिक पोषण होता है. हलाल में जानवरों का खून पूरी तरह से निकल जाने के कारण उनके शरीर में मौजूद बीमारी खत्म हो जाती है और गोश्त खाने लायक होता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मांस को नरम और रसदार बनाए रखने के लिए वध के बाद पीएच स्तर लगभग 5.5 होना चाहिए. झटका मांस में, PH मान 7 के बराबर होता है.