बॉलीवुड में पर्दे पर हीरो का किरदार अदा कर ‘हीरो’ बनने वाले सितारों की लंबी फेहरिस्त है। मगर, खलनायक की भूमिका निभाकर छाने वाले सितारे शायद कम ही हैं। जब भी सिनेमा के खलनायकों का जिक्र होगा सदाशिव अमरापुरकर के बिना बात अधूरी रहेगी। आज उनका जन्मदिन है। बता दें कि सदाशिव अमरापुरकर का जन्म 11 मई 1950 को महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुआ था। उनके करीबी लोग प्यार से उन्हें ‘तात्या’ कहते थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने एक्टिंग के सफर की शुरुआत मराठी नाटकों से की थी।

करीब 50 नाटकों में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मी दुनिया में दस्तक दी। सदाशिव अमरापुरकर ने मराठी फिल्म से फिल्मी करियर शुरू किया, इसमें उन्होंने बाल गंगाधर तिलक का किरदार अदा किया। फिल्म का नाम था ’22 जून 1897’। सदाशिव ने धर्मेंद्र, गोविंदा, अमिताभ बच्चन, आमिर खान, संजय दत्त और सलमान खान समेत कई बड़े सितारे के साथ काम किया। खलनायक का किरदार निभाने के साथ-साथ उन्होंने कॉमेडी फिल्मों में भी हाथ आजमाया। आइए जानते हैं उनकी ऐसी शानदार पांच फिल्में, जिसमें उनकी दमदार एक्टिंग देखने को मिली।

‘अर्धसत्य’ (1983)
साल 1983 में आई यह सदाशिव अमरापुरकर की पहली हिंदी फिल्म थी। वर्ष 1984 में उन्हें ‘अर्धसत्य’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के अवॉर्ड से नवाजा गया। फिल्म में सदाशिव अमरापुरकर के साथ-साथ अमरीश पुरी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह थे।

हुकूमत’ (1987)
1987 में आई और धर्मेंद्र अभिनीत इस फिल्म में सदाशिव अमरापुरकर ने मुख्य विलेन का किरदार निभाया। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। कमाई के मामले में यह फिल्म मि.इंडिया से भी आगे रही। धर्मेंद्र फिल्म हुकूमत के बाद अमरापुरकर को अपने लिए लकी समझने लगे और अपने अपोजिट फिल्मों में उन्हें रोल दिलाए।

‘ऐलान-ए-जंग’ (1989)
अभिनेता धर्मेंद्र की फिल्म ‘ऐलान-ए-जंग’ (1989) के डायलॉग्स बेहद जबरदस्त थे। इस फिल्म में जया प्रदा , दारा सिंह और सदाशिव अमरापुरकर जैसे दिग्गज कलाकार थे। अपने जबरदस्त एक्शन की वजह से यह फिल्म आज भी सिनेप्रेमियों को पसंद आती है। ‘ऐलान-ए-जंग’ में विलेन के रूप में सदाशिव अमरापुरकर का रोल दमदार था। फिल्म में धर्मेंद्र को जंजीरों से जकड़कर सदाशिव जब डायलॉग बोलते हैं तो उनकी आंखों और आवाज का खौफ देखने लायक होता है। इसमें अमरापुरकर का प्रसिद्ध डायलॉग रहा, ‘तालियां बजाने से काम नहीं होगा, काम करने से काम होगा।’

‘सड़क’ (1991)
1991 में आई फिल्म ‘सड़क’ में सदाशिव अमरापुरकर ने एक किन्नर महारानी का किरदार निभाया था, जो लोगों को काफी पसंद आया। इसके बाद उन्हें बॉलीवुड की महारानी कहा जाने लगा। ‘सड़क’ के लिए बेस्ट विलेन का अवॉर्ड दिया गया। इस फिल्म में अमरापुरकर का डायलॉग ‘मैं हूं इस जिस्म के बाजार का महाराजा और नाम है महारानी’ छा गया।

‘छोटे सरकार’ (1996)
1990 के दशक में उन्होंने सपोर्टिंग रोल और कॉमेडी रोल की तरफ रुख किया और आंखें, इश्क, कुली नंबर 1 जैसी फिल्मों में एक्टिंग करके छा गए। 1996 में आई फिल्म छोटे सरकार में डॉ. खन्ना का किरदार निभाया जो काफी पसंद किया गया।

‘इश्क’ (1997)
इस फिल्म में उन्होंने एक स्वार्थी पिता का किरदार निभाया था। 1998 में फिल्म ‘इश्क’ के लिए उन्हें बेस्ट विलेन के अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। इस फिल्म का एक डायलॉग, ‘ऐसी मौत मारूंगा इनको कि इश्क करने वालों की रूह कांप जाए’ आज भी खूब बोला जाता है। आखिरी बार उन्होंने 2012 में फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज’ में काम किया। इसमें उन्होंने कैमियो रोल किया था। 64 साल की उम्र में अभिनेता को फेफड़ों में संक्रमण हो गया था, जिसके चलते 3 नवंबर 2014 को निधन हो गया।