मेरठ। रैपिड ट्रेन शुरू होने के बाद निश्चित तौर पर आमजन को सहूलियत मिलेगी लेकिन इस सुविधा को उपलब्ध कराने की प्रक्रिया बड़ी जटिल है। रैपिड रेल की सुरंग तैयार करना भी ऐसी ही कठिनतम प्रक्रिया का हिस्सा है। अगर आप सोच रहे हैं कि मिट्टी खोदकर कंक्रीट भरने के बाद गोलाई में पक्की सुरंग बनाई जाती है तो आप गलत हैं। पक्की और मजबूत सुरंग बनाने के लिए जमीन के अंदर ही रिंग तैयार की जाती है। यह रिंग सुरंग के अंदर कंक्रीट से नहीं बनाई जाती, बल्कि फैक्ट्री में रिंग के टुकड़े तैयार करके लाए जाते हैं। इन टुकड़ों को मिट्टी खोदाई के साथ-साथ जोड़ते जाते हैं, जिससे रिंग बनती रहती है। यह रिंग जब लंबाई में बढ़ती जाती है तो इसे ही सुरंग कहा जाता है।
सात टुकड़े जोड़कर बनाई जाती है सुरंग की एक रिंग
देश के पहले रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कारिडोर के अंतर्गत मेरठ में तीन भूमिगत स्टेशन के लिए तीन टुकड़ों में जुड़वां सुरंग बनाई जा रही है। सात टुकड़े जोड़कर सुरंग की एक रिंग बनाई जाती है। यहां 3.50 किमी की जुड़वां सुरंग के लिए कुल 4753 रिंग बनाई जाएंगी।
इस तरह से कुल 33 हजार 271 टुकड़े जोड़कर सुरंग बनाई जाएगी। एक रिंग की लंबाई 1.50 मीटर है। यह सेगमेंट प्रीकास्ट करके लाए जाते हैं। प्रीकास्ट के लिए शताब्दीनगर में फैक्ट्री स्थापित है। सुरंग खोदने वाली मशीन सुदर्शन ही इसकी रिंग तैयार करती है। सुदर्शन मशीन पर रिंग के टुकड़े पहले ही रख दिए जाते हैं। मशीन जब मिट्टी हटाती है उसी समय रिंग के टुकड़े जोड़ देती है। जब एक रिंग तैयार हो जाती है, तब आगे खिसकती है।
16 मीटर के फासले में बनाई जा रहीं दो सुरंग
शहर में करीब 5.50 किमी का हिस्सा भूमिगत है। इसमें भूमिगत स्टेशन व सुरंग की लंबाई शामिल है। भूमिगत स्टेशन के निर्माण में सुरंग खोदने वाली मशीन का प्रयोग नहीं होता, न ही स्टेशन के हिस्से में सुरंग होती है।
इसलिए उस हिस्से को हटाने के बाद सुरंग की लंबाई 3.50 किमी है। इसीलिए सुरंग तीन हिस्सों में बनाई जा रही है। एक सुरंग आने व दूसरी सुरंग जाने के लिए बनेगी। दोनों सुरंग बराबर में 16 मीटर के फासले पर बनाई जा रही हैं।