मेरठ. आइआइटी कानपुर में 52 साल पहले हुई मित्रता बड़े संकल्प में बदल गई। दोनों इंजीनियर दोस्त अब मेरठ में 150 करोड़ रुपये की लागत से बायोमास सीएनजी प्लांट लगा रहे हैं। प्रदेशभर में यह सबसे बड़ा प्लांट होगा। पूरे देश में भी इस तकनीक और क्षमता के गिनती के प्लांट हैं। इसमें रोजाना 30 टन सीएनजी बनेगी। मार्च-2023 तक प्लांट का संचालन शुरू हो जाएगा। देश की नामी आयल कंपनियों को सीएनजी की आपूर्ति की जाएगी।

मेरठ निवासी ललित कुमार जग्गी कानपुर आइआइटी से इलेक्ट्रिकल में जबकि किशन मोहन खत्री 1970 बैच के केमिकल इंजीनियर हैं। किशन मोहन अब एनआरआइ बन चुके हैं। निवेश का माहौल देखते हुए उन्होंने प्रदेश सरकार के साथ मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन किया। ललित कुमार ने बताया कि परीक्षितगढ़ के बहादुरपुर गांव में जर्मनी और अमेरिका की तकनीक पर आधारित प्लांट लगा रहे हैं। प्लांट का काम लगभग 40 प्रतिशत पूरा हो चुका है।

इसमें चीनी मिलों की मैली (गन्ने के रस को उबालने के दौरान झाग के रूप में आने वाली चीज), गोशाला, डेयरियों का गोबर व अन्य पदार्थों को एनारोबिक डाइजेशन सिस्टम से सड़ाकर बायोगैस तैयार की जाएगी। इसके लिए इंडियन आयल, गेल, भारत पेट्रोलियम समेत कई कंपनियों से बातचीत हुई है। ये कंपनियां गैस खरीदकर सीएनजी स्टेशनों को सप्लाई करेंगी। मार्च 2023 तक प्लांट में सीएनजी का उत्पादन शुरू हो जाएगा। प्लांट में काम शुरू होने के बाद आसपास के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

ललित जग्गी के पुत्र अंकुर जग्गी ने बताया कि बायोगैस से बने ईंधन की गुणवत्ता बाजार में उपलब्ध सीएनजी से कहीं बेहतर होगी। इसके प्रयोग से वाहनों का माइलेज बढ़ेगा। इस ईंधन के प्रयोग के लिए गाड़ियों की पुरानी सीएनजी किट भी नहीं बदलनी पड़ेगी। प्लांट से आर्गेनिक उर्वरक, तरल उर्वरक एवं कार्बन डाइ आक्साइड भी निकलेगी। उर्वरक खेतीबाड़ी में प्रयोग हो सकेंगे, जबकि कार्बन डाई आक्साइड को औद्योगिक इकाइयां खरीद लेंगी। जिला उद्योग केंद्र के सहायक आयुक्त शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इस तकनीक एवं क्षमता के देशभर में गिनती के प्लांट हैं।