नई दिल्ली. विकसित देशों की मंदी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है. ऐसा कहना है सिटी ग्रुप के एमडी और चीफ इकोनॉमिस्ट (इंडिया) समीरन चक्रवर्ती का. उन्होंने कहा है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अगर मंदी आती है तो इससे भारत को राहत मिल सकती है. बकौल चक्रवर्ती, इससे कमोडिटीज की कीमतें कम होंगी और घरेलू स्तर पर महंगाई में गिरावट देखने को मिल सकती है.
उन्होंने यह बातें ब्लूमबर्ग टीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहीं. उन्होंने कहा कि भारत कमोडिटी आयातक है इसलिए इस मोर्चे पर देश को राहत मिलनी चाहिए. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक मंदी के कारण भारत को निर्यात और आर्थिक विकास के मोर्चे पर दबाव का भी सामना करना पड़ेगा. चक्रवर्ती ने कहा कि अभी नीति निर्माता महंगाई को काबू करने पर जोर दे रहे हैं इसलिए एक अलग तरीके से यह भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है.
उन्होंने कहा कि भारत का चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफिसिट) इस वित्त वर्ष में जीडीपी का 3.4 फीसदी हो सकता है. इसके अलावा बैलेंस ऑफ पेमेंट डेफिसिट 45 अरब डॉलर से बढ़कर 50 अरब डॉलर हो सकता है. उन्होंने कहा कि इससे रुपये पर दबाव बढ़ेगा. बकौल चक्रवर्ती, डॉलर के मुकाबले में रुपया गिरकर 79 रुपये तक पहुंच सकता है. उन्होंने कहा कि बैलेंस ऑफ पेमेंट अगर और खराब होता तो इसका गिरावट का भी दोबारा मूल्यांकन होगा.
चक्रवर्ती ने कहा कि आरबीआई रेपो रेट को बढ़ाकर 5.5 फीसदी तक ले जा सकता है जो फिलहाल 4.9 फीसदी है. उन्होंने कहा कि अगर महंगाई तब भी बनी रहती है तो यह रेट 6 फीसदी तक जा सकता है. गौरतलब है कि आरबीआई ने मई और जून में 2 बार रेपो रेट बढ़ाकर इसमें 90 बेसिस पॉइंट की वृद्धि की थी. आरबीआई का कहना है कि वह महंगाई को काबू करने के लिए कदम उठाने में पीछे नहीं रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने इस वित्त वर्ष के लिए अमेरिका की ग्रोथ रेट को घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है. फंड का कहना है कि यूएस अगले साल मंदी के बेहद करीब पहुंच जाएगा. आईएमएफ के अनुसार, अमेरिका का मंदी से बचने का रास्ता बहुत संकरा होता जा रहा है. हालांकि, आईएमएफ ने यह भी कहा है कि मंदी के करीब पहुंचने के बावजूद अमेरिका बेहद करीब से बचकर निकल जाएगा.