नई दिल्ली. भारत में हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, गुजरात, पश्चिम बंगाल, गोवा, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है. इसकी लकड़ियों का उपयोग फर्नीचर से लेकर पार्टिकल बोर्ड और इमारतों को बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं.
सफेदा को कई जगहों पर नीलगिरी के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा हर तरह की जलवायु में विकास कर लेता है. साथ ही किसी भी प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है. हालांकि, 6.5 से 7.5 के मध्य P.H. मान वाली भूमि पर ये पौधा बेहद तेजी से विकास करता है.
सफेदा की खेती करने वाले किसानों के लिए सबसे अच्छी बात ये हैं कि आप इन पेड़ों के बीच में कम समय पर मुनाफा देने वाले फसलों को लगा सकते हैं. ये फसलें सफेदा की खेती की लागत निकाल कर देती हैं. इसके अलावा अच्छा-खासा मुनाफा भी पहुंच मिलता है. इन पेड़ों के बीच में आप हल्दी, अदरक, अलसी और लहसुन जैसे मुनाफा पहुंचाने वाले पौधों को लगा सकते हैं.
सफेदा की खेती को सरकार द्वारा इतना प्रोत्साहित नहीं किया जाता है. माना जाता है कि इसकी खेती से भूजल स्तर नीचे जाता हैं. हालांकि, इसकों लेकर सरकार की तरफ से कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया जाता है. फिर भी किसान अगर इस पेड़ की खेती करते हैं तो सिर्फ 10 साल में ही एक एकड़ की खेती में करोड़ रुपये तक का मुनाफा हासिल कर सकते हैं.
सफेदे के पौधों को पूर्ण रूप से तैयार होकर पेड़ बनने में 10 से 12 वर्ष का समय लग जाता है. इसकी खेती में लागत भी कम लगती है. एक पेड़ का वजन 400 KG के आस-पास होता है. एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन एक से डेढ़ हज़ार पेड़ों को लगाया जा सकता है. पेड़ तैयार होने के बाद इन लकड़ियों को बेचकर किसान आराम से 70 लाख से एक करोड़ तक की कमाई कर सकते हैं.