नई दिल्ली. आजकल आप रुपये के बारे में काफी खबरें सुन और पढ़ रहे होंगे. ऐसा इसलिए हो रहा है कि क्योंकि इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 80 के भी पार चल गया है. सरल और आसान शब्दों में कहें तो आज की तारीख में एक डॉलर भारत के 80 रुपये 2 पैसे के बराबर है. अब इसके बाद लगातार ये सवाल सवाल उठ रहे हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए क्या संदेश देता हैं? इसलिए आज हम रुपये का पूरा अर्थशास्त्र आपको बताते हैं कि आखिर रुपये गिरता क्यों है?

रुपये के कमजोर होने का क्या मतलब है? क्या कमजोर रुपया भारत को आर्थिक मोर्चे पर भी कमजोर कर रहा है? क्या रुपये में आई ये ऐतिहासिक गिरावट महंगाई का बड़ा विस्फोट करने वाली है. अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी विषय बहुत जटिल होते हैं. लेकिन आज हम आपको रुपये का गणित इतनी सरल भाषा में समझाएंगे कि आप भी इस विषय के मास्टर बन जाएंगे.

सबसे पहले आप ये समझिए कि जब रुपया कमजोर होता है तो इसका मतलब क्या होता है? दरअसल, जब भी आप ये सुनते हैं कि रुपये डॉलर की तुलना में कमज़ोर हो गया है तो इसका अर्थ ये होता है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की Purchasing Power कम हो गई है. इसे ऐसे समझिए कि पहले 70 रुपये एक डॉलर के बराबर थे. अब उसी एक डॉलर के लिए आपको 80 रुपये तक देने होंगे. जब आप बाज़ार में कोई सामान या कोई सेवा खरीदने जाते हैं तो इसका पूरा लेन-देन भारतीय करेंसी में होता है. यानी रुपये में होता है. लेकिन जब एक देश के तौर पर भारत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में व्यापार करता है तो यही लेन-देन विदेशी मुद्रा में होता है. अभी हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिकतर व्यापार यानी लेन-देन डॉलर में करता है, जो अमेरिका की करेंसी है.

उदाहरण के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जितना भी कच्चा तेल खरीदता है, उसका पूरा भुगतान डॉलर में ही होता है. अब मान लीजिए भारत के 70 रुपये एक डॉलर के बराबर हैं और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर है तो एक बैरल कच्चे तेल के लिए भारत को 700 रुपये का भुगतान करना होगा. लेकिन अगर यही रुपया डॉलर की तुलना में और कमजोर हो जाता है और उसकी कीमत 80 रुपये के पार चली जाती है तो इसी एक बैरल कच्चे तेल के लिए भारत को 800 रुपये देने होंगे. यानी कच्चे तेल की कीमतें तो नहीं बदली लेकिन रुपया कमजोर होने से भारत का कच्चे तेल के आयात पर खर्च बढ़ गया. नटशेल में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का मतलब है, भारत का आयात बिल महंगा होना.

अब आयात पर भारत पहले से ज्यादा खर्च करेगा तो इससे उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी घरेलू बाज़ार में बढ़ जाएंगी, जो दूसरे देशों से आती हैं. जैसे अभी पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़े हुए हैं. या जो Mobile Phones और गाड़ियां इम्पोर्ट होती हैं, वो महंगी हो गई हैं. अंग्रेज़ी में इस प्रक्रिया को Currency Depreciation भी कहते हैं. यानी जब डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य मुद्रा का मूल्य घटे तो इसे उस मुद्रा का गिरना, टूटना और कमजोर होना कहते हैं. अब आपके मन में ये सवाल होगा कि भारत का रुपया गिर क्यों रहा है?

इनमें पहला कारण है, महंगाई. भारत जिन चीज़ों का आयात करता है या जो चीज़ें हम दूसरे देशों से खरीदते हैं, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उन सबकी कीमतों में वृद्धि हुई है. जिनमें कच्चा तेल सबसे अहम है. यूक्रेन और रशिया के बीच जारी युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर हुई है और इनमें बढ़ोतरी जारी है. जिससे भारत का Import Bill बढ़ गया है.

अब जब कोई देश आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करता है. यानी दूसरे देशों से सामान खरीदने पर ज्यादा पैसा खर्च करता है और इसकी तुलना में निर्यात कम होता है तो इससे Current Account Deficit बढ़ जाता है. मान लीजिए, भारत ने 100 रुपये का सामान दूसरे देशों से खरीदा और सिर्फ़ 60 रुपये का सामान अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेचा. तो ये जो 40 रुपये का अंतर है, ये हमारा Current Account Deficit होगा. यानी आयात और निर्यात के इस असंतुलन से भारत को लगातार नुकसान होगा. अनुमान है कि इस साल भारत का Current Account Deficit 105 Billion Dollar यानी भारतीय रुपयों में 8 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये हो सकता है. यानी आयात और निर्यात के बीच जो अंतर है, वो 8 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है.

रुपये के कमज़ोर होने का एक और मुख्य कारण है, विदेशी निवेशकों का भरोसा टूटना. सिर्फ इसी साल में विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजार से 30 Billion Dollar यानी भारतीय रुपयों में 2 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश वापस निकाल चुके हैं. जिससे रुपया कमज़ोर हुआ है.

इसके अलावा रुपये के कमज़ोर होने के कुछ और कारण हैं. जैसे, रशिया और यूक्रेन का युद्ध. कोविड से प्रभावित हुईं ग्लोबल सप्लाई Chains और बढ़ती हुई महंगाई. इन वजहों से भी डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर हुआ है. हालांकि रुपये का कमजोर होना अब कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है. आप पिछले कई वर्षों से इसके आदी हो चुके हैं क्योंकि हर दौर में और हर सरकार में ये गिरावट इसी तरह जारी रही है. कभी रुपया डॉलर के मुकाबले 50 रुपये के स्तर पर पहुंचा, फिर इसने 60 रुपये के स्तर को छुआ, फिर ये 70 पर आया और अब 80 के पार चला गया है.

इसलिए बड़ा सवाल ये है कि रुपये में आई ये गिरावट कितनी चिंताजनक है? यानी आपको इसके बारे में कितना चिंतित होना चाहिए. इसे आप इस ग्राफ से समझ सकते हैं. इस ग्राफ से आप ये समझेंगे कि रुपये में जो गिरावट अभी देखी जा रही है, वो ज्यादा परेशान करने वाली नहीं है. 2008 से 2022 के बीच रुपया लगभग एक ही रफ्तार से कमजोर हुआ है. साल 2008 में भारत के 43 रुपये एक डॉलर के बराबर थे. 2014 में इसने 64 रुपये के स्तर को छुआ और अब ये 80 रुपये के पार चला गया है. 2014 से 2022 के बीच डॉलर की तुलना में रुपया 25 प्रतिशत गिरा है.

अब आप जल्दी से ये नोट कर लीजिए कि रुपये के कमज़ोर होने के नुकसान क्या हैं और क्या फायदे हैं? पहले आपको नुकसान बताते हैं. इससे आयात पर भारत का खर्च बढ़ जाएगा. विदेश से आने वाली चीजें जैसे महंगे Phones, Electrical Items और गाड़ियां महंगी हो जाएंगी. विदेशों में छुट्टियां मनाना महंगा हो जाएगा. इसके अलावा अगर आप अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ने के लिए भेजना चाहते हैं तो पढ़ाई का ये खर्च भी बढ़ जाएगा. इसके अलावा इससे विदेशों से कर्ज लेना भी महंगा हो जाएगा. हालांकि रुपये के गिरने के कुछ फायदे भी हैं.

जैसे, भारत सरकार और भारत की जो कम्पनियां दूसरे देशों में अपना सामात निर्यात करती हैं, उन्हें पहले की तुलना में ज्यादा पैसे मिलेंगे. इसे ऐसे समझिए कि पहले जब रुपया 70 रुपये का था. और कश्मीर से निर्यात होने वाले एक कालीन की कीमत 10 डॉलर थी तो उस व्यापारी को 700 रुपये मिलते थे. लेकिन अब उसी कालीन के उसे 800 रुपये मिल जाएंगे. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि रुपये पिछले कुछ वर्षों में 70 से 80 रुपये के स्तर पर पहुंच गया.

यानी कालीन की कीमत नहीं बढ़ी बल्कि रुपये के कमज़ोर होने से उस व्यापारी को निर्यात पर ये फायदा हुआ. भारतीय मूल के जो लोग विदेशों में रहते हैं और वहां से विदेशी मुद्रा भारत में भेजते हैं, उन्हें अब ज्यादा फायदा होगा. यानी इसके कुछ फायदे भी हैं. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि रुपये का गिरना चिंताजनक नहीं है. ये चिंताजनक है. और यही कारण है कि भारत का केन्द्रीय बैंक.. यानी Reserve Bank of India रुपये के रेस्क्यू ऑपरेशन में जुट गया है. रुपये के इस रेस्क्यू ऑपरेशन को आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.

RBI ने रुपये की Value को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर को बेचना शुरू कर दिया है. RBI अब तक 32 Billion Dollar यानी लगभग ढाई लाख करोड़ रुपये के डॉलर अपने Foreign Reserves से बेच चुका है. अभी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 580 Billion Dollar यानी 46 लाख 40 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बची है.