नई दिल्ली. राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म होते ही रामनाथ कोविंद चर्चा में आ गए हैं। एक के बाद एक उन पर सियासी निशाना साधा जा रहा है। विपक्षी दल के नेता लगातार हमलावर हो रहे हैं। पहले महबूबा मुफ्ती, फिर अखिलेश यादव ने उनके खिलाफ जमकर बयानबाजी की।
देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद को लेकर सियासी पारा हाई है। विपक्ष के वार पर भारतीय जनता पार्टी ने पलटवार किया। कोविंद का बचाव करते हुए भाजपा नेताओं ने यहां तक कह दिया कि विपक्ष को एक दलित का राष्ट्रपति पद तक पहुंचना नागवार गुजरा। इसलिए उनके पद से हटते ही ये लोग उनपर निशाना साध रहे हैं।
विपक्ष के निशाने पर क्यों हैं पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद? अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे कौन से फैसले लिए जिनसे विपक्ष के नेता भड़के हुए हैं? आइए जानते हैं…
पीडीपी की प्रमुख और जन्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पर सवाल उठाए। उन्होंने ट्वीट किया। लिखा, ‘निवर्तमान राष्ट्रपति (कोविंद) ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जहां संविधान को अनेक बार कुचला गया। चाहे वह अनुच्छेद 370, नागरिकता कानून, अल्पसंख्यकों या दलितों को निशाना बनाना हो। उन्होंने संविधान के नाम पर भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को पूरा किया।’
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा, ‘राष्ट्रपति जो अब रिटायर हो रहे हैं, वो बिल्कुल पड़ोस के हैं। उनके रहते-रहते उनके समाज और उनके तबके के लोगों में बहुत कुछ बदलाव नहीं दिखाई देता है। लोगों को इस बात का गर्व हो सकता है कि उनके समाज का उन्हें राष्ट्रपति मिला। ये गर्व है। ये खुशी है। लेकिन सवाल ये है क्या राष्ट्रपति बनने से उनके समाज का कुछ उत्थान हुआ है? राष्ट्रपति रिटायर हो रहे हैं। अच्छा है।’
1. आर्टिकल 370 हटाना : रामनाथ कोविंद के कार्यकाल में केंद्र सरकार ने कई बड़े फैसले लिए। पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A समाप्त कर दिया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के दो हिस्से कर लद्दाख को अलग कर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया। इससे जम्मू कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां तो नाराज हुईं ही, कांग्रेस जैसे मुख्य विपक्षी दल ने भी मोर्चा खोल दिया। तब से लेकर अब तक जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। अब परिसीमन के बाद विधानसभा चुनाव की संभावना भी तेज हो गई है।
2. सीएए-एनआरसी : नौ दिसंबर 2019 को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किया था और इसे लोकसभा में 311 बनाम 80 वोटों से पारित कर दिया गया। 11 दिसंबर को इसे राज्यसभा में पेश किया गया जहां नागरिकता विधेयक 2019(CAB) को 125 और खिलाफ में 99 वोट दिए गए हैं। इस प्रकार से नागरिकता विधेयक बिल (CAB Bill) पास हो गया। बिल पास होने के एक दिन बाद ही
12 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसे मंजूरी दे दी। तब जाकर नागरिकता विधेयक बिल नागरिकता विधेयक कानून बन गया। नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू ,सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिश्चियन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया।
पहले किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए उसे कम से कम पिछले 11 वर्षों से भारत में रहना अनिवार्य था इस नियम को आसान बनाते हुए नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 साल से लेकर 6 साल कर दिया गया है। इसका विपक्षी दलों ने खूब विरोध किया।
3. तीन तलाक : तीन तलाक का फैसला भी काफी विवादित रहा। संसद से तीन तलाक कानून पास होने के बाद राष्ट्रपति कोविंद ने ही इसे मंजूरी दी। देशभर में इसके खिलाफ मुस्लिम समाज के लोग खड़े हो गए थे। हालांकि, इसके समर्थन में भी बड़ी संख्या में लोग रहे।