नई दिल्‍ली. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रतिष्ठित संसद भवन, बीते करीब 100 सालों का लंबा इतिहास रखता है. यह देश की आजादी के पहले और फिर स्‍व-शासन के शुरुआती कदमों से लेकर स्‍वतंत्रता की गौरवशाली प्राप्ति और देश के विकास का साक्षी रहा है. अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे तो यह सवाल भी है कि इस नए भवन की क्‍या जरूरत थी?

पुराने संसद भवन में देश के महान नेताओं के शानदार भाषण और उल्‍लेखनीय घटनाएं यादगार बनी हुई हैं तो वहीं अब नए संसद भवन में नए भारत की अमिट छाप देखने को मिलेगी. दरअसल, पुराने संसद भवन को दो सदनों की विधायिका को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था, लेकिन अब नए संसद भवन में कई तरह की सुविधाएं होंगी और यह आज के जमाने के साथ, अति आधुनिक तकनीक से लैस है.

तथ्‍यों के अनुसार संसद की पुरानी और ऐतिहासिक संरचना लगभग एक सदी पुरानी है. इसे उस समय की जरूरतों और तकनीक आदि के हिसाब से बनाया गया था. बीते सालों में संसदीय गतिविधियों, कार्यबल और आगंतुकों की संख्या में काफी बदलाव और वृद्धि हुई है. ऐसे में नए भवन की जरूरत महसूस की जा रही थी. हालांकि, मूल भवन डिजाइन का कोई मौजूदा रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं है लेकिन इसमें समय- समय पर बदलाव होते रहा है. उदाहरण के लिए, 1956 में, दो अतिरिक्त मंजिलों को इमारत के बाहरी गोलाकार हिस्से में जोड़ा गया था, जो सेंट्रल हॉल के गुंबद को छुपाता था और मूल अग्रभाग को बदल देता था.

इसके अलावा, जाली खिड़कियों पर आवरण ने संसदीय हॉल में प्राकृतिक प्रकाश को कम कर दिया. पुराना संसद भवन स्‍थान, सुविधाओं और प्रौद्योगिकी के मामले में वर्तमान समय की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल है. पुराने संसद भवन में बैठने के लिए पर्याप्‍त जगह नहीं है तो वहीं बुनियादी सुविधाएं ही जर्जर हो रही थीं. इसके अलावा यह भवन पुरानी संचार प्रणालियों, सुरक्षा चिंताओं और अपर्याप्त कार्यक्षेत्र सहित कई चुनौतियों का सामना करता है.

1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन के बाद से लोकसभा सीटों की संख्या 545 पर अपरिवर्तित बनी हुई है. हालांकि, 2026 के बाद इसमें काफी वृद्धि होने की उम्मीद है, जब सीटों की कुल संख्या पर लगी रोक हटा दी जाएगी. बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल है, दूसरी पंक्ति के आगे कोई डेस्क नहीं है. केन्द्रीय कक्ष में केवल 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है, जो संयुक्त सत्र के दौरान एक बड़ी समस्या बन जाती है. आवाजाही के लिए सीमित स्थान भी महत्वपूर्ण सुरक्षा जोखिम पैदा करता है.

समय के साथ, जल आपूर्ति लाइनों, सीवर लाइनों, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन प्रणालियों, सीसीटीवी और ऑडियो-विजुअल सिस्टम (जो मूल योजना का हिस्सा नहीं थे) जैसी सेवाओं को बाद में जोड़ा गया और उसे विकसित किया गया इससे पुरानी इमारत पर बुरा प्रभाव पड़ा है. अग्नि सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि इमारत वर्तमान में अग्नि सुरक्षा मानदंडों का पालन नहीं करती है.

वर्तमान संसद भवन में पुरानी संचार व्‍‍‍‍यवस्‍था और प्रौद्योगिकी थी और सभी हॉल में साउंड समेत कई अहम सुधार की आवश्‍यकता है.इमारत के संबंध में संरचनात्मक सुरक्षा चिंताएं मौजूद हैं. संसद भवन का निर्माण तब किया गया था जब दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-द्वितीय के अंतर्गत आती थी, लेकिन वर्तमान में इसे भूकंपीय क्षेत्र-IV के रूप में वर्गीकृत किया गया है.