16 जून 2013 … केदारनाथ धाम के पीछे मौजूद चोराबारी ग्लेशियर के ऊपर बादल फटा. ग्लेशियर में बनी एक पुरानी झील में इतना पानी भर गया कि उसकी दीवार टूट गई. पांच मिनट में पूरी झील खाली हो गई. पानी इतनी तेजी से निकला कि केदारनाथ धाम से लेकर हरिद्वार तक 239 किलोमीटर तक सुनामी जैसी लहरें देखने को मिलीं. चारों तरफ तबाही और बर्बादी.

हजारों लोग मारे गए. हजारों का आज भी पता नहीं चला. नदियों का बढ़ा जलस्तर देख डर लग रहा था. लोगों को बचाने के लिए सेना, एयरफोर्स और नौसेना ने 10 हजार से ज्यादा सैनिक और 50 से ज्यादा हेलिकॉप्टर और विमान लगाए. वायुसेना के विमानों ने 2137 बार उड़ान भरी. 1.10 लाख से ज्यादा लोगों को बचाया गया. साल-दर-साल बीतते चले गए.

हादसे के निशान तो अब भी पहाड़ों की ढलानों पर दिखते हैं. केदारनाथ धाम जाने की दूरी भी बढ़ गई. क्योंकि रामबाड़ा कस्बा पूरी तरह से खत्म हो गया था. नया रास्ता बनाया गया. जो पुराने रास्ते से करीब तीन किलोमीटर ज्यादा है. पहले आप केदारनाथ घाटी के बाएं पहाड़ों पर चलते हुए मंदिर तक जाते थे. अब रामबाड़ा से रास्ता दाहिनी ओर कट जाता है.
अपनों को खोने का दुख, डर और भरोसा

केदारनाथ जाते समय अगर झांककर मंदाकिनी नदी में देखिए तो पुराने ब्रिजों और पुलों के कुछ अवशेष आज भी मिल जाएंगे. राह चलते किसी से दस साल पुरानी आपदा के बारे में पूछो तो दुख, अवसाद, डर और भरोसा सब दिखता है. दुख अपनों को खोने का. डर फिर से ऐसी आपदा का. भरोसा भोलेनाथ का.

ऐसा नहीं है कि जो पुराने लोग थे, वही लोग अब भी वहां रह रहे हैं. या अपना व्यवसाय चला रहे हैं. कुछ लोग बाद में वहां पहुंचे और व्यवसाय करने लगे. उन्हें हादसे का पता तो है. लेकिन उसकी भयावहता नहीं बता पाते. धाम तक जाने वाले मार्ग पर गोद में बच्चे लेकर जाते लोग भी मिलेंगे और उम्र के आखिरी पड़ाव पर मौजूद बुजुर्ग भी.

कठिन यात्रा के बीच सिर्फ एक ही भरोसा है कि यात्रा पूरी हो जाएगी. हर एक-दो किलोमीटर के बाद खाने-पीने की दुकानें मिल जाएंगी. चीजें महंगी मिलेंगी लेकिन ज्यादा कीमत जायज है. एक घोड़ा जब 80 लीटर पानी लेकर गौरीकुंड से केदारनाथ जाता है तो वह साढ़े तीन हजार रुपए चार्ज करता है. यही कारण है कि 20 रुपए की बोतल ऊपर 80-85 रुपए में मिलती है.

खाने-पीने के लिए मैगी-आलू के पराठे से लेकर कुछ चाइनीज भी मिल जाएगा. एनर्जी ड्रिंक्स भी मिलने लगी हैं. थक जाएं तो पी लें. फिर आगे बढ़ें. रामबाड़ा के पुराने निवासी भगत सिंह से बात हुई. कहा जब प्रलय आई तो वो और उनका बेटा दुकान पर थे. उनके घोड़े दुकान के सामने बंधे थे. अचानक तेज धमाके जैसी आवाज आई. लोग भाग रहे थे. ऊपर की तरफ देखा तो करीब 100 मीटर ऊंची लहर अपने साथ बड़े-बड़े पत्थरों को लेकर आ रही थी.

सिंह ने बताया कि उस लहर में मेरे दोनों घोड़े बह गए. मैं और मेरा बेटा जंगल की ओर भागे. दो दिन तक ऊपर ही रहे. बाद में पानी कम होने पर नीचे आए. सिर्फ दो दुकानें बची थीं. बाकी पूरा रामबाड़ा गायब हो चुका था. सिवाय पत्थरों, कीचड़ और मलबे में दबी लाशों के कुछ नहीं था. हम किसी तरह नीचे गए तो सैनिकों ने हमें चाय दी. फिर हम अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए.

ये कहानी बताते समय भगत की आंखों में पानी था. गल से लगातार थूक गटक रहे थे. चेहरे पर डर था. पहले बाएं तरह के रास्ते पर उनकी दुकान थी. अब दाहिनी तरफ वाले रास्ते पर चाय-नाश्ते की दुकान है. थोड़ा ज्यादा ऊंचाई पर. रामबाड़ा के आगे लिंचौली बेस कैंप पर कुछ टेंट मिलेंगे. कुछ स्थाई निर्माण भी हैं.

मोबाइल का नेटवर्क आता-जाता रहता है. लेकिन केदारनाथ घाटी में 5जी नेटवर्क चलता है. ऑनलाइन पेमेंट होता है. लेकिन कई जगहों पर कैश की जरुरत पड़ती है. कैश आपके पास नहीं है तो कोई दिक्कत नहीं. आप किसी भी दुकानदार को ऑनलाइन पेमेंट करके उससे कैश ले सकते हैं. कुछ लोग इसके लिए मामूली सा कमीशन लेते हैं. कुछ बिना कमीशन के कैश दे देते हैं.

मंदिर पहुंचने से करीब दो-ढाई किलोमीटर पहले घोड़ों-खच्चरों का कैंप हैं. यहीं पर लोग उतरते हैं. लेकिन पूरे रास्ते यानी गौरीकुंड से लेकर मंदिर से ढाई किलोमीटर पहले तक आपकी नाक में खच्चरों के मल की दुर्गंध जाती रहती है. उनसे टक्कर खाकर गिरने का खतरा भी रहता है. कई बार खच्चर खुद फिसल कर गिर जाते हैं. इन्हें गिरता देख डर लगता है और दुख भी होता है. नीचे से ऊपर जाते समय 3000 से 8000 रुपए तक लेते हैं. लौटने में थोड़ा कम.

आपको यहां कुछ केदारनाथ के ‘श्रवण कुमार’ भी देखने को मिल जाएंगे. जो अपनी पीठ पर लोगों को बास्केट में बिठाकर नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे लेकर आते हैं. ये सबसे ज्यादा पैसा चार्ज करते हैं. ये 15 से 18 हजार के बीच लेते हैं. वहीं पालकी की सुविधा भी मौजूद है. इसे चार लोग लेकर चलते हैं. स्पीकर में गाना सुनाते हुए. ये बास्केट वाले से थोड़ा कम पैसे लेते हैं. इन सबको छोड़ दें तो हेलिकॉप्टर सुविधा है. अलग-अलग जगहों से अलग-अलग पैसा.

मंदिर के चारों तरफ बैरिकेडिंग है. रीटेनिंग वॉल बना दी गई है. पूरे कस्बे को सीढ़ीनुमा प्लेटफॉर्म में बदल दिया गया है. आप जब दर्शन की लाइन में लगते हैं, तो आपको लगेगा कि आप बेहद चौड़ी-चौड़ी सीढ़ियों से होकर मंदिर की तरफ जा रहे हैं. भीड़ ज्यादा होने पर लाइन लंबी हो जाती है. कई बार तो डेढ़ से दो किलोमीटर तक लंबी. मंदिर के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. जहां से पुलिस मुख्यालय देहरादून में लाइव फुटेज दिखता रहता है.

घाटी के दोनों तरफ ढलानों पर अस्थाई टेंट बनाए गए हैं. कुछ निजी हैं कुछ सरकारी. कीमत कम करने के लिए आपको बार्गेनिंग करनी होगी. टेंट में एक बिस्तर, मोटी रजाई मिलती है. साथ ही एक बल्ब, प्लग, चार्जिंग प्वाइंट मिलता है. ठंड ज्यादा लगने पर आपको ब्लोअर भी मिल सकता है, लेकिन उसकी कीमत देनी होगी.

रास्ते में अगर आपको मल-मूत्र के लिए जाना है, तो इंतजार करना होगा. क्योंकि अस्थाई टॉयलेट बनाए गए हैं. लेकिन उनकी व्यवस्था पूरे रास्ते भर सही नहीं है. महिलाओं के लिए ज्यादा समस्या है. कुछ जगहों पर ये मुफ्त में सेवाएं देते हैं. तो कुछ जगहों पर पांच-दस रुपए लेकर. ये कीमत मायने नहीं रखती क्योंकि साफ-सफाई के लिए इतना जायज है.