आगरा. 76 साल के ऐसे एक बुजुर्ग व्यक्ति, जिन्होंने कई चुनाव लड़े, लेकिन जीतने के लिए नहीं हारने के लिए. अपनी 76 साल की उम्र तक वो 97 बार चुनाव लड़ चुके हैं. ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्रपति तक के लिए नामांकन किया है. जी हां, आप सोच रहे होंगे कि अमूमन कोई व्यक्ति चुनाव जीतने के लिए लड़ता है, लेकिन न्यूज़ 18 लोकल आपको जिस व्यक्ति की कहानी बताने जा रहा है वो हारने के लिए चुनाव लड़ता है.
उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के नगला दूल्हा, तहसील खेरागढ़ के रहने हसनूराम आंबेडकरी बताते हैं कि मेरा जन्म उस दिन हुआ जब देश आजाद हुआ, यानी 15 अगस्त, 1947. मैं राजस्व विभाग में अमीन के पद पर कार्यरत था और उस वक्त बामसेफ पार्टी में सक्रिय था. यह वर्ष 1985 की बात है. जब मुझे बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ने का फरमान जारी हुआ. मैंने तैयारी की, पार्टी ने भरोसा जताया कि टिकट उन्हें ही दी जाएगी.
हसनूराम ने बताया कि मैंने इस चुनाव के लिए अपनी अमीन की नौकरी तक छोड़ दी, लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया. मेरी जगह उस समय के प्रत्याशी मंडलेश्वर सिंह को टिकट दे दिया गया. उस समय के पदाधिकारियों ने मुझसे कहा कि तुम्हें चुनाव लड़ाने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि तुमको पड़ोसी तो क्या? तुम्हारी पत्नी भी अपना वोट नहीं देगी. यह बात मुझे इस कदर चुभ गई कि मैंने ठान लिया कि जब तक जिंदा रहूंगा हारने के चुनाव लड़ूंगा.
उन्होंने बताया कि सबसे पहले मैंने निर्दलीय फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. इसमें मैं 17,711 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहा. इसके बाद, मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैं लगातार चुनाव लड़ता रहा. 1985 से जितनी बार भी विधानसभा, लोकसभा, पंचायत, क्रय-विक्रय अध्यक्ष, बाढ़ मेंबर पार्षद, ग्राम प्रधान जितने भी चुनाव हुए सब में निर्दलीय लड़ता रहा हूं. यही नहीं, मैंने राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए भी नामांकन किया था. मगर राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सांसदों के सिग्नेचर की जरूरत होती है, जिस वजह से मेरा नामांकन निरस्त (रद्द) हो गया.
हसनूराम आंबेडकरी ने बताया कि अभी तक वो 97 बार चुनाव लड़ चुके हैं, और सभी चुनाव में मेरी हार हुई है. हार मिलने में मुझे खुशी है, क्योंकि मैं जीतना नहीं चाहता हूं. हालांकि, इस बार भी मैंने नगर निकाय चुनाव में तहसील खेरागढ़ के नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए पर्चा भरा है. मगर मेरा पर्चा निरस्त हो गया है. मैं कोर्ट में जाने की सोच रहा हूं.
उन्होंने कहा कि पेशे से मैं अब किसान हूं और मनरेगा मजदूर भी हूं. उनके घर में उनकी पत्नी शिव देवी और पांच बेटे हैं. चुनाव लड़ने के लिए शुरुआत में यह लोग मना करते थे, लेकिन मेरी जिद के आगे परिवारवाले झुक गए. मैंने एक फंड बनाया है जिसमें मैं हर दिन कुछ ना कुछ रुपये डालता हूं. नामांकन प्रक्रिया में जो खर्च आता है, उसके अलावा मैं चुनाव में एक रुपया भी खर्च नहीं करता.
हसनूराम ने कहा कि मैं लोगों के पास वोट मांगने जाता हूं. जिन लोगों को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आता है वो मुझे वोट देते हैं. पहले मैंने सोचा था कि मैं 100 बार चुनाव हार कर एक रिकॉर्ड बनाऊंगा, लेकिन अब मैंने यह निर्णय बदल दिया है. जब तक मैं जिंदा हूं, तब तक चुनाव लड़ूंगा. मैं सिर्फ और सिर्फ हारने के लिए चुनाव लड़ूंगा. 76 वर्षीय हसनूराम आंबेडकरी दावा करते हैं कि वो भारत में सबसे ज्यादा चुनाव लड़ कर हार चुके हैं.