मेरठ। नगर निकाय चुनाव में सपा-रालोद का गठबंधन टूटने के कगार पर है। दोनों ही पार्टियों ने कई निकायों में अपने-अपने प्रत्याशी आमने-सामने उतार दिए हैं। इससे दोनों दलों में खलबली मच गई है। मेरठ, बागपत, बिजनौर, सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर जिलों में कई स्थानों पर प्रत्याशी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। इससे मतदाताओं में बिखराव होगा। दोनों को नुकसान हो सकता है। हालांकि गठबंधन को बनाए रखने के लिए मंगलवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी बैठक कर कोई समाधान निकाल सकते हैं।

बागपत में अपना गढ़ कहे जाने वाले खेकड़ा में रालोद ने पहले ही प्रत्याशी रजनी धामा को उतारा हुआ था, लेकिन अब सपा ने भी पूर्व अध्यक्ष संगीता धामा को प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह बड़ौत में सपा ने रणधीर को मैदान में उतारा है जबकि रालोद के लिए बड़ौत सबसे अहम सीट है। मेरठ जिले की नगर पालिका मवाना में अध्यक्ष पद के लिए रालोद उम्मीदवार अय्यूब कालिया को घोषित किया गया है जबकि यहीं से सपा ने दीपक गिरी को प्रत्याशी बना दिया है।

सहारनपुर में अंबेहटा नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए रालोद व सपा ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। नामांकन के अंतिम दिन सपा प्रत्याशी के रूप में इशरत जहां ने अपना नामांकन दाखिल किया। इससे पहले गठबंधन की ओर से रेशमा को रालोद ने अपना प्रत्याशी बनाया था। वहीं, शामली में कांधला नगर पालिका अध्यक्ष सीट पर रालोद से मिर्जा फैसल बेग और सपा से नजमुल इस्लाम आमने-सामने हैं। बिजनौर में सपा ने सदर सीट सहित 15 प्रत्याशी चुनाव में उतारे हैं, वहीं रालोद ने सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। मुजफ्फरनगर में शहर पालिका सीट पर सभासदों की संख्या को लेकर सपा और रालोद गठबंधन के बीच अंदरूनी तकरार चल रही है। इसका असर सपा प्रत्याशी लवली शर्मा के नामांकन के दौरान देखने को मिला। रालोद जिलाध्यक्ष संदीप मलिक समेत अन्य रालोद नेता नामांकन से दूर रहे।

रालोद के प्रदेश मीडिया संयोजक एवं पूर्व एमएलसी प्रत्याशी सुनील रोहटा ने बताया कि गठबंधन अभी टूटा नहीं है। रालोद गठबंंधन का पक्षधर है। पूर्व में रालोद प्रत्याशियों के लिए घोषित सीटों पर अगर रालोद के ही प्रत्याशी लड़ें तो गठबंधन बचा रह सकता है। दोनों पार्टियों के मुखिया आगे की रणनीति तय करेंगे।

सपा नेता और योजना आयोग के पूर्व सदस्य प्रो. सुधीर पंवार का कहना है कि रविवार को कांधला में टिकट न मिलने पर भाजपा के पूर्व पार्षद के खुदकुशी करने के बाद दोनों दलों ने रणनीति में बदलाव किया है। निकाय चुनाव में मुद्दे और तैयारी अलग होती हैं। कार्यकर्ताओं की संतुष्टि के लिए चुनाव में कई स्थानों पर दोस्ताना संघर्ष होगा।