कानपुर| कानपुर में बिल्डर से ठगी के मामले में गिरफ्तार शातिर ठग अभिषेक प्रताप सिंह और उसके गुर्गे धर्मेंद्र यादव को जेल भेजने से पहले पुलिस ने बिठूर स्थित पायनियर ग्रींस सोसाइटी में दोनों के हाथों में रस्सी बांधकर परेड कराई थी। इसी सोसाइटी के लोग उसे बड़ा अफसर समझकर सलाम ठोंकते थे। शनिवार को जब पुलिस दोनों को अपराधियों की तरह सोसाइटी लेकर पहुंची तब पहली बार लोगों को उसकी असलियत पता चली।

बुधवार को पायनियर ग्रींस सोसाइटी के अंदर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। यह वीडियो शनिवार का बताया जा रहा है। वीडियो में पुलिस अभिषेक और उसके ड्राइवर धर्मेंद्र को हाथों में रस्सी बांधकर सोसाइटी के अंदर ले जाते नजर आ रही है। लोगों ने बताया कि वे सभी अभिषेक को एनआईए के डीआईजी के रूप में दो साल से जानते थे।

शातिर ठग अभिषेक प्रताप सिंह दो सालों से पायनियर ग्रींस सोसाइटी में रहकर फर्जीवाड़ा कर रहा था। उसने इसी सोसाइटी में रहने वाली एक महिला के साथ मिलकर मंदिर के एक हिस्से में कब्जे का भी प्रयास किया, लेकिन लोगों के विरोध के आगे उसकी नहीं चली। उसके जेल जाने के बाद लोगों ने सोसाइटी में शुद्धिकरण के लिए पूजापाठ किया। रुद्राभिषेक का आयोजन किया गया। सोसाइटी को बुरी बलाओं से बचाने की प्रार्थना की।

बिल्डर के लाखों रुपये ऐंठने वाले शातिर ठग अभिषेक प्रताप सिंह को महज 24 साल की उम्र में एक आईपीएस अफसर ने अपने साथ रखकर लोगों से बातचीत करके उन्हें प्रभावित करने के पैंतरे सिखाए थे। अपने शातिर दिमाग की वजह से उसने यह काम बहुत तेजी से सीखा और सिर्फ नौ साल में महज 33 वर्ष की उम्र में अकूत बेमानी संपत्ति का मालिक बन गया। यह खुलासा पुलिस की जांच में हुआ है।

अभिषेक प्रताप वर्ष 2014 में वाराणसी आईपीएस अफसर के संपर्क में आया था। आईपीएस अफसर के माध्यम से उसने प्रशासनिक अफसरों से लेकर मंत्रालय और विभागों की अच्छी जानकारी हासिल की। तभी सरकार बदलने के बाद जब आईपीएस अफसर की पकड़ कमजोर हुई तो अभिषेक ने नए खुद ही काफी समय तक उसी अधिकारी के नाम का इस्तेमाल करके लोगों से ठगी की।

इस दौरान कई नए अफसर उसके संपर्क में आए और उनकी मंशा के अनुसार उनसे जुड़कर लाइजनिंग करने के कारण वह जल्द ही उनका करीबी बन गया। इन्हीं नजदीकियों की वजह से उसने पुलिस विभाग में भी ट्रांसफर, पोस्टिंग के ठेके से लेकर विवादित संपत्तियों को खाली कराने तक ठेका लेना शुरू किया। इससे होने वाली कमाई से उसने वाराणसी, लखनऊ, प्रयागराज और कानपुर जैसे शहरों में करोड़ों की संपत्ति भी बनाई।

पुलिस उन संपत्तियों की डिटेल खंगाल रही है। वाराणसी के एक किसान परिवार से जुड़े अभिषेक के पास वर्तमान में करीब सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति का आकलन लगाया जा रहा है। अभिषेक प्रताप अफसरों को बड़े उपहार देकर उनसे अपने काम करवा लेता था।

यहीं से उसकी कहानी शुरू हुई और शहर बदलने के साथ ही वह खुद को कभी एनआईए का डीआईजी बताने लगा तो कभी पीएमओ कार्यालय का अधिकारी बताने लगा।

अभिषेक प्रताप के साथ रहने वाला उसका ममेरा भाई गाजीपुर के सैदपुर निवासी प्रदीप सिंह फरार हो गया था। पुलिस को उसकी तलाश में जुटी है। सोसाइटी के रहने वाले लोगों ने बताया कि खुद को अभिषेक प्रताप का पीआरओ बताने वाला प्रदीप सिंह खुद को वाराणसी में तैनात पुलिस अधिकारी बताता था। स्पेशल ड्यूटी में उसे एनआईए के डीआईजी के साथ संबद्ध किए जाने की बात बताता था।