नई दिल्ली. दुनियाभर में फसलों का अधिक उत्पादन लेने के लिये खेतों में उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, इससे मिट्टी की क्वालिटी तो प्रभावित हो ही रही है, साथ ही भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है. हाल ही में हुये रिसर्च के नतीजों से यह भी साबित हुआ है नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के कारण खेती का खर्च तो बढ़ता ही है, साथ ही वातावरण में प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ती है.
इन्हीं समस्याओं के मद्देनजर वैज्ञानिकों ने उर्वरकों का इस्तेमाल कम करने वाली विधि खोज निकाली है, जिससे किसानों को खर्च तो बचेगा ही, पर्यावरण को भी इसके कई लाभ मिलेंगे.
पादप विज्ञान के नामी प्रोफेसर और वैज्ञानिक एडुआर्डो ब्लमवाल्ड ने अनाजों की खेती के लिये इस्तेमाल होने वाले अंधाधुंध उर्वरक और इनसे होने वाली समस्या का प्राकृतिक समाधान खोज निकाला है. इस प्राकृतिक तरीके को अपनाकर किसान नाइट्रोजन प्रदूषण को कम कर सकते हैं. इतना ही नहीं, इससे दूषित जल संसाधन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि और मानव स्वास्थ्य का खतरा भी टल सकता है. बता दें कि प्रोफेसर एडुआर्डो ब्लमवाल्ड की ये रिसर्च प्लांट बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें संबंधित मुद्दों और समाधानों का समावेश है.
अनाजों की खेती और उर्वरकों के इस्तेमाल पर प्रोफेसर ब्लमवाल्ड की इस खास रिसर्च में बताया गया है कि हवा में मौजूद नाइट्रोजन गैस को मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया की मदद से अमोनियम में बदल सकते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण का नाम दिया गया है, इसी पूरी प्रक्रिया को ही रिसर्च में केंद्रित किया गया है.
उदाहरण के लिये बता दें कि मूंगफली और सोयाबीन की फसल में रूट नोड्यूल यानी जड़ पिण्ड मौजूद होते हैं, जो नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया की मदद से पौधों को अमोनियम पहुंचाने में मदद करते हैं, लेकिन चावल और गेहूं की फसल में इतनी क्षमता नहीं होती, जिसके चलते इन फसलों में अलग से मिट्टी के उर्वरकों की जरूर पड़ती है. आमतौर पर ये फसलें अमोनिया और नाइट्रेट की मदद अकार्बनिक नाइट्रोजन को ग्रहण करके ही विकसित होती हैं.
पारंपरिक फसलों खासकर धान और गेहूं की फसल को लेकर प्रोफेसर ब्लमवाल्ड कहते हैं कि ‘अगर पौधों से रासायनों का उत्सर्जन ठीक प्रकार हो जाता है, तो मिट्टी के बैक्टीरिया भी वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सक्षम होगें’. रासायानिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम करने के लिये पौधों को संशोधित कर सकते हैं, जिससे पौधों से उत्सर्जित रसायनों को मिट्टी के जीवाणुओं के साथ मिलकर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में मदद मिलेगी. इससे पौधों को प्राकृतिक रूप से अमोनियम मिलने लगेगा और पौधों का प्राकृतिक विकास होता रहेगा. इससे उर्वरकों के इस्तेमाल की भी जरूरत ही नहीं.
पौधों में रसायनों के उत्सर्जन की पूरा प्रक्रिया को समझाने के लिये प्रोफेसर ब्लमवाल्ड की टीम ने चावल के पौधों की रासायनिक जांच और जीनोमिक्स का इस्तेमाल किया. इस प्रोसेस में ऐसे यौगिकों की पहचान हुई जो मिट्टी में बैक्टीरिया की नाइट्रोजन-फिक्सिंग गतिविधी को बढाने में मदद करते हैं. इस मामले में वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘पौधों में विकास के लिये अदभुत रासायनिक क्षमता मौजूद होती है. अब उर्वरकों की जगह मिट्टी और पौधों की क्षमता का इस्तेमाल करके खेती को और भी ज्यादा किफायती और टिकाऊ बना सकते हैं’. इससे पर्यावरण के संरक्षण में भी खास मदद मिलेगी.